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गुनाहगार सच

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  गुनाहगार सच                       रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा,बेगूसराय  गुनाहगार सच  जगत में मैं रहूँ ना रहूँ ,        पर ये फ़साना तो रहेगा ही , सब कुछ चला जाये यहाँ से ,        लेकिन ये जमाना तो रहेगा ही , रहना तो किसी को नहीं है ,        पर किये कर्म की गवाही होता है , सत्य कभी मरता नहीं है ,          झूठ की कोताही होता ही है , लोग जो कहे अमर नहीं कोई ,         पर अमर वाणी अभी भी है , राजा गये महाराजा संत फ़क़ीर  ,         उनकी गवाही अभी भी है  , लड़ रहे हैँ आज एक दूजे से ,         हम सही हैँ तो हम सही , गलत है कौन यहाँ पर ,         पता कौन कैसे करे कभी  , हम हम का ही बोल यहाँ पर ,         हम हम का ही है ललकार  , ताने दिये ही फिरते हैँ सभी  ,        मिलता है निष्कासन - फटकार , समझ समझ कर समझ रहे हैँ ,        गलत गलत गलत नहीं कोई , ऊँगुली पर ढूंढ़न जो चलन है  ,        सत्य सत्य जो है वही गलत होई , काशी मथुरा पे मत जाओ यारों ,        नूरे ईलाही हर दिल में मिलेगा , झाँकना है घट भीतर उस रब को ,        कांकर पत्थर नहीं प्रेम में मिलेगा कहता खड़ा है तो कोई पड़ा है,       अड़ा खड़ा में झगड़ा है

साहित्यिक रचना..... जीवन प्रसंग निर्विकार व्यक्तित्व विद्वान प्रखर ईश्वर चंद्र विधासागर

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  साहित्यिक रचना..... जीवन प्रसंग निर्विकार व्यक्तित्व विद्वान प्रखर ईश्वर चंद्र विधासागर साभार प्रस्तुति : आलेख प्रमोद कुमार सिन्हा बड़े ही निर्विकार भाव से वे आगंतुक को बोले श्रीमान जी विद्वता बाद में सबसे पहले लोगों के दुखों का कष्टों का निवारण करने मनुष्यता का पहला और चरम लक्षण है । आप स्टेशन पर बड़े परेशान थे आपकी परेशानी दूर करना दूर करना मनुष्य होने के नाते यह पहला कर्तव्य था जिसे मैंने किया विद्वता अपनी जगह है ऐसे महान थे भारत के संस्कृत और व्याकरण के विद्वान ईश्वर चंद्र विद्या सागर , साहित्य मंच,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 अक्टूबर, 2021 )। निर्विकार शब्द एक कौतुहल के साथ हृदय में प्रविष्ट तो होता है, परन्तु मन में कोई अवधारणा बन नहीं पाता है ।  मैं लेखक हूँ, कवि हूँ,, साहित्यकार हूँ, पत्रकार हूँ, मंत्री हूँ, विधायक हूँ, उच्च पदाधिकारी हूँ, कर्मचारी हूँ, समाज सेवी हूँ, त्यागी हूँ, सन्यासी हूँ , गुरु हूँ मेरे करोड़ों शिष्य हैं, इत्यादि इत्यादि मन में नाना प्रकार भाव-कुभाव का अनवरत आना जाना लगा ही रहता है। नाना प्रकार के संकल्पों  - विकल्पों के उधेरबुन म

अधिवक्ता ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एवं निराकरण की स्व लिखित पुस्तक बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष को प्रदान किया

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  अधिवक्ता ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एवं निराकरण की स्व लिखित पुस्तक बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष  को प्रदान किया जनक्रांति कार्यालय से विधि ब्यूरो चीफ रवि शंकर चौधरी अधिवक्ता अधिवक्ता द्वारा रचित पुस्तक पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एंव निराकरण बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी को समर्पित करते हुए. समस्तीपुर,बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 10 अक्टूबर, 2021)। बिहार में पहला पुस्तक पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एवं निराकरण लिखा गया । लेखक डॉ० अरुण कुमार यादव अधिवक्ता के द्वारा यह पुस्तक लिखा गया पुस्तक लिखने का शुभारंभ वर्ष 2002 से प्रारंभ किया और 350 पन्ना का पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एवं निराकरण पुस्तक लेखक डॉ एके यादव द्वारा 2021 में लेखन पूर्ण हुआ लेखक डॉ एके यादव 2007 ईo  में स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से पास की उन्होंने 2010 में कानून की परीक्षा पास की वर्तमान समय में समस्तीपुर व्यवहार न्यायालय में वकील के रूप में कार्यरत हैं।  इनकी बहुत सारी रचनाएं राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाएं में छप चुकी है यह पर्यावरणविद भी है साथ ही अ

