काव्य रचना : मैं

 मैं

रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा


मैं                        प्रमोद कुमार सिन्हा

मैं मैं का शोर जगत में मचा है,चहूँ ओर
अन्दर बाहर सब जगह साँझ और भोर
बकरा में में कहता कटता उसका शीश
रे मन मैं मैं करता कैसे मिलेंगे तुझे ईश
मैं मैं करता राजा जाता छोड़े है जागीर
मैं मैं से दुनिया नाश का तीर है गंभीर
मंदिर देखा मस्जिद देखा मौलाना पीर
बड़े बड़े बोल के पीछे मैं का होता तीर
राजा दुःखी प्रजा दुःखी मैं का है भाव  ,
मैं बोलपन छोड़ जग में बदलो स्वभाव
मैं पन का बोध छूटे नाही करो जो दाव
घट भीतर झाँको वहाँ ना है बिलगाव
अन्दर शांति बाहर शांति परमशान्ति
मैं पन के कारण जग में भ्रांति ही भ्रांति
अहम में चुड़ सभी हो रहे हैँ मतवारी ,
नेता -प्रजा -पार्टी सबमें मैं की लाचारी
बड़े बड़े गुरु मंडलेश्वर में मैं की बीमारी
गुरु मस्त शिष्य पस्त आश्रम का होड़
काम क्रोध लोभ मोह मद है गठजोड़
गुरु मालामाल चेला कंगाल है यही रीत
पहुंचे ना मैं दर पे पाये ना मधुर संगीत
कुछ कम लिखा कुछ ज्यादा मैं कारण
भुला ना मैं को कैसे होय हिय जागरण विनती करता कर जोड़ सभी जनों से
बतला दो भैया कोई भी हो यदि उपाय
करता करता थक गया हूँ क्या बतलाऊं
छूट नहीं रहा मैं बोध कैसे मन से जाय
कोई तो बतावे छूटे जिससे मैं का बोध
ईश कृपा बिना मिटता ना मैं उदघोष ।।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशक/सम्पादक द्वारा प्रकाशित व प्रसारित ।

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