🔥आत्मा की सत्ता व स्वरुप🔥 ✍️ Gulshan kumar
🔥आत्मा की सत्ता व स्वरुप🔥 ✍️ Gulshan kumar 🔥आत्मा की सत्ता व स्वरुप🔥 जनक्रान्ति कार्यालय समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 24 अगस्त, 2020 ) । 🌷एक व्यक्ति कहता है कि 'मैं हूं'। यहाँ 'मैं' का प्रयोग शरीर के लिए नहीं अपितु आत्मा के लिए होता है। यह उचित भी है क्योंकि शरीर के लिए कोई 'मैं' का प्रयोग नहीं करता, अपितु 'मेरा शरीर' का प्रयोग करता है। सांख्य शास्त्र के रचयिता महर्षि कपिल ने अन्य प्रकार से इस बात को समझाया है― प्रधानसृष्टि: परार्थं स्वतोऽप्यभोक्तृत्वात् उष्ट्रकुंकुमवहनवत्। अर्थात्― प्रकृति से परिणत जगत् आत्मा के लिए ही है, प्रकृति के स्वयं भोक्ता न होने से, ऊँट के द्वारा केशर ढोए जाने के समान। ऊँट केशर को अपने लिए नहीं, अपितु दूसरों के लिए ढोता है। इसी प्रकार प्रकृति से बना जगत् अपने लिए न होकर, आत्माओं के लिए होता है। कैवल्यार्थं प्रवृत्तेश्च।―(सांख्य १/१०९) 'और मोक्ष के लिए प्रवृत्ति से।' दु:ख की