फ्लैट नं 467 और अस्सी साल का अफ़सर : मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डॉ० मनोज कुमार

फ्लैट नं 467 और अस्सी साल का अफ़सर : मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डॉ० मनोज कुमार 

    सुप्रसिद्ध डॉ॰ मनोज कुमार मनोवैज्ञानिक विश्लेषक 

पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 21 जुलाई,2020 ) । धुंआ खींच बेटा धुंआ ! अस्सी साल हो गये मुझे परिवार की गाङी और नौकरी की जिम्मेदारी को निभाते हुए ! सीढीयों से ऊपर चढते हुए जयंत बाबू ने अपने पोते मयंक पर तंज कसा।बङे बेफ्रिकी से वह युवा सिगरेट के कश लिए जा रहा था।जयंत बाबू के चश्मे पर पङे बारिश की बूंदे उनके व्यक्तित्व की चमक दिखा रहें थे। अपने कुरते से पानी के छीटें साफ करते हुए आसमान की ओर देखा।मयंक के सिगरेट के छल्ले गोल-गोल बादलों से उमङते-घुमङते दिख रहें थे। अपनी तीसरी पीढ़ी में इस तरह के व्यवहार देख उनके मन में कसक पैदा हो रही थी। आजकल के युवा अपने बुजुर्गों का ख्याल क्यों नही रखतें।

ये सवाल उनके मन में कौंध रहा था। बार-बार वह अपने जीवन में झांकने की कोशिश कर रहे थे। कोई बीस साल पहले पटना सचिवालय से उनकी सेवानिवृत्ति हुयी।अपने काम और जज्बे से वह बिहार विधान सभा कार्यालय में नं एक की पोजिशन में रहें।विपक्ष हो या सत्तारूढ़ पार्टियां सबके लिए ईमानदार रहें ।जिस आयोग से वह चयनित हुए थे। उनको वहाँ भी उच्च कुर्सी मिली थी। अपने समय में वह सचिवालय की सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए सुर्ख़ियों में आये थे। दरअसल जब से यह लौकडाउन लगा है। तब से उनमें पुराने दिन को लेकर ही ख्यालों में डूबे रहते हैं। सरकार की दी हुयी गाङी,समय पर मिला वेतन बाबूओं का सलाम ठोकना और ऑफिस में बरकरार ईज्जत उनके मन में एक अजीब सी टीस लेकर आया है। पत्नी के जाने के बाद बेटा और बहू घर में हैं। पेंशन घर की शान में खर्च हो रहें ।परिवार में सभी सदस्य है पर न जाने क्यो जयंत बाबू खुद को घर में एक वस्तु की तरह महसूसते हैं। पोता जब छोटा था तब उसके देखभाल में समय गुजर जाया करता था लेकिन अब तो सब व्यस्क हो गये हैं और उसी के साथ व्यस्त भी।क्या करू कहां जाउं इसी उधेङबुन में जयंत बाबू ने मुझ पर फोन लगाया था।

कोरोना की इस महामारी में घर से निकलना मेरे लिए भी दुश्वार हो रहा था। जयंत बाबू के रूंधे गले और आवाज से अवसाद के लक्षण पता चल रहे थे। वह बार-बार जीकर क्या करें,इस महामारी में मेरे लिए  मौत की घङी क्यों अपने सूई को धीमे कर गयी है।
ऊफ! आज ये रविवार का दिन और जयंत बाबू उदास।सबकी सुनने वाले अफसर।नेता ,विधायकों के फेवरेट 
आज गुमनाम ।मैनें तय किया की अपनी पसंदीदा चाय फिर कभी पी लूंगा ।मास्क ,सेनेटाइजर,और डिस्टेन्स को ध्यान में रखते हुए अपने स्कूटर की रफ्तार को 35 से बढाकर 40 कर दिया और पटना के छज्जूबाग स्थित उस अपार्टमेंट के 468 फ्लैट में पहुंचा ।बच्चों की सुविधा के लिए 2001 में उन्होंने दो फ्लैट रिटायरमेंट के पैसे से लिए थे ।

अलग-अलग फ्लैट को बिल्डर से गुजारिश कर एक ही रास्ता से इंट्री रखवायी थी।ताकि वह परिवार में खिलखिला सके और नन्हें पोते की किलकारी सुनें।मैं दरवाजे पर खङा इंतजार में फिर किसी ने बताया कि साहब का फ्लैट अंदर से बंद कर 467 हो गया है। वह वहीं मिलेगें।अंदर गया ।धुप्प अंधेरा।एक तरफ मच्छरदानी में लिपटा उनका पुराना पलंग।रात वाला शायद जूठा बर्तन।एक बंद पङा एयरकंडीशन।दो जोङी जूते।कुछ किताबें शायद उनमें एक किताब मेरे से परिचित रही होगी।गिरो-थेरेपी !हां यही कुछ ।मेरी तरफ देखते हुए बोले मुझे यकीन था डॉ॰ आप जरूर आयेंगें।मैने अपने हाथों में रखे पर्सीव्ड स्ट्रैश स्केल को उनके टेबल पर रखते हुए खुद को सेनेटाइज किया।मेरे आग्रह पर वह बैठ गये।प्लास्टिक के टेबल पर मैं भी आसीन होकर उनसे दो गज की दूरी पर उनकी बातो में रम गया।

दरअसल इस वैश्विक महामारी में हमारे समाज में बुजुर्गों की मनोदशा भी बिगङ रही है। उनमें सम्मान और संवाद की आवश्यकता आन पङी है। यह समय ऐसा है की उम्रदराज महिलाओं व पुरूषों को उतना ही महत्व दिये जाये जितने की हम अपने बच्चों और अन्य सदस्यों को दे रहें ।
एकाकी जीवन उनके उत्साह और अभिप्रेरणा में कमी ला रही है। विगत मार्च 2020 से अबतक हजारों ऐसे मामले आयें हैं। जो उनमें व्याप्त अवसाद को भी दिखा रहा।जरूरत है कि अपने बुजुर्गों का ख्याल रखा जाये।उनसे उचित संवाद और उनकी भावनाओं को कुंद होने से बचाया जाये।


-लेखक डॉ॰ मनोज कुमार एक जाने-माने मनोवैज्ञानिक विश्लेषक हैं। इनका संपर्क नं- 9835498113 है।https://bit.ly/2WD6IjC

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma 

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