"महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में भी अन्नदाता ही बड़ी भूमिका निभाएंगे": कवि विक्रम क्रांतिकारी

"महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में भी अन्नदाता ही बड़ी भूमिका निभाएंगे" : कवि विक्रम क्रांतिकारी                                     

                         राजेश कुमार वर्मा की प्रस्तुति 


देश के किसान अग्रिम पंक्ति कोरोना योद्धा नामित किए बिना भी खाद्य की आपूर्ति कर रहे हैं किसान सच्चे कर्म योद्धा है ।

बरहाल कोरोना का कहर लंबा खींचा तो गांव और शहर दोनों के लिए स्थिति खराब हो सकती है 

इस वैश्विक महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में भी अन्नदाता ही बड़ी भूमिका निभाएंगे जिस तरह से औद्योगिक शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बदहवास पलायन हो रहा है यह चिंता की भी बात है ।

1943 के बंगाल के अकाल के समय लगभग 30 लाख लोग मारे गए थे ।

1966 -67 बिहार अकाल के कारण राज्य के प्रति व्यक्ति के कैलोरी उपभोग की मात्रा 2200 से घटकर कई इलाकों में 1200 तक सिमट गई थी और वर्ष 1972- 73 में महाराष्ट्र सूखे के कारण अनुमानित 1लाख 33 हजार  से भी  अधिक मौतें हुई थी

लॉकडाउन का देशव्यापी प्रभाव पड़ा है लेकिन देश में इस बार खाद्य संकट नहीं है समस्या आपूर्ति की तुलना में मांग की कमी है जिसके कारण फल दूध सब्जी का किसान संकट में है


                कवि विक्रम क्रांतिकारी, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली


 नई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 01 मई,20 ) ।  कोविड -19 महामारी भारत की ऐसी पहली प्राकृतिक आपदा के रूप में दर्ज की जाएगी जो खाद्य उपभोग के स्तर में गिरावट के बावजूद देश में भुखमरी का आंकड़ा दर्ज नहीं हैं इसका श्रेय हम अन्नदाता को देते हैं l दोस्तों 1943 के बंगाल के अकाल के समय लगभग 30 लाख लोग मारे गए थे वही 1966 -67 बिहार अकाल के कारण राज्य के प्रति व्यक्ति के कैलोरी उपभोग की मात्रा 2200 से घटकर कई इलाकों में 1200 तक सिमट गई थी और वर्ष 1972- 73 में महाराष्ट्र सूखे के कारण अनुमानित 1लाख 33 हजार  से भी  अधिक मौतें हुई थी इस महामारी और लॉकडाउन का देशव्यापी प्रभाव पड़ा है लेकिन देश में इस बार खाद्य संकट नहीं है समस्या आपूर्ति की तुलना में मांग की कमी है जिसके कारण फल दूध सब्जी का किसान संकट में है प्रशासनिक उपेक्षा के कारण लोग भूखे हो सकते हैं लेकिन भूख से मरेंगे नहीं इस आपदा के असली हीरो किसान ही हैं जिसके कारण वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली डिटेंशन सेंटर सामुदायिक रसोई में भोजन वितरण या पकाया जा रहा है यह सब बिना किसान के संभव नहीं है देश के किसान अग्रिम पंक्ति कोरोना योद्धा नामित किए बिना भी खाद्य की आपूर्ति कर रहे हैं किसान सच्चे कर्म योद्धा है l दोस्तों गांव के लिए अवसर भी है चुनौती भी है हमें कृषि क्षेत्र की जरूरत को समझते हुए तेजी से करने होंगे सुधार इस वैश्विक महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में भी अन्नदाता ही बड़ी भूमिका निभाएंगे जिस तरह से औद्योगिक शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बदहवास पलायन हो रहा है यह चिंता की भी बात है lक्या गांव और कृषि क्षेत्र इस अचानक बढे पलायन को कब तक सह पाएगा यह कह पाना मुश्किल है? माना तो यह भी जा रहा है कि हालात सुधरते ही  मजदूर फिर से शहरों की ओर कूच  करेंगे क्योंकि इनके लिए गांव में रोजगार के ना तो बहुत साधन है और ना ही शहर उन्हें गांव में रहने देगा बरहाल कोरोना का कहर लंबा खींचा तो गांव और शहर दोनों के लिए स्थिति खराब हो सकती है l दोस्तों लॉकडाउन के दौरान भी 50 हजार  टन गेहूं का निर्यात किया गया है पूरी दुनिया में खाद्य उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है हर देश अपनी जरूरतों से अधिक मात्रा खाद्य सुरक्षा के तौर पर स्टॉक करना चाहता है ऐसे में भारत के पास कृषि क्षेत्र में पर्याप्त अवसर है जिसे वह भूना सकता है खेती को लाभ में लाने और हाथ को काम देने के लिए मांग के हिसाब से काम करना होगा गैर जरूरी चीजों के बजाय ग्रामीण गतिविधियों को वहीदा दी जानी चाहिए निर्यात मांग को पूरा करने से खेती की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी फिर खेती घाटे का सौदा नहीं रहेगी और खेती के साथ-साथ उद्यमों में पशुधन डेरी बागवानी पोल्ट्री पर समान ध्यान देना होगा तब कहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों और खेतीहरो का उद्धार संभव है और  हमारा देश खेतों से सोना उगलेगा और फिर हम समृद्ध होंगे इस वैश्विक महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में भी अन्नदाता ही बड़ी भूमिका देखना निभाएंगे इसलिए सरकार को पहल करने की जरूरत है और किसान मजदूर के लिए सुरक्षा कानून बनाया जाए ।  कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया) 9069821319 दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख को राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित किया गया।
 Published by Rajesh kumar verma

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