"क्यों मरने के बाद भी शवो के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं हो रहा है ?" : ,कवि विक्रम क्रांतिकारी

"क्यों मरने के बाद भी शवो के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं हो रहा है ?" : ,कवि विक्रम क्रांतिकारी

कुछ दिन पहले हम लोग इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों की बात कर रहे थे कि कैसे इन देशों में कोरोना वायरस एक बड़ी चुनौती बन गया,

      कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-अंतर्राष्ट्रीय       चिंतक) दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता /मेंटर

दिन- प्रतिदिन जिस प्रकार का आज दिल्ली और मुंबई जैसे विकसित महानगरों की हालत दहलाने वाली बनती जा रही है l 

जिस दिल्ली को लंदन और पेरिस बनाने की बातें हो रही थी अब वह दिल्ली मौत का शहर बनती जा रही है l

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट 

नई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 13 जून,2020 ) । कुछ दिन पहले हम लोग इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों की बात कर रहे थे कि कैसे इन देशों में कोरोना वायरस एक बड़ी चुनौती बन गया, और साथ ही बात कर रहे थे कि कैसे इन देशों को इलाज तक नहीं मिल रहा है ,और तो और अस्पतालों में शवो को रखने की जगह नहीं सड़कों पर शवो को रखा गया था . यहां तक की इन देशों में कब्रिस्तान भी कम पड़़ने लगे थे और मर चुके लोगों का अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी सेना को उठानी पड़ी थी l दोस्तो हमारे पास अभी भी वक्त है अगर हम केंद्र राज्य के साथ समन्वय और प्रत्येक नागरिक निर्देशानुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तब l  हमें इस बात का पहले से ही डर था कि कहीं भारत में भी ऐसी स्थिति ना बन जाए. लेकिन दुर्भाग्य है कि हम इसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं दिन- प्रतिदिन जिस प्रकार का आज दिल्ली और मुंबई जैसे विकसित महानगरों की हालत दहलाने वाली बनती जा रही है l 
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि मरीजों के इलाज में लापरवाही और कोरोना से मरने वालों के शवो की स्थिति भयावह और दहलाने वाली है l देखने में आया है कि मरीजों को शवो के साथ रखा जा रहा है और तो और जब परिजन शव को लेने जा रहे हैं तो बहुत से शव का पता भी नहीं चल रहा है कि कहां गया शव और बोला जा रहा है कि जाकर श्मशान में देखो वहां पर भी जाने पर पता नहीं चल रहा आखिर हो क्या रहा है इस देश में l
जिस दिल्ली को लंदन और पेरिस बनाने की बातें हो रही थी अब वह दिल्ली मौत का शहर बनती जा रही है l  पिछले दिन सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि दिल्ली में लोगों के साथ जानवरों जैसा बुरा सलूक हो रहा है ,अब आप समझ सकते हैं की कितना भयानक स्थिति है l सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि दिल्ली में करोना के टेस्ट कम क्यों हो रहे हैं, जबकि पहले 7 हजार टेस्ट प्रतिदिन होते थे l  जबकि अब सिर्फ करीब 5 हजार टेस्ट प्रतिदिन हो रहा है l  जबकि होना यह चाहिए था कि संक्रमण का खतरा बढ़ने के साथ ही टेस्ट की संख्या भी बढ़ानी चाहिए l  लेकिन टेस्ट की संख्या यहां कम हो रही है l सोच कर देखो आप दोस्त अगर कोरोना से जुड़ी जानकारियां छिपाई जाएगी, तो फिर हम सबको हालात का सही जानकारी कैसे मिलेगी..? कैसे आखिर में लोगों को पता चलेगा कि कोई भी लापरवाही हमारी जानलेवा हो सकती है , अगर सरकारे आंकड़े कम करके बताएगी तो हम लोग यही समझेंगे कि सब सामान्य है और अब  हमें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है l फिर हमारे बीच से ही कई लोग नियमों का पालन नहीं करेंगे, और इसके बाद हालात और बिगड़ने लगेगी ध्यान से देखें तो दिल्ली, महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत हो चुकी है l 
देश की राजधानी दिल्ली को ही देखे तो एक आंकड़े के मुताबिक जुलाई के अंत तक 80 हजार बेड्स  की जरूरत होगी. जबकि दिल्ली के अस्पतालों में वर्तमान समय में करीब 9 हजार बेड्स हैl
