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Showing posts with the label काव्य संग्रह

चाहना नहीं हैं दिल में लोग मुझें जाने...?? चाहना

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  चाहना नहीं हैं दिल में लोग मुझें जाने...?? चाहना                      काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा चाहना चाहना नहीं है दिल में लोग मुझे जाने , चाहना नहीं रहा है कोई मुझे पहचाने  मैं जो हूँ जैसा भी हूँ अपने में मस्त हूँ अपने को ही पढ़ रहा अपने में व्यस्थ हूँ आप मुझे जानते हैँ वश ये बड़ी बात है दिल खोल मिलते हैँ जो यही सौगात है चाहना नहीं मैं चाँद -तारे तोड़ ले आऊँ चाहना नहीं किसी से मैं बड़प्पन पाऊँ बहुत ही साधरण मेरा रहन -सहन यहाँ चंद दिनों की चाँदनी देख जाना है वहाँ वहाँ कुछ नहीं जो है यहाँ यहीं कर लूँ सबको अपना बना आगोश में भर लूँ मिले जब भी कोई हर्षित तन -मन हो दो -चार मिनट ही सही मीठे बचन हो लेकर जाते नहीं कोई कर्म ही जाता है जिसका जैसा कर्म वैसा फल पाता है चाह नहीं कोई मेरा अमर पद पा जाऊँ चाह है केवल निश पल हरि -हरि गाऊं मेरा मन पल पल भगवन हो तुम्हारा तेरा याद करते  -करते हो निधन हमारा जैसा चाहा प्रभू मुझको तू नाच नचाया जो जो चाहना हुआ तेरी वही तू बनाया तेरी मर्जी का ठहरा मैं एक तेरा गुलाम ओ मेरे अलबेले राम मेरे अलबेले राम चाहना केवल तेरे याद में ना

शब्द की महिमा काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा, बेगूसराय

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  शब्द की महिमा                  काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा, बेगूसराय  शब्द की महिमा  शब्द - शब्द में भेद बहुत है ,          शब्द - शब्द में है बहुत जान , सोच- समझ कर शब्द बोलिये ,          शब्द से है व्यक्तित्व पहचान  , शब्द से ही कुर्सी मिले ,           शब्द से कुर्सी जाय छीन  , शब्द से इज़्ज़त पाइये ,            शब्द बिना दीन- हीन- मलिन , शब्द से जगत उपजाया ,            शब्द में ही जाये समाय  , शब्द का करिश्मा है बहुत ,            शब्द ही कोलाहल मचाये , शब्द से ही है धरती  ,             शब्द से ही बना आकाश   , शब्द - शब्द में है उलझन  ,            शब्द बिना ना दिखे प्रकाश,  शब्द का है खेल निराला ,            शब्द ही है मधुर संगीत  , शब्द से सुर - नर - मुनि मोहे ,            शब्द ही है ब्रह्म प्रतीत , शब्द को जो कोई बुझे  ,            सो ही है संत फकीर , शब्द की महिमा क्या बतावें ,             हनुमान दिखाया कलेजा चीर। - जेपी सेनानी प्रमोद सिन्हा जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित व प्रसारित।

