"लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की हत्या अजीब देश में विडंबना है " : कवि विक्रम क्रांतिकारी

"लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की हत्या अजीब देश में विडंबना है " : कवि विक्रम क्रांतिकारी 

जो सभी के न्याय लिए आवाज उठाता है , आज आए दिन उसी पर हमले हो रहे हैं। 

दोस्तों आज हम देख रहे हैं कि मीडिया जगत में लगातार पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं ,पत्रकारों की हत्या की जा रही है कलम को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं कहीं ना कहीं पत्रकारों पर पुलिस प्रशासन का भी दबाव बनाया जा रहा है।

दोस्तों पत्रकार ही समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर कलम के सहारे समाज में हर जातिवाद पूंजीवाद सामंतवादी विचारधाराओ की दृष्टिकोण के भावनाओं को दूर रखकर समाजवादी, उदारवादी आचरण की भावनाओं का समाज में  संदेश हम जनता तक अपनी कलम के माध्यम से पहुंचाते हैं 

इसीलिए शायद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी मीडिया को ही कहा जाता है। 

जब तक हमारे अन्नदाता और पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानून नहीं बना दिया जाता है। आखिर क्यों नहीं मीडिया और जो हमारे अन्नदाता है उनके लिए सुरक्षा कानून बनाया जाता है... ? ? : कवि विक्रम क्रांतिकारी - चिंतक /पत्रकार/ आईएएस मेंटर दिल्ली विश्वविद्यालय - अध्येता 

@SAMASTIPUR OFFICE REPORT

NEW DELHI,INDIA ( JAN-KRANTI HINDI NEWS BULLETIN OFFICE 23 JULY,2020 ) ।
जो सभी के न्याय लिए आवाज उठाता है , आज आए दिन उसी पर हमले हो रहे हैं। दोस्तों आज हम देख रहे हैं कि मीडिया जगत में लगातार पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं ,पत्रकारों की हत्या की जा रही है कलम को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं कहीं ना कहीं पत्रकारों पर पुलिस प्रशासन का भी दबाव बनाया जा रहा है। ऐसा ही गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी के साथ भी हुआ उनको बदमाशों ने गोली से मारा और सरकार के पास सांत्वना देने के सिवा कुछ भी नहीं होता है ऐसे मामलों में आखिर क्यों... ?

दोस्तों पत्रकार ही समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर कलम के सहारे समाज में हर जातिवाद पूंजीवाद सामंतवादी विचारधाराओ की दृष्टिकोण के भावनाओं को दूर रखकर समाजवादी, उदारवादी आचरण की भावनाओं का समाज में  संदेश हम जनता तक अपनी कलम के माध्यम से पहुंचाते हैं एक पत्रकार ही और पत्रकार अपना कर्तव्य समझ अपनी ईमानदारी से जनता के बीच रहकर पूरे शिद्दत के साथ समाज के वंचित लोगों का आवाज उठाते हैं । एक पत्रकार ही किसानों ,वंचित तबकों , गरीब, अमीर से लेकर फिल्मी जगत, विद्यार्थियों ,व्यापारियों ,आदिवासियों ,दलितों और हर उस निचले कमजोर वर्गों की दबी कुचली आवाज को सरकार तक एक पत्रकार ही अपनी कलम के सहारे से पहुंचाता है। इसीलिए शायद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी मीडिया को ही कहा जाता है। दूसरी तरफ हमारे अन्नदाता जोकि हम सभी के पेट को भरता है आज  आजादी के 72 साल बीत जाने के बावजूद भी आज तक अन्नदाता को उसके मेहनत का उचित कीमत नहीं मिलता और हमेशा वंचित रहता है जो सब का पेट भरता है वह किसान आज आए दिन फंदे पर लटकता रहता है। दोस्तों मैं कई बार आवाज उठा चुका हूं और आगे भी उठाता रहूंगा जब तक हमारे अन्नदाता और पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानून नहीं बना दिया जाता है। आखिर क्यों नहीं मीडिया और जो हमारे अन्नदाता है उनके लिए सुरक्षा कानून बनाया जाता है ..?

दोस्तों पत्रकार पर हमला करने का मतलब होता है कि हमारे संविधान के चौथे स्तंभ पर हमला किया गया जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऐसे अपराधी खतरनाक है। पत्रकारों पर हमला करने वालों को फांसी के सिवा कुछ नहीं होना चाहिए।
आज पत्रकार मारे जा रहे हैं ,कुचले जा रहे हैं ,गिरफ्तार हो रहे हैं। अगर कोई भी पत्रकार लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सच का खुलासा करता है तो उसे माफिया मार दे रहे है । दोस्तों जहां तक लोकतंत्र के खतरों की बात है तो सोशल मीडिया आता है, तब खतरा पैदा हो जाता है, गठबंधनवादी सियासत पर कुछ लिखो तब खतरा पैदा हो जाता है, खनन माफिया ,शिक्षा माफिया, वन माफिया, दवा माफिया के भेद खोलो तो खतरा पैदा हो जाता है किसी सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर लिखो तो खतरा पैदा हो जाता है और इसके लिए तमाम पत्रकारों को अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ रही है। क्या आपको यह नहीं लगता कि यह सब माफिया और राजनैतिक दल के सांठगांठ से ही संभव होता है.. ? आपने भी देखा कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कानपुर का कुख्यात अपराधी विकास दुबे राजनैतिक संरक्षण के बलबूते ही वर्षों से अत्याचार अपना फैलाता आ रहा था । आखिर क्यों इतनी गंदी राजनीति करते हो...?

