"प्रवासी मजदूरों की चिंता के बजाय राजनीतिक जंग जारी है" कवि विक्रम क्रांतिकारी

"प्रवासी मजदूरों की चिंता के बजाय राजनीतिक जंग जारी है"

                                    कवि विक्रम क्रांतिकारी


आखिर कैसा है यह अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस दोस्तों गोविड -19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण देश की अलग-अलग राज्यो से जिस प्रकार प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ और फिर उन्हें बीच में ही रोका गया बहुत से मजदूर हजारों किलोमीटर 7 से 8 दिन तक का सफर पैदल ही चल कर पूरा किए मजदूर :


राज्य सरकार अपने ही राज्य में और अपने ही शहर में रोजगार मुहैया कराएं मैं खुद बहुत से अपने जानने वाले गांव के लोगों से बात किया उनकी दर्द को समझा उनके लिए गांव में ही रोजगार की व्यवस्था कराने का मैं प्रयास करने जा रहा हूं : कवि विक्रम क्रांतिकारी

राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रसारित

नई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज कार्यालय 30 अप्रैल,20 ) । आखिर कैसा है यह अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस दोस्तों गोविड -19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण देश की अलग-अलग राज्यो से जिस प्रकार प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ और फिर उन्हें बीच में ही रोका गया बहुत से मजदूर हजारों किलोमीटर 7 से 8 दिन तक का सफर पैदल ही चल कर पूरा किए lदोस्तों हम जानते हैं कि कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए जारी लॉक- डाउन के बावजूद प्रवासी मजदूरों का हजारों किलोमीटर का सफर तय करके अपने गृह राज्य लौटने का सिलसिला अभी भी जारी है बुधवार को मुंबई -नासिक हाईवे पर एक मजदूर अपने कंधे पर बुजुर्ग पिता को बैठाकर जाता दिखा जो कि  दर्दनाक तस्वीर है जिस शहर को बनाने के लिए मजदूर अपना पूरा जीवन खपा देते हैं आखिर उसके साथ वह शहर क्यों नहीं खड़ा होता आखिर क्यों मजबूर होकर अपने गृह राज्य के तरफ उन्हें लौटना पड़ रहा है? सच्चाई यही है दोस्तों की अगर मजदूर अपने घर नहीं लौट आएंगे तो भूखे मर जाएंगे अब उनको कोई काम नहीं है जिससे वह अपना और अपने परिवार का पेट भर सके दोस्तों बहुत जरूरत है  कि अब  हर राज्य सरकार अपने ही राज्य में और अपने ही शहर में रोजगार मुहैया कराएं मैं खुद बहुत से अपने जानने वाले गांव के लोगों से बात किया उनकी दर्द को समझा उनके लिए गांव में ही रोजगार की व्यवस्था कराने का मैं प्रयास करने जा रहा हूं l
हजारों प्रवासी मजदूरों की खाली सड़कों पर पैदल चलते तस्वीरें देखकर बहुत दर्द हुआ पहले से ही कई चुनौतियों को झेलने वाला भारत के प्रवासी मजदूर इस लॉकडाउन की सबसे अधिक मार झेल रहे हैं दोस्तों भारत के 12 करोड़ प्रवासी मजदूर जिनमें से अधिकतर रोज कुआं खोदकर रोज पानी पीते हैं अपनी दिहाड़ी से अपना पेट पालते हैं और अपने परिवार को संभालते हैं साथ में गांव में भी पैसे भेजते हैं दोस्तों प्रवासी मजदूरों की चिंता की बजाय राजनीतिक जंग जारी है..l
दोस्तों अंतरराष्ट्रीय तौर पर मजदूर दिवस 1 मई 1886 को पहली बार मनाया गया अमेरिका के मजदूर संघों ने निश्चय किया था कि 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे और हड़ताल किए इस दौरान शिकागो की हेमाकिर्ट मे  बम ब्लास्ट हुआ इस पर पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिससे कई मजदूरों की मौत हो गई इसके बाद 1889 मे अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि नरसंहार में मारे गए निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन श्रमिकों का अवकाश रहेगा l दोस्तों किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है उद्योगपति मालिक या प्रबंधक मजदूरों को समझने की बजाय अपने आपको ट्रस्टी समझने लगे हैं दोस्तों इस वैश्विक महामारी में हमें अपने देश के कर्मठ मजदूर किसानों के लिए पहल करने की जरूरत है जिस तरीके से भयावक तस्वीर आ रही है बड़े-बड़े शहरों से जिस शहर को मजदूर किसान बनाया आज  शहर इनके साथ खड़ा नहीं है इस वैश्विक महामारी के बाद हमें व्यापक रूप से अपने गांव को समृद्ध बनाना है गांव में ही इन लोगों को रोजगार की व्यवस्था करना है आप सभी आगे आये  और इन स्वाभिमानी मजदूर किसानों के लिए हम सब मिलकर पहल करें l""जिनकी वजह से रहते हैं ऐश -ओ-आराम से पैसे वाले, नियत सच्ची होती है उनकी और हाथों में होते हैं छाले सभी को विश्व मजदूर दिवस की हार्दिक बधाई"""
कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया)-9069821319
दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता
 लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख हैं । 

समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रसारित किया गया। 

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