काव्य रचना : मैं

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  मैं रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा मैं                        प्रमोद कुमार सिन्हा मैं मैं का शोर जगत में मचा है,चहूँ ओर अन्दर बाहर सब जगह साँझ और भोर बकरा में में कहता कटता उसका शीश रे मन मैं मैं करता कैसे मिलेंगे तुझे ईश मैं मैं करता राजा जाता छोड़े है जागीर मैं मैं से दुनिया नाश का तीर है गंभीर मंदिर देखा मस्जिद देखा मौलाना पीर बड़े बड़े बोल के पीछे मैं का होता तीर राजा दुःखी प्रजा दुःखी मैं का है भाव  , मैं बोलपन छोड़ जग में बदलो स्वभाव मैं पन का बोध छूटे नाही करो जो दाव घट भीतर झाँको वहाँ ना है बिलगाव अन्दर शांति बाहर शांति परमशान्ति मैं पन के कारण जग में भ्रांति ही भ्रांति अहम में चुड़ सभी हो रहे हैँ मतवारी , नेता -प्रजा -पार्टी सबमें मैं की लाचारी बड़े बड़े गुरु मंडलेश्वर में मैं की बीमारी गुरु मस्त शिष्य पस्त आश्रम का होड़ काम क्रोध लोभ मोह मद है गठजोड़ गुरु मालामाल चेला कंगाल है यही रीत पहुंचे ना मैं दर पे पाये ना मधुर संगीत कुछ कम लिखा कुछ ज्यादा मैं कारण भुला ना मैं को कैसे होय हिय जागरण विनती करता कर जोड़ सभी जनों से बतला दो भैया कोई भी हो यदि उपाय करता करता

बुढ़ापा दहलीज पर आगे बढ़ते कदम

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  बुढ़ापा दहलीज पर आगे बढ़ते कदम                                 रचनाकार :प्रमोद कुमार सिन्हा    इतना पास रहते भी हम अपनों से ----- लगता है कितना दूर हैँ · नदी के दो किनारे होते हैँ रहते हैँ दूर दूर ---- वैसे भी दिल से मजबूर हैँ कभी थी तरंगें उमंगें आज है बोझिल सा मन गुजर गया ओ मंजर सुना हर रंग  जीवन हैँ बेरंगें ज़िन्दगी एक मोर पर थम सी गई है अपने हो गये सब बेगाने दोष किसी पर नहीं समय सब रंग दिखाती है अच्छे वक्त पर गैर भी अपनाने अच्छा कर जाओ कितने गले मिल जाते हैँ बुरा हुआ गर कहीं तो दोस्त भी बदल जाते हैँ हवा को बदलते ना देखा कभी प्रकृति को ना देखा मचलते नदियों की धार ना मुड़ते मनुष्य ही मनुष्य से जलते हैँ कारवां रुकता नहीं दिशायें कभी बदलती नहीं जरा सा बड़प्पन क्या पा लिया अहम् जो है कभी सुधरती नहीं कितने शामें ढल गयी कितनी रातें भी है बीत गयी ज़िन्दगी के एक मोर पर खड़े हैँ पता ही नहीं चला बुढ़ापा कब आ गयी यदि पिछड़ जाता तो ज़माने तोहमत लगाने से कभी पीछे ना हटते आगे बढ़ गया कदम मुड़कर पीछे ना देख सका बाल वयां करती है कंघी लगाने से इन्द्रिय ढीली हो गयी मन में जवानी है छायी कुछ ना कर सका तब अब कुछ

मानव जीवन : जीवन में फूलों की तरह महका करो

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  मानव जीवन                               रचनाकार प्रमोद कुमार सिन्हा  मानव जीवन  👉🙋जीवन में फूलों की तरह महका करो, चिड़ियों की तरह हरदम चहका करो. राष्ट्र को कुछ ना दे सका तो सब बेकार, ज्योति बनकर समाज में लहका करो. जीवन में फूलों की........ आए हो जग में इसका कुछ तो उपयोग हो, हर जन के लिए तुम्हारा कुछ तो सहयोग हो. दुखी जन के लिए कुछ कर चलो, मानव जीवन में तुम्हारा ऐसा प्रयोग हो, देश और समाज के प्रति वफादार बनो, समर्पित हो राष्ट्र के प्रति आयशा समझदार बनो, पीछे कुछ ना देखो कर्म करते चलो, अपने कर्म के प्रति पूरी ईमानदार बनो, यही कर्म तेरा सदा साथ निभाएगा. जैसा करोगे कर्म वैसा ही फल पाएगा, अंत समय कोई कुछ लेकर नहीं जाता है, तेरा कर्म ही हमेशा तेरे साथ जाएगा, प्रमोद की सुन लो अब सबों से विनती. कर लो अपने शुभ कर्मों की गिनती, भलाई कर चलो जग में तेरा भी भला होगा, नहीं तो पड़ेंगे तेरे सर परभी लोहे की खंती. 👉✍️रचनाकार प्रमोद कुमार सिन्हा 

खुदा महफूज रखे हर बला से........