गांधी जयंती पर विशेष: गांधी टोपी

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  गांधी जयंती पर विशेष:                         गांधी टोपी     जनक्रांति कार्यालय  रिपोर्ट आलेख : डॉ० परमानन्द लाभ   'गांधी टोपी' के नाम से मशहूर इस टोपी का आविष्कार न तो गांधी ने किया और न अधिक दिनों तक उन्होंने इसे धारण किया : डॉ० परमानंद लाभ  साहित्य मंच, भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 03 अक्टूबर, 2021 ) । खादी से तैयार सिर पर धारण किए जाने वाला वह पोशाक जो आगे और पीछे से जुड़ा हुआ और बीच से फैला हुआ होता है, को 'गांधी टोपी' कहा जाता है।    'गांधी टोपी' के नाम से मशहूर इस टोपी का आविष्कार न तो गांधी ने किया और न अधिक दिनों तक उन्होंने इसे धारण किया। आमतौर पर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा यह टोपी अपनायी गई और आजादी के बाद राजनीतिक लोगों के लिए आजाद भारत में पहनने हेतु एक प्रतिकात्मक परम्परा बन गई।    भारत में प्रथम असहयोग आन्दोलन १९१८-२१ में हुआ था,इसी दौरान 'गांधी टोपी' की लोकप्रियता बढ़ गई। इससे लोगों की भावना तब और जुड़ गई,जब १९२१ में ब्रिटिश सरकार ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का हर संभव प

खुदा महफूज रखे हर बला से........

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  खुदा महफूज रखे हर बला से........                               हरि बोल हरि मुझसे दूर भी तू ना जा  ,                मेरे पास भी तू ना आ.  याद बन सदा तेरे पास रहूं  ,              तू भी याद बन दिल में रहो  , दूर रहने में मज़ा है  ,              साथ रहने में ओ सजा है  , तू दूर से देखा करो  ,               मैं दूर से मज़ा लिया करूँ , बाह रे दुनियां के खेल निराले  ,                काजल के कोठरी में उजाले   उजाले का मज़ा लिया करो  ,              काजल कोठरी में जिया करूँ आफताब भी महताब बन जाये ,       महताब भी आफताब हो जाये  , चैन से तू जिया करो,           बेचैन मैं गुज़ारा करूँ , अफसाना दुनियां लिखा करे ,         फ़साना में मैं लिपटा करूँ  , हर हसरत हो तुम्हारी पूरी  ,           मेरी चाहे जो हो मजबूरी , तुझ पर जान मैं लुटाया करूँ ,       चाहे जो इलज़ाम तुम लगाया करो खुदा महफूज रखे हर बला से ,        बला फटकने ना पाए हर गिला से मंजूरे खुदा से है इनायत मेरी       रब से शिकायत ना हो तेरी , खुदा महफूज रखे हर बला से........ काव्य रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा जनक्रांति प

🌹👉 जुदाई👈🌹

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  🌹👉 जुदाई👈🌹 काव्य रचनाकार प्रमोद कुमार सिन्हा               जुदाई...... अब तो राहें जुदा जुदा हो गई., हम कहीं खो गए तुम कहीं खो गई., तनहाई अब रास आने लगी., तुम्हारी याद दिल से जाने लगी., आशा था चमन में फूल भी खेलेंगे., कभी ना कभी हम गले मिलेंगे., अब हर याद तुम्हारी बिछड़ने लगी तन्हाई अब रास आने लगी., जाने किस मुकाम पर गले मिले थे., सपने संजोए दिल खिले हुए थे मुस्कान पर हम फिदा हो गए., अरमान लिए ही विदा हो गए., आंसू भी सूख गए हैं आंखों से., सूनापन अब ना बोझिल लगती है., बेदर्दी सॉन्ग मुझे भाने लगी है., तन्हाई अब रास मुझे आने लगी है., जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित ।

नफरतों की भेंट

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  नफरतों की भेंट रचनाकार: प्रवीण प्रसादसिंह "वत्स"   ##नफरतों की भेंट                                                             नफरतों के भेंट चढ़ते जा रहे , कुछ हमारे कुछ तुम्हारे जा रहे, बोहान से फैलाए गए वायरस , डर के सैलाब में बहते जा रहे, सितम सहकर भी जीते जा रहे बहुतेरे शागीर्द बिछुड़ते जा रहे गांव से शहर तक सहमा-सहमा, खौफनाक मंजर गुजरते जा रहे, वक़्त करवट लेगा इक दिन "वत्स" झंझावातों में दिन-रात ढलते जा रहे। जनक्रांति कार्यालय से प्रकाशित।

साहित्त्यिक विचार..... ✍️बन्द मुठ्ठी सवा लाख की !!

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  साहित्त्यिक विचार..... ✍️बन्द मुठ्ठी सवा लाख की !! ✍️👉नागेंद्र कुमार सिन्हा  ✍️बन्द मुठ्ठी सवा लाख की !! एक समय एक राज्य में  राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा।  इतना सुनते ही  मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने  ₹6000/- का कर्ज लिया ।  नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में "चार आने दक्षिणा" स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए । पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !! बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा !!!  गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं।  लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली रु10,000/- से शुरू हुई। रु 10,000/