जिंदा रहे तो फिर से आयेंगे बाबू तुम्हारे शहरों को आबाद करने ।

जिंदा रहे तो फिर से  आयेंगे   बाबू,
तुम्हारे शहरों को आबाद करने ।

    नागेन्द्र प्रसाद सिन्हा
          दिल्ली



प्रवासी मजदूर

जिंदा रहे तो फिर से  आयेंगे   बाबू 
तुम्हारे शहरों को आबाद करने ।
वहीं मिलेंगे गगन चुंबी इमारतों के नीचे
प्लास्टिक  के  तिरपाल से ढकी  झुग्गियों में ।
चौराहों पर अपने औजारों के साथ
फैक्ट्रियों से निकलते काले धुंए जैसे होटलों और ढाबों पर खाना बनाते ।
बर्तनो को धोते
हर गली हर नुक्कड़ पर 
फेरियों मे रिक्शा खींचते।
आटो  चलाते  रिक्शा चलाते पसीने में तर  बतर होकर तुम्हे तुम्हारी  मंजिलों तक पहुंचाते ।
हर कहीं फिर  हम मिल जायेंगे  तुम्हे 
पानी पिलाते 
गन्ना पेरते ।
कपड़े धोते , प्रेस करते ,   
सेठ से किराए पर ली हुई रेहड़ी  पर 
समोसा तलते या 
पानीपूरी बेचते ।
ईंट भट्ठों  पर ,
तेजाब से धोते जेवरात को , 
पालिश करते स्टील के बर्तनों को ।
मुरादाबाद ब्राश के कारखानों से लेकर
फिरोजाबाद की चूड़ियों तक ।
पंजाब के हरे भरे लहलहाते  खेतों से   लेकर  लोहा मंडी गोबिंद गढ़ तक।
चाय बगानों से लेकर जहाजरानी तक ।
अनाज  मंडियों  मे माल ढोते 
हर जगह होंगे हम
बस सिर्फ एक मेहरबानी कर दो  बाबू  हम पर , इस बार हमें अपने  घर पहुंचा दो ।
घर  पर  बूढी अम्मा  है  बाप है  जवान बहिन है ।
सुनकर खबर महामारी की,  वो बहुत परेशान हैं
बाट जोह रहे हैं सब  मिल  कर  हमारी ,  काका काकी ताया ताई।
मत रोको हमे अब बस  जाने  दो विश्वास जो हमारा तुम  शहर वालों से  टूट चुका उसे वापिस लाने मे थोड़ा हमे समय दो ।
हम भी इन्सान हैं तुम्हारी तरह , वो बात   अलग   है हमारे  तन  पर पसीने की गन्ध के  फटे पुराने कपडे  हैं,  तुमहारे  जैसे   चमकदार  और उजले   कपडे नही।
बाबू  चिन्ता ना करो ,  विश्वास अगर  जमा  पाए  तो  फिर आयेंगे लौट कर ।
जिंदा रहे तो फिर आएँगे लौट कर ।
जिन्दा रहे तो फिर आएँगे लौट कर ।
वैसे अब जीने के उम्मीद तो कम है अगर मर भी गए   तो  हमें  इतना तो हक  दे दो ।
हमें अपने  इलाके की  ही  मिट्टी   मे  समा जाने  दो ।
आपने प्रत्यक्ष  या अप्रत्यक्ष रुप  से  जो  कुछ भी खाने  दिया उसका दिल से  शुक्रिया ।
बना बना कर फूड  पैकेट  हमारी झोली में  डाले  उसका शुक्रिया।
आप भी आखिर कब तक हमको खिलाओगे  ।
वक्त ने अगर ला दिया आपको भी हमारे बराबर फिर हमको   कैसे खिलाओगे ।
तो क्यों नही जाने देते  हो  हमें हमारे घर  और गाँव । 
तुम्हे   मुबारक हो यह   चकाचौंध भरा  शहर   तुम्हारा ।
हमको तो अपनी जान  से प्यारा है भोला भाला  गाँव  हमारा ।
प्रवासी मजदूरों के  दिल   की आवाज शहरों मे रहने वालों को समर्पित । 
समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा नागेंद्र प्रसाद सिन्हा की रचना प्रकाशित । 
Editor by Rajesh kumar verma

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