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  खुदा महफूज रखे हर बला से........                               हरि बोल हरि मुझसे दूर भी तू ना जा  ,                मेरे पास भी तू ना आ.  याद बन सदा तेरे पास रहूं  ,              तू भी याद बन दिल में रहो  , दूर रहने में मज़ा है  ,              साथ रहने में ओ सजा है  , तू दूर से देखा करो  ,               मैं दूर से मज़ा लिया करूँ , बाह रे दुनियां के खेल निराले  ,                काजल के कोठरी में उजाले   उजाले का मज़ा लिया करो  ,              काजल कोठरी में जिया करूँ आफताब भी महताब बन जाये ,       महताब भी आफताब हो जाये  , चैन से तू जिया करो,           बेचैन मैं गुज़ारा करूँ , अफसाना दुनियां लिखा करे ,         फ़साना में मैं लिपटा करूँ  , हर हसरत हो तुम्हारी पूरी  ,           मेरी चाहे जो हो मजबूरी , तुझ पर जान मैं लुटाया करूँ ,       चाहे जो इलज़ाम तुम लगाया करो खुदा महफूज रखे हर बला से ,        बला फटकने ना पाए हर गिला से मंजूरे खुदा से है इनायत मेरी       रब से शिकायत ना हो तेरी , खुदा महफूज रखे हर बला से........ काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा जनक्रांति प

🌹👉 जुदाई👈🌹

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  🌹👉 जुदाई👈🌹 काव्य रचनाकार प्रमोद कुमार सिन्हा               जुदाई...... अब तो राहें जुदा जुदा हो गई., हम कहीं खो गए तुम कहीं खो गई., तनहाई अब रास आने लगी., तुम्हारी याद दिल से जाने लगी., आशा था चमन में फूल भी खेलेंगे., कभी ना कभी हम गले मिलेंगे., अब हर याद तुम्हारी बिछड़ने लगी तन्हाई अब रास आने लगी., जाने किस मुकाम पर गले मिले थे., सपने संजोए दिल खिले हुए थे मुस्कान पर हम फिदा हो गए., अरमान लिए ही विदा हो गए., आंसू भी सूख गए हैं आंखों से., सूनापन अब ना बोझिल लगती है., बेदर्दी सॉन्ग मुझे भाने लगी है., तन्हाई अब रास मुझे आने लगी है., जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित ।

नफरतों की भेंट

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  नफरतों की भेंट रचनाकार: प्रवीण प्रसादसिंह "वत्स"   ##नफरतों की भेंट                                                             नफरतों के भेंट चढ़ते जा रहे , कुछ हमारे कुछ तुम्हारे जा रहे, बोहान से फैलाए गए वायरस , डर के सैलाब में बहते जा रहे, सितम सहकर भी जीते जा रहे बहुतेरे शागीर्द बिछुड़ते जा रहे गांव से शहर तक सहमा-सहमा, खौफनाक मंजर गुजरते जा रहे, वक़्त करवट लेगा इक दिन "वत्स" झंझावातों में दिन-रात ढलते जा रहे। जनक्रांति कार्यालय से प्रकाशित।

ग्रुप नहीं परिवार है ये.....

