आज प्रजातंत्र शासन प्रणाली की चाभी कारपोरेट घराने के हाथों में हैं

 आज प्रजातंत्र शासन प्रणाली की चाभी कारपोरेट घराने के हाथों में हैं

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


प्रजा के लिये प्रजा के मत से निर्मित शासन प्रणाली को प्रजा तंत्र कहा जाता है :प्रमोद कुमार सिन्हा

"ना गगन बदला है, ना चमन बदला है, लाश वही है सिर्फ कफन बदला है  "

समाचार डेस्क,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 21 सितंबर, 2021 )। प्रजातंत्र की परिभाषा यूँ दी जाती रही है की प्रजा से प्रजा के द्वारा और प्रजा के लिये प्रजा के मत से निर्मित शासन प्रणाली को प्रजा तंत्र कहा जाता है, परन्तु वास्तविकता इससे कोसों दूर होता है ना तो यह शासन प्रजा के हित के लिये कोई काम करती है और ना भविष्य में ऐसा ही कोई गुंजाईश है । आइये हम सब मिलजुलकर इस बिन्दु पर गहन चिंतन - मनन करें । प्रथम बात है कि ये शासन प्रणाली की चाभी प्रजा के हाथों में बतायी जाती है जबकि वास्तविकता कुछ और होती है हकीकत ये है इसकी चाभी प्रजा के हाथों ना होकर कारपोरेट घराने की हाथों में होता है कैसे ..? विश्लेषण और तर्क संगत बात यहीं से उत्पन्न होता है जब कोई उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरता है तो सबसे पहले उसे जमानत की राशि जमा करनी होती है । उसके साथ ही साथ उसके दस-पाँच प्रस्तावक भी होते हैं खेला तो यहीं से शुरू हो जाता है । दिखावे के तौर पर जमानत की राशि बहुत न्यूनतम होती है । परन्तु चुनाव आयोग द्वारा एक निश्चित रकम यथा पंचायत प्रतिनिधि , जिला परिषद सदस्य , विधान सभा सदस्य और लोकसभा सदस्य के लिये निर्धारित कर रखी है जो अपनी अपनी चुनावी प्रचार-प्रसार में खर्च कर सकते हैं जो हज़ारों हज़ार से होते हुए लाखों लाख तक जाती है ।

अब यहाँ ये है इतने पैसे खर्च करना किसी के बुते की बात नहीं है वह भी जीत-हार के सम्भावना से परे है तो भाई इतना पैसा आता कहाँ से है..? उम्मीदवार का व्योरा होता है चुनावी खर्च पार्टी देती है अब प्रश्न उठना लाज़िमी है की पार्टी के पास फण्ड कैसे और कितना आता रहता है । जो इतना खर्च करती है पार्टी । इसका कथन होता है पार्टी के सादस्यता से फण्ड की प्राप्ति होती है । मान लिया जाये किसी पार्टी के सदस्यों की संख्या दस करोड़ हो तो यदि प्रत्येक सदस्य से पचास रुपये भी लिये जाते हों तो रकम मात्र पाँच अरब तक ही होता है। जबकि पार्टी उम्मीदवारों की संख्या हज़ारों-हज़ार में होती है । यदि पार्टी प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव आयोग की सीमा अनुकूल रकम मुहय्या कराती है तो पार्टी को दिवालिया होने में कतई भी इनकार नहीं किया जा सकता है । कारपोरेट जगत अपना अपना उज्जवल भविष्य का आकलन कर यहीं से उनका खेल की शुरुआत होती है और खरबों-खरब रूपैया ओ पार्टी को अपना हित ध्यान में रखते हुए दान स्वरुप प्रदान करती है ।

