#विश्वकर्मा-पूजन 2022 विशेष: भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें विश्व का पहला इंजीनियर माना गया है : पंकज झा शास्त्री

 #विश्वकर्मा-पूजन 2022 विशेष:

भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें विश्व का पहला इंजीनियर माना गया है : पंकज झा शास्त्री

जनक्रांति कार्यालय से ज्योतिष विचार


हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा पूजा का अधिक महत्व होता है क्योंकि विश्वकर्मा जी को हिन्दू ग्रंथों के मुताबिक सबसे पहले वास्तुकार माने गए हैं : पंकज झा शास्त्री


विश्वकर्मा पूजा हेतु शुभ मुहूर्त 17 सितम्बर को दि 07:27 से दि 01:30 तक उत्तम

अध्यात्म डेस्क/दरभंगा/मधुबनी/समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 सितंबर, 2022 ) । विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर के दिन कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है,वैसे भारत के कुछ राज्यों मे विश्वकर्मा जयंती जन्म 7 फरवरी को मनाया जाता है। जिस कारण विश्वकर्मा जयंती वर्ष में दो बार मनाया जाता है। विश्वकर्मा पूजा को ही विश्वकर्मा जयंती और विश्वकर्मा दिवस के नाम से जाना जाता है । हिंदुओं के लिए यह दिन बहुत ही खास होता है क्योंकि इस दिन लोग अपने कारखानों और गाड़ियों की पूजा करते हैंँ।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में जन्‍म लिया था। भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और ऋग्वेद में होता है। इस बार विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर, शनिवार के दिन मनाई जाएगी।कई बार तिथि के हेराफेरी के कारण यह पर्व 18 सितम्बर को भी मनाया जाता है। परन्तु इस बार यह पर्व 17 सितम्बर को ही मनाई जाएगी।


भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें विश्व का पहला इंजीनियर माना गया है। मान्यता है कि हर साल अगर आप घर में रखे हुए लोहे और मशीनों की पूजा करते हैं तो वो जल्दी खराब नहीं होते हैं। साथ ही साथ कारोबार में विस्तार होता है। मशीनें अच्छी चलती हैं क्योंकि भगवान उन पर अपनी कृपा बनाकर रखते हैं। पूजन करने से व्यापार में वृद्धि होती है. भारत के कई हिस्सों में विश्वकर्मा दिवस बेहद धूम धाम से मनाया जाता है।


एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।


भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले, उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं. यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है।


हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा पूजा का अधिक महत्व होता है क्योंकि विश्वकर्मा जी को हिन्दू ग्रंथों के मुताबिक सबसे पहले वास्तुकार माने गए हैं।  इन्होंने कई राज्य जैसे हस्तिनापुर, स्वर्गलोक,लंका और इंद्रपुरी आदि का निर्माण किया। यही कारण है कि इस दिन कारखाने और कार्यालय आदि में पूजा किया जाता है। वहीं, मान्यताओं के अनुसार इस दिन फैक्ट्री, शस्त्र, बिजनेस आदि की पूजा करने से बिजनेस और रोजगार में तरक्की होती है।
विश्वकर्मा पूजा हेतु शुभ मुहूर्त 17 सितम्बर को दि 07:27 से दि 01:30 तक उत्तम रहेगा।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा ज्योतिष विचार कार्यालय से प्रकाशित व प्रसारित।

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