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  ग्रुप नहीं परिवार है ये..... सम्प्रेषित : नागेंद्र कुमार सिन्हा  काव्य..... आलेख.... ग्रुप नहीं परिवार है ये..... मन ऐसा रखो की        किसी को बुरा न लगे। दिल ऐसा रखो कि       किसी को दुःखी न करे। रिश्ता ऐसा रखो कि       उसका अंत न हो। हमने रिश्तों को संभाला है,       मोतियों की तरह कोई गिर भी जाए तो       झुक के उठा लेते हैं । ग्रुप नहीं ये परिवार है,       बसता जहाँ प्यार है। सुख के तो साथी हज़ार हैं      यहां सब जिंदगी के आधार हैं अपनों सा प्यार है यहाँ      इसके लिए सबका आभार है काम हो कोई तो बता देना      इस ग्रुप में हर कोई तैयार है सब को साथ जोड़ने के लिए      सभी का दिल से आभार है बांटना है तो बांट लो खुशी…      क्योंकि आंसू तो सबके पास हैं..!!   🙏🏻🙏🏿🙏🏽 हरि बोल हरि 🙏🏾🙏🙏🏼 जनक्रांति प्रकाशन ।

हर कोशिश एक इतिहास लिखती है :- डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक

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  हर कोशिश एक इतिहास लिखती है :-    डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक आओ करें सपने को साकार .... --------------------------------------                                 डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक जनक्रांति विचार डेस्क  ख्वाब की तरह ये जिंदगी! कभी हंसाती है तो कभी रूलाती। कभी मीठे सपने में ले जाकर, भविष्य के ताने-बाने बुनती है। आने वाले पल के इंतजार में! आज का यह क्षण बीत जाता है। बस देखते जाओ और जीते जाओ! महसूस कर जीने का नाम है जिंदगी । हर कोशिश एक इतिहास लिखती है! किताबों के पन्ने खूश्बूओं सी महकती है। अक्षरों से हकीकत की दरख्वाश्त आयी है! समझना है जिंदगी को एक अवसर के रूप में । आओ सच करें अपने सपने को ! करें परिस्थितियों को स्वीकार हम ।। Published by Jankranti.....

बिहार में सरकार होए नीतिशे कुमार

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  बिहार में सरकार होए नीतिशे कुमार जनक्रान्ति काव्य संदेश ट्राफिक में सुधार नहीं.. अपराधी पर लगाम नहीं... रोजगार के नाम पर नवयुवकों को कोई काम नहीं.. आगे बढ़ने का बिहार में कोई आधार नहीं... जल जीवन हरियाली के नाम लोगो का जीवन समाप्त कर रही सरकार... फिर भी कहते है सरकार हो नीतिशे कुमार..... नाला घोटाला, सृजन घोटाला , हरेक योजना मद का घोटाला हो जाऐ.. लेकिन सरकार रह जाऐ नीतिशे कुमार....।                                                      रचनाकार                                                मनीष कुमार सिन्हा                                                जनक्रान्ति कार्यालय 

👩‍🏫 मॉं का घर... 👩‍🏫

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                                            👩‍🏫 मॉं का घर... 👩‍🏫  ✍️नागेन्द्र कुमार सिन्हा द्वारा संप्रेषित हरेक बेटियों के नाम काव्य रचना जनक्रान्ति संवाद   👩‍🏫 मॉं का घर... 👩‍🏫  👉✍️माँ का घर ,         जो अब भी नहीं भूला !! बरसों बीत गए ,  उस घर से विदा हुए , बरसों बीत गए ,  नई दुनिया बसाए हुए , पर न जानें क्या बात है.? शाम ढलते ही मन ,  उस घर पहुँच जाता है !! माँ की आवाज़ सुनने को , मन आज भी तरसता है , महक माँ के खाने की ,  आज भी दिल भरमाती है , शाम होते ही याद आता है , घर में हँसी व शोर का होना !! पापा का काम से ,  लौट कर आते ही , चाय का प्याला पीना , दिन भर का हाल सुनाना , भाई का खेलते कुदते आना , शाम होते, याद आता है घर , जहाँ सदा मेहमानों का था , लगातार आना जाना !! बहुत मुश्किल से , मन को समझाती हूँ  , वो दिन बीत गए , अब तुम सपनों में , जी लिया करो , उन पलों को , जो लौट के कभी , न फिर आएंगे !! आज भी , माँ से किए , वादों को निभाती हूँ  , सबको ख़ुश रखने की अथक कोशिश में , अपने आँसु पी जाती हूँ , कोई कह दे मेरे रब से ,  या तो शाम

