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भगवतीचरण वोहरा की शहादत: इतिहास के पन्नों से

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  भगवतीचरण वोहरा की शहादत: इतिहास के पन्नों से जनक्रांति कार्यालय से कल्पना पांडे भगवती चरण के दादाजी के बारे में एक मजेदार कहानी है। उस समय वह एक रुपया प्रतिदिन कमाते थे, और एक रुपया कमाने के बाद वह काम करना बंद कर दिया करते थे :कल्पना पांडे शेष भाग....   शव के पास कोई जंगली जानवर नहीं पहुंचा लेकिन खून में बड़ी-बड़ी चींटियां जमा हो गईं। उनके पास फावड़ा या कुदाल नहीं था, इसलिए शव को खोदकर दफन भी नहीं कर सकते थे। शव जलाते तो धुंए और दुर्गंध से पुलिस को खतरा है। कुछ बाल काटकर स्मृति के रूप मे रख लिया गया। अंत में कोई रास्ता न देख लाश को एक चादर मे बांधकर लाश को नदी के बहा दिया गया, लाश ऊपर तैरे नहीं इसके लिए चादर को भरी पत्थरों से भर कर पानी मे डुबा दिया गया। और भगवती चरण को जल समाधि दी गई। सभी लोग घर लौट आए और जोर-जोर से अपने प्रिय क्रांतिकारी को श्रद्धांजलि दी। इस घटना को लेकर यशपाल आजन्म खुद को ही दोषी ठहराते रहे। भगवतीचरण की मृत्यु पर, चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा कि उनका दाहिना हाथ कट गया है। इसके बाद इन क्रांतिकारियों ने कई दिनों तक जेल परिसर अध्ययन किया और योजना को पुख्ता बनाया। कुछ दि

भगतसिंह के साथी और क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा के शहादत पर लेख

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भगतसिंह के साथी और क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा के शहादत पर लेख जनक्रांति कार्यालय से कल्पना पांडे भगवतीचरण वोहरा की शहादत: इतिहास के पन्नों से भगवती चरण के दादाजी के बारे में एक मजेदार कहानी है। उस समय वह एक रुपया प्रतिदिन कमाते थे, और एक रुपया कमाने के बाद वह काम करना बंद कर दिया करते थे :कल्पना पांडे                                                           समाचार डेस्क/भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 22 मई, 2022)। भगत सिंह के महत्वपूर्ण साथी भगवतीचरण वोहरा का जन्म 4 नवंबर, 1903 को लाहौर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। वे एक गुजराती ब्राह्मण थे। उनके पिता पंडित शिवचरण वोहरा रेलवे में एक उच्च पदस्थ अधिकारी थे। उन्हें अंग्रेजों द्वारा 'रायसाहब' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। चूंकि उस समय टाइपराइटर नहीं था, इसलिए भगवती चरण के दादाजी आगरा को जीवन निर्वाह के लिए लिखते (किताबत) थे। उनके पूर्वज गुजरात से आगरा और आगरा से लाहौर चले गए। उपनाम वोहरा (संस्कृत मूल: व्यूह) का अर्थ उर्दू में व्यापारी भी है। माना जाता है कि भगवतीचरण के परिवार ने अपना अंतिम नाम खो द