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सबाल-जबाब ....... डॉ० मनोज संग शालू ( काल्पनिक) :. हेट पॉलिटिक्स :

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  सबाल-जबाब......... डॉ० मनोज संग शालू ( काल्पनिक) हेट पॉलिटिक्स :            आलेख : डॉ० मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 29 नवंबर,2020 ) ।  मैं ग़रीब किसान परिवार से आती हूँ ।थोङी सांवली और गोल चेहरे को लेकर सोचती हुयी बङी हुयी हूँ इसलिए आईना से भी कतराती हूँ। अभी तेईस वर्ष की हूँ और बचपन से ही प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देखती  थी इसलिए पटना में सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता की तैयारी कर रही हूँ। अभी हाल ही में बिहार के इलेक्शन रिजल्ट आये।चुनाव प्रचार के समय दो बङी पार्टियाँ रोजगार के मुद्दे पर एक दुसरे से आगे निकलने की होङ में लगी थी।वर्तमान परिवेश से लगता है की पोलिटिक्स में झूठ ही झूठ बोले जाते होगें।अब मुझे राजनीति करनेवाले लोग बिल्कुल पसंद नही आ रहे।न जाने मुझे एक सप्ताह से राजनेताओं के बारे में बहुत ज्यादा नकारात्मक बातें आ रही।इसी उधेङबुन में नींद और भूख समाप्त हो गयी है। मन बैचेन रहता है और राजनीतिक लोगों के प्रति जोर-जोर से अपशब्द कहने का मन करता है।  आप उपयुक्त माध्यम से जवाब दें और मेरी पहचान भी गुप्त रखें। 🙏-शालू(काल्प

द रीयल एक्शन हीरो-इंमोशनल इंटेलिजेंस : डॉ॰ मनोज कुमार

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द रीयल एक्शन हीरो-इंमोशनल इंटेलिजेंस : डॉ॰ मनोज कुमार जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट         लेखक डॉ॰ मनोज कुमार, जाने-माने मनोवैज्ञानिक पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 06 अगस्त,2020 ) । "बोल रे भैय्या अईशा.. जोर लगा दियो वैइशा... मदद दीहें गंगा माई रे..हुरे..रे..!"  ये संयुक्त आवाजें कुछ लोगों की थी।अभी वह दीघा-सोनपुर के जे.पी ब्रिज पर थी।नजर उठाया तो देखा गाँव के घाट की ओर कुछ मजदूर मोटे-मोटे रस्सों से एक विशालकाय नाव को खींच रहे थे।नजदीक जाने पर उसने देखा तनी हुयी मांसपेशियों और आँखों में चमक लिए नाविक अपने लक्ष्य को दबोच लेना चाह रहें।घाट के पास पहुंची तो देखा की उन मजदूरों के तन पर काफी कम कपङे थे। एक तरफ खाने की पोटली दिख रही थी तो दुसरी ओर घाट पर  कुछ ही दूरी पर बने मचान पर बच्चे खेल रहे थे। जैसे-जैसे नाव पानी से जमीन पर उठता चला आ रहा था बच्चों की खुशियाँ दुगुनी हो रही थी और मजदूरों के हौसले भी बुलंद हो रहे थे। राव्या की बोझील नजरें ये सब देख रहीं थी। धीरे से उसने दुपट्टे को माथे पर रखने की कोशिश की और आचमन करने के लिए  चुल्लू में पानी लिया।गौ

फ्लैट नं 467 और अस्सी साल का अफ़सर : मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डॉ० मनोज कुमार

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फ्लैट नं 467 और अस्सी साल का अफ़सर : मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डॉ० मनोज कुमार      सुप्रसिद्ध डॉ॰ मनोज कुमार मनोवैज्ञानिक विश्लेषक  पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 21 जुलाई,2020 ) । धुंआ खींच बेटा धुंआ ! अस्सी साल हो गये मुझे परिवार की गाङी और नौकरी की जिम्मेदारी को निभाते हुए ! सीढीयों से ऊपर चढते हुए जयंत बाबू ने अपने पोते मयंक पर तंज कसा।बङे बेफ्रिकी से वह युवा सिगरेट के कश लिए जा रहा था।जयंत बाबू के चश्मे पर पङे बारिश की बूंदे उनके व्यक्तित्व की चमक दिखा रहें थे। अपने कुरते से पानी के छीटें साफ करते हुए आसमान की ओर देखा।मयंक के सिगरेट के छल्ले गोल-गोल बादलों से उमङते-घुमङते दिख रहें थे। अपनी तीसरी पीढ़ी में इस तरह के व्यवहार देख उनके मन में कसक पैदा हो रही थी। आजकल के युवा अपने बुजुर्गों का ख्याल क्यों नही रखतें। ये सवाल उनके मन में कौंध रहा था। बार-बार वह अपने जीवन में झांकने की कोशिश कर रहे थे। कोई बीस साल पहले पटना सचिवालय से उनकी सेवानिवृत्ति हुयी।अपने काम और जज्बे से वह बिहार विधान सभा कार्यालय में नं एक की पोजिशन में रहें।विपक्ष हो या सत्तारूढ़ पा