यह पैसा विदेशों से भी गोपनीय ढंग से पार्टी को प्राप्त होती है तथा स्थानीय स्तर पर बड़े-बड़े बिजनेसमैन से भी उम्मीदवार को धन की प्राप्ति होती है। जब पार्टी चुनाव जीत जाती है सर्वप्रथम कॉरपोरेट घराने से प्राप्त रकम का एहसान चुकाने का जिम्मा सर्वोपरि होता है । एक उदाहरण तौर पर दवा का टेबलेट जिसका लागत मात्र दस पैसे हैं फैक्ट्री -कर्मचारी  -स्टॉकिस्ट-डीलर, सब डीलर-दुकानदार मिलकर ख़र्च पाँच रुपये होते हैं। आम आदमियों के हाथ में ओ दस रुपये में मिलता है या मोटा मोटी एक चार चक्का वाहन जो लोहे से निर्मित है । यदि कबाड़ खाने में बेचा जाये तो वामुश्किल दस  -बीस -तीस हज़ार उसकी कीमत होगी । वही रिसाईकलिंग होकर कार या ट्रक के रूप में दस लाख, बीस लाख में बाजार में उपलब्ध होकर खुले आम बिकता है । इस प्रकार की छूट सरकार द्वारा कॉरपोरेट घराने को देकर उसके द्वारा किये गये एहसान का बदला चुकाती है । ये कमोवेश सभी प्रकार की सेवा में होता है चाहे ओ समाचार पत्र प्रकाशन रूपी प्रिंट मिडिया हो इलेक्ट्रॉनिक मिडिया या विभिन्न प्रकार के फैक्ट्री या बिजनेस से सम्बंधित क्यों ना हो इस एहसान चुकाने की मुद्दा सर्वप्रथम होने के बाद अपनी अपनी मॉनिफिस्टो के अनुसार जनता से किये गये वादे पर अमल करती है जो एक नग्नय मात्र होता है।
कहने के लिये कहा जाता है कि यह प्रजातंत्र है, लेकिन वास्तविकता से कोसों दूर यह राजतन्त्र से भी गयी गुज़री इसकी व्यवस्था होती है । इसीलिए किसी चिंतक द्वारा कहा गया है "democracy is the rule foolish  "अर्थात प्रजातंत्र मूर्खों का शासन है। देखा जाये तो आज के समय में एक चपरासी अथवा चतुर्थ वर्ग सेवक या डी ग्रेड सेवा हेतु भी जो जो अहर्ता की माँग की जाती है । उसके बाद  परीक्षा , परिक्षाउत्तीर्ण होने उपरांत दौर , मेडिकल तब चयन होता है । नेताओं के लिये ऐसा किसी भी प्रकार की अहर्ता की जरूरत नहीं होती है । चाहे पढ़ा-लिखा हो या ना हो वे विज्ञान एंव तकनीकी विभाग के मंत्री हो सकते हैं । जो आज चौक -चौराहे पर गुंडागर्दी -लड़कियों से छेड़खानी , बलात्कारी, इत्यादि इत्यादि हैं । ओ गृह मंत्री के रूप में सुशोभित हो सकते हैं । ये है असली प्रजातंत्र
पार्टी की फंडिंग की जानकारी पारदर्शी होने की माँग हम जे०पी० सेनानी के अंतर जिलास्तरीय सम्मेलन के अतिरिक्त भी कई एक जगह उठा चुके हैं । परन्तु गूंगी बहरी सरकार को इस पर कोई ध्यान नहीं है । हमारा विद्यार्थी जैसा सुनहरा जीवन आंदोलन और जेल के सलाखों में व्यतीत इसलिए हुआ की हमलोगों ने लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर पढ़ाई छोड़ भ्रष्टाचार से मुक्त शासन हेतु कृत संकल्पित होकर आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए भ्रष्टाचार युक्त शासन प्रशासन  (श्री मति इंदिरा गाँधी   ) को गद्दी से उखाड़ कर नई शासन प्रशासन प्रदान करने में अहम् भूमिका अदा की। लेकिन हुआ ठीक उल्टा जे. पी. के जीवन काल में ही सत्ता लोलुपों द्वारा नौटंकी कुर्सी की अभिलाषा में पुनः स्तिथि जस के तस है । कहावत है "ना गगन बदला है, ना चमन बदला है, लाश वही है सिर्फ कफन बदला है " । ये आमुलचूल परिवर्तन कैसे और किस प्रकार होगा। हम देशवासियों को गंभीरतापूर्वक सोचना होगा । अंततः यही भावना होगा की ये संविधान में आमुलचूल परिवर्तन अथवा पुनर्निर्माण की आवश्यकता है । जहाँ अपराधी प्रवृति के लोग चुनावी प्रक्रिया से वंचित रहें । स्वच्छ और साफ सुथरे छवि के व्यक्ति ही चुनावी समर में चुनाव लड़ने का हक़दार हो, चुनावी खर्च सरकारी स्तर पर हो, चुनाव में जो उम्मीदवार जितने वाले से पचीस प्रतिशत मत प्राप्त ना कर सके । उसपर जुर्माना यथोचित कायम हो संविधान में मात्र दो पार्टी का ही विकल्प हो इत्यादि इत्यादि । उपरोक्त कथन जेपी सेनानी सदस्य प्रमोद कुमार सिन्हा द्वारा वाट्सएप माध्यम से प्रेस कार्यालय को दिया गया।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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