घरौंदा जो था एक सपनों का , आज वह हमसे टूट गया,

घरौंदा जो था एक सपनों का ,
             आज वह हमसे टूट गया, 

                                         प्रमोद कुमार सिन्हा बेगूसराय, बिहार


घरौंदा जो था एक सपनों का ,
             आज वह हमसे टूट गया,
प्याला में जो थोड़ा चाय था,
           मुँह तक आते आते छूट गया,
घरौंदा जो था एक..........
इसके लिये अश्क़ क्या बहाना,
           अश्क़ भी गालों तक लुढ़क,
नीचे आ भी ना पाया था,
           बीच में ही कैसे सूख गया,
घरौंदा जो था एक........
कब तक उसका शोक मनाता,
             जो मेरा कभी था ही नहीं,
सपना तो सपना ही था,
             ऑंखें खूली सपना टूट गया,
घरौंदा जो था एक.........
प्रमोद कैसे कैसे सपने,
             सजाया ही क्यों था जीवन,
रह गया जो पुरा अधूरा,
             जो टूट गया सो छूट गया.
घरौंदा जो था एक......
एक ना एक दिन टूटना है,
              सपना सच नहीं हो सकते,
जो सच हो सकते हैँ जीवन,
             ओ सपना नहीं हो सकते.
                 समस्तीपुर कार्यालय को प्रमोद कुमार सिन्हा द्वारा 

प्रकाशन हेतु समर्पित किया गया । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।Published by Rajesh kumar verma

Comments

Popular posts from this blog

महज सोलह दिनों में छह रेल सिग्नल-कर्मचारी कार्य करते हुए हो गए रन-ओवर

पुलवामा अटैक में शहीद हुए जवानों को ब्लड फ़ोर्स टीम के सदस्यों द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन विद्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग द्वारा किया गया आयोजित