जिसमें से करीब 4 हजार बेड्स खाली पड़े हैं l ध्यान से देखें तो इनमें से भी अधिकतर खाली बेड्स सरकारी अस्पतालों में और इन सरकारी अस्पतालों में लोग इलाज कराने से डरते हैं ,क्योंकि इन अस्पतालों की अव्यवस्था ऐसी है कि इनमें इलाज कराने जाना कई बार वायरस का सामना करने से भी ज्यादा खतरनाक लगता है और अगर हम प्राइवेट अस्पतालों में जाएंगे तो वहां हमें एक तरह से लूट ही  लिया जाता है l जैसा कि आप भी जानते हो की  प्राइवेट अस्पतालों में जाते ही  हमसे 4 से 8 लाख रूपए जमा करा लिया जाता है l अगर हमें 10 दिन भी प्राइवेट अस्पताल में रहना पड़ा तो कम से कम 6 से 7 लाख रूपए का  खर्चा आ जाता है l आप सोच कर देखिए एक गरीब और मध्यम परिवार जो रोज कमाता है और खाता है वह कहां से इतना पैसे लाएगा l  और वही अगर हम सरकारी अस्पतालों की तरफ जाए तो मुश्किल से एडमिट हो जाने के बाद भी वहां पर कोई अच्छा से ध्यान रखने वाला नहीं है l
दोस्तों जब लॉकडाउन देश में किया गया था उसी वक्त स्वास्थ्य आधारभूत संरचनाओं को सुधारने के लिए एक अच्छा मौका था सरकार केंद्र और राज्य के साथ मिलकर समन्वय बनाकर स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत कर सकती थीl लेकिन सरकार ने इस मौके को भी गवा दिया l यह सच है कि कोरोना वायरस की स्थिति को दुनिया का बड़ा से बड़ा देश और बड़े से बड़े शहर का सिस्टम भी संभाल नहीं पाया लेकिन हमको मौका मिला था lअपने स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने का लेकिन इस मौके को हमने गवा दिया है l
जो दिल्ली अपने अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं की तारीफें करते नहीं थकती थी , वह दिल्ली आज कोरोना के आगे मानो  जैसे कि खुद को सरेंडर ही कर दिया हो तो आप सोच सकते हैं कि देश के अन्य हिस्सों और ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा का हालात क्या है जहां पहले से ही बहुत ही बुरी स्थिति l क्या लोक कल्याणकारी राज्य का यह नैतिक जवाबदेही नहीं है कि वक्त रहते क्यों नहीं स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत किया ? 
जो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों ने वर्ल्ड क्लास शहर होने का दंभ भरते थे l लेकिन आज कोरोना से युद्ध में इन शहरों की स्वास्थ्य सेवाओं ने जिस तरह से दम तोड़ रहा है, यह बहुत ही ज्यादा दिल तोड़ने वाली बात है, और इस सिस्टम को चुल्लू भर पानी में डूब के मर जाना चाहिए जो सिस्टम अपने नागरिकों के स्वास्थ सुविधाओं का ध्यान भी ना रख सके l
पिछले दिनों दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों ने तो यहां तक साफ कर दिया कि हम दोबारा लॉकडाउन यहां नहीं लगाएंगे l इसका मतलब है कि अब हमें लंबे समय तक संक्रमण के बीच रहने की आदत डालनी होगी. अब सरकारे  जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है इसलिए अब हमें ही संक्रमण को रोकने की जिम्मेदारी उठानी होगी और मानव जाति को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ-साथ नियमों का सख्ती से पालन करने के साथ ही जो भी आपके आस-पड़ोस या कोई भी वंचित तबका दिखे उसका अपने सामर्थ्य अनुसार मदद करने के लिए आगे आए l क्योंकि अब सरकारे केवल राजनीति करेगी चुनाव लड़ेगी और हम मूर्ख लोग फिर उनको सत्ता पर बैठ देंगे l
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-अंतर्राष्ट्रीय चिंतक) दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता /मेंटर लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख l समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

Comments

Popular posts from this blog

महज सोलह दिनों में छह रेल सिग्नल-कर्मचारी कार्य करते हुए हो गए रन-ओवर

पुलवामा अटैक में शहीद हुए जवानों को ब्लड फ़ोर्स टीम के सदस्यों द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन विद्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग द्वारा किया गया आयोजित