साहित्यिक रचना..... जीवन प्रसंग निर्विकार व्यक्तित्व विद्वान प्रखर ईश्वर चंद्र विधासागर
साहित्यिक रचना..... जीवन प्रसंग निर्विकार व्यक्तित्व विद्वान प्रखर ईश्वर चंद्र विधासागर साभार प्रस्तुति : आलेख प्रमोद कुमार सिन्हा बड़े ही निर्विकार भाव से वे आगंतुक को बोले श्रीमान जी विद्वता बाद में सबसे पहले लोगों के दुखों का कष्टों का निवारण करने मनुष्यता का पहला और चरम लक्षण है । आप स्टेशन पर बड़े परेशान थे आपकी परेशानी दूर करना दूर करना मनुष्य होने के नाते यह पहला कर्तव्य था जिसे मैंने किया विद्वता अपनी जगह है ऐसे महान थे भारत के संस्कृत और व्याकरण के विद्वान ईश्वर चंद्र विद्या सागर , साहित्य मंच,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 अक्टूबर, 2021 )। निर्विकार शब्द एक कौतुहल के साथ हृदय में प्रविष्ट तो होता है, परन्तु मन में कोई अवधारणा बन नहीं पाता है । मैं लेखक हूँ, कवि हूँ,, साहित्यकार हूँ, पत्रकार हूँ, मंत्री हूँ, विधायक हूँ, उच्च पदाधिकारी हूँ, कर्मचारी हूँ, समाज सेवी हूँ, त्यागी हूँ, सन्यासी हूँ , गुरु हूँ मेरे करोड़ों शिष्य हैं, इत्यादि इत्यादि मन में नाना प्रकार भाव-कुभाव का अनवरत आना जाना लगा ही रहता है। नाना प्रकार के संकल्पों - विकल्पों के उधेरबुन म