ग्रुप नहीं परिवार है ये.....
ग्रुप नहीं परिवार है ये.....
सम्प्रेषित : नागेंद्र कुमार सिन्हा
काव्य..... आलेख....
ग्रुप नहीं परिवार है ये.....
मन ऐसा रखो की
किसी को बुरा न लगे।
दिल ऐसा रखो कि
किसी को दुःखी न करे।
रिश्ता ऐसा रखो कि
उसका अंत न हो।
हमने रिश्तों को संभाला है,
मोतियों की तरह
कोई गिर भी जाए तो
झुक के उठा लेते हैं ।
ग्रुप नहीं ये परिवार है,
बसता जहाँ प्यार है।
सुख के तो साथी हज़ार हैं
यहां सब जिंदगी के आधार हैं
अपनों सा प्यार है यहाँ
इसके लिए सबका आभार है
काम हो कोई तो बता देना
इस ग्रुप में हर कोई तैयार है
सब को साथ जोड़ने के लिए
सभी का दिल से आभार है
बांटना है तो बांट लो खुशी…
क्योंकि आंसू तो सबके पास हैं..!!
🙏🏻🙏🏿🙏🏽 हरि बोल हरि 🙏🏾🙏🙏🏼
जनक्रांति प्रकाशन ।
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