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समान नागरिक कानून या जातीय समीकरण/भेदभाव कायस्थों का सम्मान करती सरकार : अरविंद चित्रांश

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  समान नागरिक कानून या जातीय समीकरण/भेदभाव कायस्थों का सम्मान करती सरकार : अरविंद चित्रांश जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट समान नागरिक कानून लाएं सरकारे, तभी हमारा सनातन संस्कृति का विस्तार सम्भव होगा: सत्य सनातन रक्षा सेना   समाचार डेस्क/बरेली, उत्तर प्रदेश (जनक्रांति न्यूज बुलेटिन कार्यालय  16 अगस्त, 2021 ) । सत्य सनातन रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद चित्रांश भैया जी ने कहा की भगवान चित्रगुप्तजी का देवता गणों में भी सम्मान था। ब्रह्मा जी ने कायस्थों को कलम दवात और न्याय का अधिकार दे सम्मान किया । वहीं आज कुछ लोग निजी स्वार्थ के लिए जातियो का वर्गीय करण करना चाहते है तो क्या इससे आपसी भाई चारे भाई का प्यार बढ़ेगा । शायद नहीं आप जितना जातियों का वर्गीकरण करेंगे यह उतना ही आपसी घृणा को जन्म देगा । इससे अच्छा रहेगा कि समान नागरिक कानून लाएं सरकारे, तभी हमारा सनातन संस्कृति का विस्तार सम्भव होगा । नाकि जातियों को आरक्षण देकर सम्मानित करना । आरक्षण देश में घातक है, आपसी भाई चारे के लिये, हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि सबको समान नागरिक अधिकार, एक शिक्षा एक नीति दीजिये,। चित्रगु

कायस्थ जाति पर न्यायिक विवेचना....अरविन्द चित्रांश

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  कायस्थ जाति पर न्यायिक विवेचना....अरविन्द चित्रांश जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट                                              भगवान श्री चित्रगुप्त समाचार डेस्क,भारत/बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 15 अगस्त,2021 ) ।   कायस्थ जाति पर माननीय न्यायालयों के निर्णय ... बनारस के राजा के आग्रह पर पूना, बंगाल, काशी, अवध, मथुरा, जम्मू-कश्मीर एवं बम्बई के विद्वान पंडितों ने यह व्यवस्था दी थी कि कायस्थ जाति क्षत्रिय वर्ण के अन्तर्गत आती है। उसी प्रकार विभिन्न न्यायलयों के निर्णयों में भी कायस्थों को क्षत्रिय माना गया है। यद्यपि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 1884 ई0 के राजकुमार लाल बनाम विश्वेश्वर दयाल के वाद के न्याय निर्णय में कायस्थों को शूद्र मान लिया था। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने श्यामा चरण सरकार की लिखी पुस्तक ‘व्यवस्था दर्पण’ के आधार पर कायस्थों को शूद्र माना था। किन्तु श्यामाचरण सरकार की पुस्तक ‘व्यवस्था दर्पण’ में यह भी लिखा हुआ है कि कायस्थ क्षत्रिय थे किन्तु, बंगाल में बसने से वे शूद्र हो गये। क्योंकि वे अपने नाम के बाद ‘दास’ उपनाम जोड़ने लगे और उन्होने उपनयन संस्कारादि छो