मानव का विकास : Surendra kumar
मानव का विकास : Surendra kumar मानव विकास के प्रारंभिक काल पाषाण काल में मानव नें पत्थरों को अपना अवतार बनाया। उसके बाद मध्ययुगीन काल में लकड़ी में लोहे के हल लगाए गये। जिससे खेती में ज्यादा उपज के लिए तेजी से दास प्रथा की शुरूआत हुई। उस वक्त पशु सबसे पहले संपत्ति के रूप में चिन्हित हुआ। मनुष्य के पास उसके पहले कोई संपत्ति नहीं थी। उस समय सभी लोग आजाद थे। भारत में दासों को मानसिक गुलाम बना कर के उनको पूनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य में फंसाया गया। दासों की यह मानसिक गुलामी उनको अपने मानवीय मूल्यों और अधिकारों के लिए भारत में कभी विद्रोह नहीं करने दिया। वही मानसिक गुलामी आज तक देश की बहुसंख्यक जनता के दिलो-दिमाग में कायम है। इसी का परिणाम है कि आजादी के बहतर साल बाद भी बहुसंख्यक समुदाय के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में गुलाम बनाने वाली शिक्षा दी जा रही है : सुरेन्द्र कुमार @✍️ Samastipur office Report "मानव विकास की रचना उद्देलित कर समाज को एक आईना दिखाया है । आजाद देश के गुलाम नागरिक को लेखक सुरेन्द्र कुमार ने "सम्पादक विचार"।। Samastipur,Bihar (