भगवतीचरण वोहरा की शहादत: इतिहास के पन्नों से
भगवतीचरण वोहरा की शहादत: इतिहास के पन्नों से
जनक्रांति कार्यालय से कल्पना पांडे
भगवती चरण के दादाजी के बारे में एक मजेदार कहानी है। उस समय वह एक रुपया प्रतिदिन कमाते थे, और एक रुपया कमाने के बाद वह काम करना बंद कर दिया करते थे :कल्पना पांडे
शेष भाग....
शव के पास कोई जंगली जानवर नहीं पहुंचा लेकिन खून में बड़ी-बड़ी चींटियां जमा हो गईं। उनके पास फावड़ा या कुदाल नहीं था, इसलिए शव को खोदकर दफन भी नहीं कर सकते थे। शव जलाते तो धुंए और दुर्गंध से पुलिस को खतरा है। कुछ बाल काटकर स्मृति के रूप मे रख लिया गया। अंत में कोई रास्ता न देख लाश को एक चादर मे बांधकर लाश को नदी के बहा दिया गया, लाश ऊपर तैरे नहीं इसके लिए चादर को भरी पत्थरों से भर कर पानी मे डुबा दिया गया। और भगवती चरण को जल समाधि दी गई। सभी लोग घर लौट आए और जोर-जोर से अपने प्रिय क्रांतिकारी को श्रद्धांजलि दी।
इस घटना को लेकर यशपाल आजन्म खुद को ही दोषी ठहराते रहे। भगवतीचरण की मृत्यु पर, चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा कि उनका दाहिना हाथ कट गया है। इसके बाद इन क्रांतिकारियों ने कई दिनों तक जेल परिसर अध्ययन किया और योजना को पुख्ता बनाया। कुछ दिनों बाद सभी बोर्स्टल जेल के बाहर तैयार हो गए, लेकिन भगत सिंह की ओर से भागने की तैयारी नहीं दिखाई पड़ी, और उनको लेकर पुलिस की गाड़ी चली गयी। चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद भगत सिंह ने कहा, "हमारा तुच्छ बलिदान उस जंजीर की कड़ी है जिसका सौन्दर्य कॉमरेड भगवतीचरण वोहरा के दुखद लेकिन गौरवपूर्ण बलिदान और हमारे प्रिय योद्धा आजाद की गरिमामयी मृत्यु से निखरा हुआ है”।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कल्पना पांडे की संप्रेषित आलेख कार्यालय से प्रकाशित व प्रसारित।
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