सामाजिक समूह का चेहरा मोहरा दुख दर्द संघर्ष कैसा है इसे आज भारत की जनता बहुत अच्छे से देख रही है : योगेश सिंह पाल
सामाजिक समूह का चेहरा मोहरा दुख दर्द संघर्ष कैसा है इसे आज भारत की जनता बहुत अच्छे से देख रही है : योगेश सिंह पाल
समस्तीपुर कार्यालय की रिपोर्ट
लखनऊ,उत्तरप्रदेश ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 23 मई,20 )। रिसर्च एंटी करप्शन क्राइम इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष योगेश सिंह पाल इस सामाजिक समूह का चेहरा मोहरा दुख दर्द संघर्ष कैसा है ।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष योगेश सिंह पाल
इसे आज भारत की जनता बहुत अच्छे से देख रही है ।इसलिए आज भारत में प्रवासी मजदूर एक छीतरी विखरी जनसंख्या भले हो, किंतु बिखरे होने के बावजूद एक सामाजिक समूह है । उन सब के भीतर एक ही प्रकार का सामाजिक भाव है और यही उन्हें एक सामाजिक समुदाय में रूपांतरित करता है । लेकिन जनता आखिर कब तक सहन करें सहन शक्ति सहायता और सामर्थ्य की सीमा होती है अब लाक डाउन का चौथा चरण लागू हो गया है महा संकट मैं मेहनतकश मजदूर वर्ग बहुत परेशान है जो वास्तव में देश के निर्माता है इसमें भी सबसे अधिक पिसने वाला वर्ग दिहाड़ी मजदूरों का है जिसके पास कुछ भी नहीं है यही कारण है कि आज मानवता सड़कों और रेल पटरियों पर दम तोड़ रही है इसीलिए मजदूरों की उपेक्षा अनदेखी राष्ट्रीय शर्म का विषय बन रही है । समस्तीपुर कार्यालय से राजेेेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित ।
Published by Rajesh Kumar verma
समस्तीपुर कार्यालय की रिपोर्ट
लखनऊ,उत्तरप्रदेश ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 23 मई,20 )। रिसर्च एंटी करप्शन क्राइम इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष योगेश सिंह पाल इस सामाजिक समूह का चेहरा मोहरा दुख दर्द संघर्ष कैसा है ।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष योगेश सिंह पाल
इसे आज भारत की जनता बहुत अच्छे से देख रही है ।इसलिए आज भारत में प्रवासी मजदूर एक छीतरी विखरी जनसंख्या भले हो, किंतु बिखरे होने के बावजूद एक सामाजिक समूह है । उन सब के भीतर एक ही प्रकार का सामाजिक भाव है और यही उन्हें एक सामाजिक समुदाय में रूपांतरित करता है । लेकिन जनता आखिर कब तक सहन करें सहन शक्ति सहायता और सामर्थ्य की सीमा होती है अब लाक डाउन का चौथा चरण लागू हो गया है महा संकट मैं मेहनतकश मजदूर वर्ग बहुत परेशान है जो वास्तव में देश के निर्माता है इसमें भी सबसे अधिक पिसने वाला वर्ग दिहाड़ी मजदूरों का है जिसके पास कुछ भी नहीं है यही कारण है कि आज मानवता सड़कों और रेल पटरियों पर दम तोड़ रही है इसीलिए मजदूरों की उपेक्षा अनदेखी राष्ट्रीय शर्म का विषय बन रही है । समस्तीपुर कार्यालय से राजेेेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित ।
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