जाति गत जनगणना समाज के लिये घातक : प्रमोद कुमार सिन्हा

 जाति गत जनगणना समाज के लिये घातक : प्रमोद कुमार सिन्हा 

जनक्रांति कार्यालय से  राजेश कुमार वर्मा 

समाज में इस प्रकार की जनगणना से बिद्वेष की भावना बढ़ने से इनकार नहीं की जा सकती है । जातिगत जनगणना का एक ही मकसद हो सकता है, जाति - जाति में विद्वेष की भावना पैदा करो , फुट डालो और राज करो , यही तो मुख्य उद्देश्य नज़र दृष्टिगोचर हो रहा है

समाचार डेस्क,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 13 सितंबर, 2021 )। आजकल जातिगत जनगणना की माँग जोड़ पकड़ने लगी, खासकर बिहार विपक्षी नेता राजद के तेजस्वी यादव के कंधे से कंधे मिलाकर  मुख्यमंत्री नितीश जी सहित अन्य दस राजनीतिक पार्टियों सहित इस विन्दु पर माननीय प्रधान मंत्री से मुलाक़ात इस विन्दु पर मुखालात करना सोची समझी राजनीति का हिस्सा है । अब इसी विन्दु पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री  हेमंत शोरेन के अतिरिक्त अन्य दलों द्वारा उठाया जाना या अन्य अन्य प्रदेशों से इस प्रकार की जनगणना की माँग तूल पकड़ने से ना तो समाज को कोई भलाई होने जा रहा है और ना ही किसी जाति का ।  हाँ दीगर बात है की समाज में इस प्रकार की जनगणना से बिद्वेष की भावना बढ़ने से इनकार नहीं की जा सकती है । जातिगत जनगणना का एक ही मकसद हो सकता है, जाति - जाति में विद्वेष की भावना पैदा करो , फुट डालो और राज करो , यही तो मुख्य उद्देश्य नज़र दृष्टिगोचर हो रहा है, जब राजनीतिक पार्टी का धरातल जनता से खिसकने लगता है या पार्टियों की पकड़ जनता से कमजोर होने लगता है तो अपना धरातल तलाशने  जनता पर पकड़ मजबूत करने के लिये इस प्रकार की शगुफा से जन - जन में फुट डालने की अवधारना के साथ कोई ना कोई मुद्दा लेकर अपनी खिसकी हुई जमीं की मज़बूती के लिये उन्हें कोई मुद्दा चाहिये । जिसकी बदौलत कुर्सी पर पुनः ओ अपनी पकड़ मजबूत कर सकें ।


