👩🏫 मॉं का घर... 👩🏫
👩🏫 मॉं का घर... 👩🏫 ✍️नागेन्द्र कुमार सिन्हा द्वारा संप्रेषित हरेक बेटियों के नाम काव्य रचना जनक्रान्ति संवाद 👩🏫 मॉं का घर... 👩🏫 👉✍️माँ का घर , जो अब भी नहीं भूला !! बरसों बीत गए , उस घर से विदा हुए , बरसों बीत गए , नई दुनिया बसाए हुए , पर न जानें क्या बात है.? शाम ढलते ही मन , उस घर पहुँच जाता है !! माँ की आवाज़ सुनने को , मन आज भी तरसता है , महक माँ के खाने की , आज भी दिल भरमाती है , शाम होते ही याद आता है , घर में हँसी व शोर का होना !! पापा का काम से , लौट कर आते ही , चाय का प्याला पीना , दिन भर का हाल सुनाना , भाई का खेलते कुदते आना , शाम होते, याद आता है घर , जहाँ सदा मेहमानों का था , लगातार आना जाना !! बहुत मुश्किल से , मन को समझाती हूँ , वो दिन बीत गए , अब तुम सपनों में , जी लिया करो , उन पलों को , जो लौट के कभी , न फिर आएंगे !! आज भी , माँ से किए , वादों को निभाती हूँ , सबको ख़ुश रखने की अथक कोशिश में , अपने आँसु पी जाती हूँ , कोई कह दे मेरे रब से , या तो शाम