*ऐ "सुख" तू कहाँ मिलता है*

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           *ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता है*                           ‼️"बहुत ही प्यारी कविता"‼️ ✍️👉 नागेन्द्र कुमार सिन्हा                  ‼️"बहुत ही प्यारी कविता"‼️ ऐ "सुख" तू कहाँ मिलता है क्या तेरा कोई पक्का पता है । क्यों बन बैठा है अन्जाना आखिर क्या है तेरा ठिकाना।। कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको पर तू न कहीं मिला मुझको । ढूंढा ऊँचे मकानों में, बड़ी बड़ी दुकानों में, स्वादिष्ट पकवानों में, चोटी के धनवानों में । वो भी तुझको ही ढूंढ रहे थे । बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे।। क्या आपको कुछ पता है, ये सुख आखिर कहाँ रहता है..?⁉️ मेरे पास तो "दुःख" का पता था, जो सुबह शाम अक्सर मिलता था। परेशान होके शिकायत लिखवाई, पर ये कोशिश भी काम न आई । उम्र अब ढलान पे है, हौसला अब थकान पे है । हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास, अब भी बची हुई है आस । मैं भी हार नही मानूंगा, सुख के रहस्य को जानूंगा । बचपन में मिला करता था, मेरे साथ रहा करता था । पर जबसे मैं बड़ा हो गया, मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया। मैं फिर भी नही हुआ हताश, जारी रखी उसकी तला

👉🗣️मैं ही हूं,...🌹👈

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                        👉🗣️मैं ही हूं,...🌹👈                             डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक  ✍️ जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट  पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 15 दिसम्बर,2020 ) ।                          👉🗣️मैं ही हूं,...🌹👈 दायें-बायें और ऊपर-नीचे! धरती और आकाश के बीचों बीच, मैं ही मैं हूँ । मेरे पास आओ! तनिक और नज़दीक ।  तसदीक़ कर लो मेरा! मैं तुम्हारे अंदर ही हूँ । अक्स बनकर तो कभी तुम्हारी परछाई में । तुम रोते हो तो मैं भी आँसू बहाता हूँ । तुम्हारे हंसने भर सॆ खिल जाता हूँ! मैं तुम्हारे ही भीतर हूँ । सदियो से अनवरत बेमिसाल! सदा तुम्हारे साथ हमेशा के लिए । --डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक । जनक्रान्ति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित व प्रसारित ।

👫कन्यादान...👫

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                          👫कन्यादान...👫 साभार काव्य जनक्रान्ति कार्यालय से अनील कुमार यादव  खगड़िया, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 09 दिसम्बर,2020 ) ।                         👫कन्यादान...👫 🎅 पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ ,                 मैं नहीं मानता इसे , क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ; मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,        पति के साथ मिलकर निभाना तुम , मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा , आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम ,   जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम , सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी   न मर मर के जीना ,न जी जी के मरना तुम , तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,         ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम , न तुम बेचारी , न अबला ,        खुद को असहाय कभी न समझना तुम , मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,         मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ , उसे बखूबी निभाना तुम ................. * एक नयी सोच एक नयी पहल * सभी बेटियां के लिए                                        🔰🚥🚥🔰            

आज का इतिहास .... 29 अगस्त,...... *विद्रोही कवि* काजी नज़रुल इस्लाम की ४४वीं पुण्यतिथि