दोस्तों मनुष्य के साथ शारीरिक हिंसा सबसे जघन्यतम कृत्य माना जाता है, यदि कोई पत्रकार सच का खुलासा करता है तो हम देखते हैं कि उसको माफिया मार डालते हैं। वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए ऐसा करता है । ऐसे में हमारी पुलिस व्यवस्था न्यायपालिका और सरकार को भी सवालों के घेरे से बाहर नहीं रखा जा सकता ।
दोस्तों प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकार के लिए काम करने वाली अमेरिकी संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स भारतीय अधिकारियों से भी पत्रकारों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार आरोपियों के खिलाफ करवाई सुनिश्चित करने की उम्मीद करती है। कुछ समय पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा था कि हम निश्चित तौर पर विश्व में कहीं भी पत्रकारों के खिलाफ हो रहे किसी भी तरह के उत्पीड़न और हिंसा को लेकर चिंतित है और इस मामले में भी हमारा यही रुख है कि संविधान के चौथे स्तंभ का हत्या ना हो।

दूसरी तरफ देखे तो दोस्तों  माना जाता है कि राजनीति और मुद्रा आज समाज की हर छोटी-बड़ी गतिविधि की शीर्ष नियंता है। हमारे देश में प्रजातंत्र आए हुए लगभग 72 वर्ष हो चुके हैं ।लेकिन आज भी हम देखते हैं कि भारतीय जनता की सोच पूरी तरह से प्रजातांत्रिक नहीं हो पाई है । प्रजातंत्र में राजनीतिक दल ही सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हीं के बीच में राजनीतिक शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा होती है लेकिन हम अब भी किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में रहते हैं जो राजनीतिक क्षेत्र में मार्गदर्शन हमें प्रदान कर सकें।

इसीलिए राजनीतिक दलों के अगुआ भी धीरे-धीरे निरंकुश प्रजातंत्रवादी हो गए हैं और वे अपने दल में किसी भी दोयम दर्जे के नेता का कद ऊपर नहीं उठाने देना चाहते हैं ताकि वह कभी भी उनके लिए एक चुनौती बनकर न उभरे ।
इसी अंतर्द्वंद के प्रभाव से अन्य क्षेत्रों की तरह पत्रकारिता भी भला असंपृक्त कैसे रह सकती है । इन्हीं सभी अर्थों में  रिपोर्टिंग के लिए राजनैतिक पार्टियां उन्हें अलग से कई बार तो मुंह मांगी कीमत और भारी -भरम सुविधाएं से नवाजती रहती है । ऐसे में आप सोच सकते हैं कि सुविधाजीवी पत्रकारिता हमारे समय के साथ, देश के साथ जनता के साथ भला किस तरह न्याय कर सकती है और "ऐसी व्यवस्था में ईमानदार पत्रकार कैसे सुरक्षित रह सकते" हैं। सच्चाई  तो आप भी जानते हैं की राजनेता आज किस तरह अपना- अपना व्यक्तित्व को बेचने में मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं आप मेरे बात को इतना ही समझ लीजिए आज की पत्रकार तो महात्मा गांधी जी भी थे । दोस्तों अक्सर देखने में आता है कि कोई भी ईमानदार पत्रकार जब भ्रष्टाचार, अपराध जैसे खबरों को दिखाने का साहस करता है तो उसके कलम को तोड़ने की भरपूर प्रयास की जाती है। कहीं ना कहीं यह सब राजनैतिक दलों का माफिया के साथ सांठगांठ का ही परिणाम है । आखिर कब हमारे पत्रकारों और अन्नदाता के लिए सुरक्षा कानून बनाया जाएगा ? दोस्तों पूरी दुनिया देख रही है आज जब हम कोविड-19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से घरों में कैद हैं या लॉकडाउन के दौरान कैद थे तब भी हमारे पत्रकार बंधु ही इस चुनौतीपूर्ण समय में सामने आकर पल-पल की खबरें हमारे तक पहुंचाते रहे और हमारे अन्नदाता इस वैश्विक महामारी में पूरी दुनिया के लिए लॉकडाउन था तब भी खेतों में डटे रहें पूरे परिवार के साथ दिन- रात मेहनत करते रहें ताकि देश का कोई भी व्यक्ति भूखे ना मरे। जिस प्रकार से हमारे खाद्य और उपभोक्ता मंत्री जी दंभ भर रहे थे कि देश में अनाज की पर्याप्त भंडारण है किसी को घबराने की जरूरत नहीं है लेकिन  यह कहना भूल गए की यह अनाज पैदा कैसे हुआ है किसने किया है ?दोस्तों मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि अगर हमारे देश के अन्नदाता अपने कर्तव्य को निभाते हुए खेतों में डटे नहीं हुए होते तो देश की अर्थव्यवस्था और भी गिरती और इस गिरती हुई अर्थव्यवस्था को हमारे अन्नदाता ही पटरी पर लाएंगे और जितने लोग कोरोना से नहीं मारे जाएंगे उससे कहीं अधिक लोग भूख से मारे जाते अगर देश के अन्नदाता अपने खेतों में दिन- रात एक करके अनाज को उपजाता नहीं तो लेकिन दुर्भाग्य है कि  हमारे देश के जो हमें पेट भरता है उसी के लिए हम कुछ विशेष नहीं सोचते और आज आजादी के बाद 72  वर्षों के बाद भी वैसे ही हमारा अन्नदाता वंचित है । आखिर कब हमारे पत्रकार और किसान भाइयों के लिए सुरक्षा कानून बनाया जाएगा ..?

कवि विक्रम क्रांतिकारी - चिंतक /पत्रकार/ आईएएस मेंटर दिल्ली विश्वविद्यालय - अध्येता लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं - स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित लेख । समस्तीपुर कार्यालय से राजेेश कुुुुुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Jankranti Publisher ...

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