जातिगत जनगणना के पीछे मुलाधार नौकरी में आरक्षण ही प्रतीत होता है । हमारी जनसंख्या इतनी है की हमें नौकरी एवं अन्य अन्य क्षेत्रों में हमें जनसंख्या के आधार पर आरक्षण चाहिये । इसके अलावे तो कोई और विशेष तथ्य दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है ।
कुछेक काल पहले मण्डल - कमंडल का जोड़ शोर इतना फैला और समाज में विद्धवंस ऐसा फैला जिसके चलते जगह जगह आंदोलन खून खराबा और अच्छे अच्छे नवयुवकों को इसका शिकार होना पड़ा । कितने कालकलवित हो गये।  ये थे मण्डल कमंडल का दुश्परिणाम , इसमें किसी को कोई फायदा तो नहीं हुआ लेकिन राजनीतिज्ञों को अपनी भूमि और भूमिका का चमकाने का मौका अवश्य ही मिल गया ।  अब समाज में विधवानशत्मक गतिविधियां ही चलानी है राजनीतिज्ञों की अपनी पकड़ मजबूत करने के लिये तो बार बार क्यों एक ही बार में संविधान में फलाना फलाना जाति के फलाना फलाना सीट, पद आरक्षित कर दो, आरक्षण के आधार पर डाक्टर, इंजिनियर प्रशासनिक पदाधिकारी , राजनेता, प्रधानमंत्री से लेकर संतरी तक सैक्षनिक , गैर सैक्षनिक , सरकारी , अर्धसरकारी , प्राइवेट सबों में कर देश को मझधार में डूबा तो चरितार्थ यही होगा हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे । मेरे लिखने का अभिप्राय यही है की इस प्रकार की कुत्सित मानसिकता आमजन में विद्वेष की भावना पैदा करने वाली बातों से बचा जाना श्रेयस्कर प्रतीत होता है । अपनी गर्दन बचाने की एवज में हम अन्य की गर्दन ही मरोड़ लें ये कहाँ का न्याय है ..?
अब रही ये आरक्षण की बात बाबासाहेब अम्बेडकर आज जिन्दा होते तो उन्हें अपने द्वारा आरक्षण विन्दु लागू करने की नियत और अवधारना मात्र दस वर्ष के बजाये द्रोपदी की चीड़ की भांति बढ़ता ही जा रहा है तो आरक्षण की कोई अवधारना ही नहीं करते या किसी कोने में छिपकर आँसू बहा रहे होते, आज आरक्षण के नाम कैसा कैसा खिलवाड़ हो रहा है। आरक्षण के जो वास्तविक हक़दार हैँ उनको प्राप्त ना होकर जो एकबार आरक्षण से लाभान्वित हो गये हैं उनके परिवार पुस्त दर पुस्त ओ लाभ ले रहें हैं । यहाँ तक ही नहीं वास्तविकता है जो आरक्षण का लाभ लेते हुए उच्चतम पद पर हैं । उनके बच्चे भी स्कूल  कॉलेज में वजीफा पा रहे हैं । क्या ये न्यायोचित है..? और जिसे आरक्षण का लाभ अभी तक नहीं मिला है चाहे ओ कितना भी शिक्षित है ओ इस लाभ से वंचित है क्योंकि उसकी उतनी दूर तक तो पहुँच ही नहीं है ।


ऐसा क्यों है क्योंकि आरक्षण का लाभ अभी तक जातिगत रहा है, इसलिए जातिगत जनगणना की अबधारना एक कुत्सित मानसिकता का प्रतिबिम्ब के सिवाय और कुछ नहीं, लोग अपनी गोटी सेकनें के लिये इस प्रकार की शगुफा छोड़ते रहते हैं ।
  जहां तक जनगणना का आधार है ओ आर्थिक होना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत लाज़िमी है । आज समाज में वर्ग विभेद , जाति विभेद वर्ण विभेद के पीछे मुख्य कारण आर्थिक पिछड़ापन ही है । समाज में कोई तो दूध मलाई में डूबा हुआ है और कोई कोई तो रोटी रोटी के लिये मोहताज़, ये बहुत बड़ी खाई है जिसे पाटना क्या जरूरी महसूस नहीं होता है राजनीतिज्ञों को..? इस विन्दु पर सभी मौन क्यों हैं..? कोई भी तो है राजनीतिज्ञ जो इस विन्दु पर सहजता पूर्वक विचार करे , समाज पिछड़ने के पीछे मुख्यरूप से जिम्मेवार आर्थिक है तो जातिगत जनगणना का आधार..? आइये हम सभी वैमंस्य्ता त्याग कर तहे दिल से इसे स्वीकार करें और इस पर यथोचित कदम उठायें , नहीं तो ओ दिन दूर नहीं है जब हम ही नहीं ये राष्ट्र ही परतंत्र हो जायेगा । हम जातिगत जनगणना अवधारना पर ही अटके रहेंगे और मुसलमान आबादी के आधार पर सभी पर कब्ज़ा जमायेगा , ये लेखक के अपने विचार हैं । इससे किसी को कोई ठेस पहुँचती है तो क्षमाप्रार्थी हूं । उपरोक्त विचार प्रमोद कुमार सिन्हा द्वारा प्रेस कार्यालय को दिया गया।

 

जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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