नफरतों की भेंट
नफरतों की भेंट
##नफरतों की भेंट
नफरतों के भेंट चढ़ते जा रहे ,
कुछ हमारे कुछ तुम्हारे जा रहे,
बोहान से फैलाए गए वायरस ,
डर के सैलाब में बहते जा रहे,
सितम सहकर भी जीते जा रहे
बहुतेरे शागीर्द बिछुड़ते जा रहे
गांव से शहर तक सहमा-सहमा,
खौफनाक मंजर गुजरते जा रहे,
वक़्त करवट लेगा इक दिन "वत्स"
झंझावातों में दिन-रात ढलते जा रहे।
जनक्रांति कार्यालय से प्रकाशित।
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