मानव का विकास : Surendra kumar

मानव का विकास : Surendra kumar


मानव विकास के प्रारंभिक काल पाषाण काल में मानव नें पत्थरों को अपना अवतार बनाया। उसके बाद मध्ययुगीन काल में लकड़ी में लोहे के हल लगाए गये। जिससे खेती में ज्यादा उपज के लिए तेजी से दास प्रथा की शुरूआत हुई। 


उस वक्त पशु सबसे पहले संपत्ति के रूप में चिन्हित हुआ। मनुष्य के पास उसके पहले कोई संपत्ति नहीं थी। उस समय सभी  लोग आजाद थे। 


भारत में दासों को मानसिक गुलाम बना कर के उनको पूनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य में फंसाया गया। दासों की यह मानसिक गुलामी उनको अपने मानवीय मूल्यों और अधिकारों के लिए भारत में कभी विद्रोह नहीं करने दिया।

वही मानसिक गुलामी आज तक देश की बहुसंख्यक जनता के दिलो-दिमाग में कायम है। इसी का परिणाम है कि आजादी के बहतर साल बाद भी बहुसंख्यक समुदाय के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में गुलाम बनाने वाली शिक्षा दी जा रही है : सुरेन्द्र कुमार 

@✍️ Samastipur office Report

"मानव विकास की रचना उद्देलित कर समाज को एक आईना दिखाया है । आजाद देश के गुलाम नागरिक को लेखक सुरेन्द्र कुमार ने "सम्पादक विचार"।।

Samastipur,Bihar ( Jankranti hindi news bulletin office 26 July, 2020 ) ! मानव विकास के प्रारंभिक काल पाषाण काल में मानव नें पत्थरों को अपना अवतार बनाया। उसके बाद आग और फिर खेती की खोज हुई। खेती के लिए हल का आविष्कार हुआ।

प्राचीन ऐतिहासिक काल में हल प्रायः  लकड़ी के बनते थे। उसके बाद मध्ययुगीन काल में लकड़ी में लोहे के हल लगाए गये। जिससे खेती में ज्यादा उपज के लिए तेजी से दास प्रथा की शुरूआत हुई।

उस वक्त पशु सबसे पहले संपत्ति के रूप में चिन्हित हुआ। मनुष्य के पास उसके पहले कोई संपत्ति नहीं थी। उस समय सभी  लोग आजाद थे। जब पशु संपत्ति के रूप में चिन्हित हुआ तो उन पशुओं से खेती के लिए दास प्रथा का विकास हुआ। खेती शुरू हुई तो उन्हीं दासों को खेती में लगाया गया।

भारत में दासों को मानसिक गुलाम बना कर के उनको पूनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य में फंसाया गया। दासों की यह मानसिक गुलामी उनको अपने मानवीय मूल्यों और अधिकारों के लिए भारत में कभी विद्रोह नहीं करने दिया। उस समय के जो ब्राह्मणवादी लोग थे, उन्होंने इस तरह से मनुष्य को अपना गुलाम बनाया। क्योंकि इनको मालूम था कि यूनान के दासों नें राजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इसलिए भारत के तत्कालीन ब्राह्मणवादी राजाओं नें दासों का कत्लेआम कराया।

दास प्रथा के समर्थक देशों के ब्राह्मणों को यह समझ में आ गया था कि अगर हम इन दासों को शारीरिक गुलाम बनाते हैं तो ये आज नहीं तो कल विद्रोह करेंगे और इनके विद्रोह को दबाना मुश्किल होगा। इसमें नुकसान बहुत ज्यादा है। तो भारत के ब्राह्मणों ने अपने दासों को मानसिक रूप से गुलाम बनाया। वही मानसिक गुलामी आज तक देश की बहुसंख्यक जनता के दिलो-दिमाग में कायम है।

इसी का परिणाम है कि आजादी के बहतर साल बाद भी बहुसंख्यक समुदाय के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में गुलाम बनाने वाली शिक्षा दी जा रही है।

 

इसे खत्म करने के लिए हमें संगठित होकर मनुवादी सोंच को त्याग कर देश भर के गांव-गांव में काॅमन स्कूल सिस्टम पर आधारित स्कूल खोलना होगा। हमारे वंचित समाज के तथाकथित समाजवादी राजनेताओं को भी समर्पित भाव से धन लिप्सा छोड़ कर आगे आना होगा।

बनाना होगा न्याय पर आधारित समतामूलक समाजवादी समाज। हमारे सामुदायिक स्कूलों में बच्चों को इतिहास की जानकारी देकर उस पर बहस करवानी होगी। तभी हम इनको मानसिक गुलामी से आजाद करा पाएंगे। अगर यह आज नहीं हुआ तो यह मानसिक गुलामी का स्वरूप बदलता जाएगा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा इनके तथाकथित अनुसांगिक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक संगठन इसी तरह हमारी मानसिक गुलामी का फायदा उठाते हुए भारतीय संविधान और भारत की गौरवशाली लोकप्रिय लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देंगे।

अगर सही मायने में हमारे देश के सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देश के संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था है तो सबको अपने निजी स्वार्थों को त्याग कर एक मंच पर आना होगा। समाज में व्याप्त  मानसिक गुलामी से समाज को आजाद कराना होगा। तभी देश और दुनिया को हम बचा पाएंगे।

लेखक समाजवादी विचारधारा प्रवृत्ति के व्यक्ति है जो जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के सचिव भी है । जिन्होंने ""मानव विकास की रचना उद्देलित कर समाज को एक आईना दिखाया है । आजाद देश के गुलाम नागरिक को सम्पादक विचार"👌।।।

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट राजेश कुुुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित ।

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