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अभी नया नया दो गज की है जो दुरी , पहले भी था ओ आज भी है मज़बूरी
अभी नया नया दो गज की है जो दुरी ,
पहले भी था ओ आज भी है मज़बूरी
बेगूसराय, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 27 अप्रैल,20 ) ।
प्रमोद कुमार सिन्हा
बेगूसराय, बिहार
अभी नया नया दो गज की है जो दुरी ,
पहले भी था ओ आज भी है मज़बूरी ,
हालात कुछ कुछ ऐसे ही बन गये हैँ ,
सम्पूर्ण विश्व में ये है बहुत ही ज़रूरी ,
अभी नया नया...........
सिर्फ दो गज जमीन की है जरुरत ,
इसी के लिए संसार मे होता शरारत,
लड़ाई -झगड़ा खून -खराबा क्यों ?
भाई -भाई दुश्मन बनें यही है शराफत ,
सिर्फ दो गज.......
दो गज ज़मीन में है पुरा संसार समाया,
हिन्दू -मुस्लिम -सिख -ईसाई की काया,
बड़े -बड़े किले महल छोड़ यहाँ से गये,
कहे प्रमोद विश्व में यही तो है सब माया
दो गज ज़मीन....
जब साथ में कुछ लेकर नहीं है जाना ,
फिर इसके लिये क्यों रोना -चिल्लाना,
पीर पैगम्बर भी खाली हाथ ही गये ,
झूठी शान की खातिर शोर क्यों मचाना
जब साथ में.......
दो पल की आयु दो पल ही पुरा परिवार
दो पल का महल अटारी दो पल संसार
भागम -भाग लगा रखा है खुद जीवन
जैसे लेकर जायेगा यहाँ से हाट -बाजार ।
समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रमोद कुमार सिन्हा की मूल कविता प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma
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