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चाहना नहीं हैं दिल में लोग मुझें जाने...?? चाहना

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  चाहना नहीं हैं दिल में लोग मुझें जाने...?? चाहना                      काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा चाहना चाहना नहीं है दिल में लोग मुझे जाने , चाहना नहीं रहा है कोई मुझे पहचाने  मैं जो हूँ जैसा भी हूँ अपने में मस्त हूँ अपने को ही पढ़ रहा अपने में व्यस्थ हूँ आप मुझे जानते हैँ वश ये बड़ी बात है दिल खोल मिलते हैँ जो यही सौगात है चाहना नहीं मैं चाँद -तारे तोड़ ले आऊँ चाहना नहीं किसी से मैं बड़प्पन पाऊँ बहुत ही साधरण मेरा रहन -सहन यहाँ चंद दिनों की चाँदनी देख जाना है वहाँ वहाँ कुछ नहीं जो है यहाँ यहीं कर लूँ सबको अपना बना आगोश में भर लूँ मिले जब भी कोई हर्षित तन -मन हो दो -चार मिनट ही सही मीठे बचन हो लेकर जाते नहीं कोई कर्म ही जाता है जिसका जैसा कर्म वैसा फल पाता है चाह नहीं कोई मेरा अमर पद पा जाऊँ चाह है केवल निश पल हरि -हरि गाऊं मेरा मन पल पल भगवन हो तुम्हारा तेरा याद करते  -करते हो निधन हमारा जैसा चाहा प्रभू मुझको तू नाच नचाया जो जो चाहना हुआ तेरी वही तू बनाया तेरी मर्जी का ठहरा मैं एक तेरा गुलाम ओ मेरे अलबेले राम मेरे अलबेले राम चाहना केवल तेरे याद में ना