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  आज का इतिहास .... 29 अगस्त,...... *विद्रोही कवि* काजी नज़रुल इस्लाम की ४४वीं पुण्यतिथि जनक्रान्ति प्रकाशन परिवार की ओर से भाववीनी श्रद्धांजलि जनक्रान्ति कार्यालय से सुमन सौरभ सिन्हा की रिपोर्ट  समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 29 अगस्त 2020 ) । *विद्रोही कवि* काजी नज़रुल इस्लाम की 44वीं पुण्यतिथि पर जनक्रान्ति प्रकाशन परिवार की ओर से भाववीनी श्रद्धांजलि । *विद्रोही कवि* काजी नज़रुल इस्लाम की ४४वीं पुण्यतिथि जन्म: 24 मई 1899 चुरुलिया, बंगलादेश निधन: 29 अगस्त 1976 ढाका , बंगलादेश पत्नी: प्रमिला देवी(हिन्दू) प्रसिद्ध संज्ञा: विद्रोही कवि व्यवसाय: कवि, लेखक,निबन्धकार, संगीत निर्देशक आदि। भाषा: हिंदी, बंगला, पर्सियन  पुरस्कार: स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार, एकुशे पदक,पद्म भूषण(भारत) नागरिकता: बंगलादेश प्रसिद्ध लेख: चोल चोल चोल,विद्रोही, धूमकेतु,अग्निवीणा, बन्धन हारा,नज़रुल गीत।  *विशेष बिंदु* : ● इनकी लेखन कला से विद्रोह की भावना छलकती थी। इसीलिए इन्हें विद्रोही कवि की थी।●इनकी मृत्यु *पिक्स* नामक रोग से हुई।●इनकी समाधि ढाका विश्वविद्यालय में है।  समस्

जगत है केवल नर नारी का खेला , एक दूजे बिन जिंदगी रहता अकेला ,

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  जगत है केवल नर नारी का खेला  ,  एक दूजे बिन जिंदगी रहता अकेला  ,  प्रमोद कुमार सिन्हा बेगूसराय, बिहार  बेगूसराय, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 09 अगस्त,2020 ) । जगत है केवल नर नारी का खेला  ,  एक दूजे बिन जिंदगी रहता अकेला  ,  सृष्टि निर्माण हेतु ईश्वर बनाया जोड़ी  ,  एक जोड़ी रच डाला संसार का मेला  ,  जगत है केवल.........  कल्पना भगवान का बहुत निराला  ,  कोई गोरा है तो नजर में कोई काला  ,  किसी से मिलता है ना कोई विश्व में  ,  सूरत अलग अलग है सब मतवाला  ,  जगत है केवल........  मूरत बनाने बाला है कैसा अलबेला  ,  बिना प्रयास के ही जगत रच डाला  ,  स्वमेव सम बनाया मानव तन अद्भुत  ,  जड़ चेतन है चौरासी लाख का पाला  ,  जगत है केवल.........  भिन्न भिन्न योनि अलग थलग रेला  ,  गठीला है कोई तो है कोई शर्मिला ,  बिना पैर भी सरपट है दौरनेबाला  ,  एक से बढ़कर है एक भरोसेबला  ,  जगत है केवल......।। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by jankranti....

ये संसार पांच पचीस का ही खेला , अर्थ जो बताबे ओ गुरु है मैं चेला ..।।

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              ये संसार पांच पचीस का ही खेला ,               अर्थ जो बताबे ओ गुरु है मैं चेला ..।।                                              प्रमोद कुमार सिन्हा                         बेगूसराय, बिहार  बेगूसराय, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 20 जुलाई,2020 ) ।  ये संसार पांच पचीस का ही खेला ,  अर्थ जो बताबे ओ गुरु है मैं चेला  ,  ये संसार पांच पचीस का ही खेला ,  अर्थ जो बताबे ओ गुरु है मैं चेला.. प पर पहुंचे मिट जाये जग झमेला ,  ना पहुंचे नरक में भी ठेलम ठेला  ,  ये संसार पांच......... ।। दिन रात जो पानी में मरता प्यासा ,  पांच के चक्कर में मस्त जगत आशा  ,  पांच का खेल से उबर कोई हो पाता  ,  उबर गया जग में ओ मस्त अलबेला  ,  ये संसार पांच.......... ।। कलि समान युग नाही करो विश्वास  ,  गाई राम गुण जो भव तरे बिन प्रयास ,  योग जप तप नियम ब्रत ना है करना  ,   सुलभ समय भव उतरे बन जन मेला  ,  ये संसार पांच......... ।। माता पिता सेवा नहीं बृद्धाश्रम बिताये , राजा प्रजा दोनों लोभी लोभ फल पाए,  धर्म के चारों खम्भ धराशायी हो जाये ,  कहे प्रमोद राम नाम भव तारे अकेला  ,..

