'मां'से मिलता हूं बिछुङ जाता हूं, दर्द ए दिल होता जो दूर जाता हूं

 'मां'से मिलता हूं बिछुङ जाता हूं,
 दर्द ए दिल होता जो दूर जाता हूं

प्रवीण वत्स

समस्तीपुर, बिहार

'मां'से मिलता हूं बिछुङ जाता हूं,
 दर्द ए दिल होता जो दूर जाता हूं।
 गम की दुनिया में आता-जाता हूं,
हंसने-हंसाने से दूर चला जाता हूं।
'पिता' के साये से दूर-दूर पाता हूं,
'परमपिता' को याद करते जाता हूं।
डांट-डपट मार अब कहां खाता हूं?
बेफिक्र होकर कहां कहीं जाता हूं।
जिन्दगी में  जिंदादिली दिखाता हूं,
 ममतामई के पास चला जाता हूं‌‌‌।
दूर-दूर रहकर भी  पास पाता हूं,
'वत्स' खुश है आशिर्वाद पाता हूं ।।

                            प्रवीण प्रसाद सिंह"वत्स"

समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रवीण वत्स, समस्तीपुर, बिहार की रचना प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

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