अध्यात्म विचार : विश्वकर्मा जयंती 2021 पर विशेष
अध्यात्म विचार : विश्वकर्मा जयंती 2021 पर विशेष
जनक्रांति कार्यालय से ज्योतिष पंकज झा शास्त्री 9576281913
भगवान विश्वकर्मा पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है : पंकज झा शास्त्री
अध्यात्म डेस्क,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 12 सितंबर, 2021)। 17 सितंबर को मनाई जाएगी विश्वकर्मा जयंती कब और कैसे मनाये और इससे क्या लाभ होता है। साल 2021 में कब है विश्वकर्मा पूजा का पावन पर्व और इसका महत्व।
जनक्रांति अध्यात्म डेस्क पर अध्यात्मिक विचार से जानते है ।
भगवान विश्वकर्मा पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करने से व्यापार में बढ़ोत्तरी और मुनाफा होता है।
विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है, जिन्होंने ब्रह्मा जी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया। जानते हैं साल 2021 में कब है विश्वकर्मा पूजा का पावन पर्व और इसका महत्व।
विश्वकर्मा पूजा का पावन पर्व हर साल उस दिन मनाया जाता है जब सूर्यदेव सिंह राशि से कन्या राशि मंक प्रवेश करते हैं, इसलिए इस दिन को कन्या संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है। इस बार विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 2021, दिन शुक्रवार को है।
ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञात नही है यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है।
प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित।
परन्तु महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः-
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥16॥
महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है।
शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है।
प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। " विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है
"विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः
अर्थात 👉🏻 जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है। वेदों में
विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात।
कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा ज्योतिष पंकज झा शास्त्री की ज्योतिषीय विचार प्रकाशित व प्रसारित ।
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