हमसे दूर दूर क्यों नजर आती हो तुम , नज़रें झुका कर गुजर जाती हो तुम ,

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हमसे दूर दूर क्यों नजर आती हो तुम ,  नज़रें झुका कर गुजर जाती हो तुम ,  प्रमोद कुमार सिन्हा  बेगूसराय, बिहार  बेगूसराय, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 08 जुलाई,2020 ) । हमसे दूर दूर क्यों नजर आती हो तुम ,  नज़रें झुका कर गुजर जाती हो तुम ,  मुझे देख क्यों मुस्कुराती हो जानेमन ,  खिला हुआ फूल  नजर आती हो तुम ,  हमसे दूर दूर........ । चाहता हूँ और नज़दीक हो जाऊ मैं ,  दिल घबराता दूर ना चली जाओ तुम ,  शकुन चैन मिलता है तुम्हें देखकर ,  छत पर खड़ी जब दिख जाती हो तुम,  हमसे दूर दूर...... । ऑंखें मिलाती हो मिलने से घबराती हो  तिरछी नजर से कटार चलाती हो तुम ,  हिरणी सी चाल और पतली कमर है हसरतें तमन्ना में बड़ी खूबसूरत हो तुम  हमसे दूर दूर.......।  ऐ हुस्न की मलिका क्या तारीफ करूँ ,  शब्द नहीं गुले गुलज़ार लगती हो तुम,  बांहों में भर लेने की जी चाहताहै तुझे  वाकई संगमरमर की एक मूरत हो तुम....। 02... बहारों के थे जो सपने फूल बन खिलेंगे नज़रें बिछाये सनम हम फिर मिलेंगे,  बहारों के थे जो सपने फूल बन खिलेंगे नज़रें बिछाये सनम हम फिर मिलेंगे,  फिजाओं से पूछो घटाओं से तू पूछ लो 

मेरे प्यार का तुम अब इम्तिहान ना लो, यकीन ना हो गर तो खुदा से पूछ लो..!!

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मेरे प्यार का तुम अब इम्तिहान ना लो,  यकीन ना हो गर तो खुदा से पूछ लो..!! प्रमोद कुमार सिन्हा  बेगूसराय, बिहार  बेगूसराय, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 04 जुलाई,2020 ) ।  मेरे प्यार का तुम अब इम्तिहान ना लो,  यकीन ना हो गर तो खुदा से पूछ लो ,  मोहब्बत में इजाजत ना होती खुदा की  कदम ना बढ़ते इतना दिल से जान लो ,  मेरे प्यार का तुम.........  गर इनायत ना होती शिकायत ना होती  हाले बयां दिल से ये शराफत ना होती ,  हम कहीं और भटक झटक रहे होते ,  तुम्हें पास आने की हिमाकत ना होती ,  मेरे प्यार का तुम......  शुक्र है की मैं बेबफा ना तुमसे की है ,  तेरे लिये मन्नतें खुदा से जो मैंने की है ,  दिल की धड़कन मेरी आबाज तुम हो, वही बफा की उम्मीद हमनें भी की है,  मेरे प्यार का तुम......  दिल में है अरमान आश लिये तुम पर ,  कश्में बफा की तुम मुझे पहचान लो ,  ऐसा ना हो भीड़ में खो जाओ कहीं,  दिल से दिल की बात प्रमोद मान लो,  मेरे प्यार की. ।।। ..................................................................... कभी ना कभी हम तुम फिर मिलेंगे ,  शिकबे शिकायतें हम मिल दूर करेंगे ,