"अगर सिर्फ रोजी -रोटी के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़े तो यह चिंता का विषय है l"

"अगर सिर्फ रोजी -रोटी के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़े तो यह चिंता का विषय है l"

                                              कवि विक्रम क्रांतिकारी

         दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता /मेंटर

कोरोना वायरस से उपजी वैश्विक महामारी कोविड -19 के चलते लॉकडाउन की घोषणा 24 मार्च को हुई थी

तब देश में 600 के करीब करोना संक्रमित मरीज थे ,और 11 लोगों की मौत हुई थी l जैसे ही दोस्त लॉकडाउन घोषित हुआ पूरे देश में सन्नाटा छा गया इस महामारी के खौफ के चलते

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट 

New Delhi,भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 02 जून,2020 ) । अगर किसी को रोजी -रोटी के लिए अपना घर ,राज्य और देश छोड़ना पड़े तो यह चिंता का विषय है l दोस्तों कोरोना वायरस से उपजी वैश्विक महामारी कोविड -19 के चलते लॉकडाउन की घोषणा 24 मार्च को हुई थी l तब देश में 600 के करीब करोना संक्रमित मरीज थे ,और 11 लोगों की मौत हुई थी l 

जैसे ही दोस्त लॉकडाउन घोषित हुआ पूरे देश में सन्नाटा छा गया इस महामारी के खौफ के चलते l अमीर हो या गरीब सबको  आशा थी कि स्थिति जल्द ठीक हो जाएगी , इस खौफ के बावजूद भी और सभी को आशा थी ,कि सरकार लोगों का और लोग एक- दूसरे का ख्याल रखेंगे, लेकिन दोस्तों जब लॉकडाउन की अवधि बढ़ती गई, तब देश के गरीब तबका विचलित हो उठा l दोस्तों यह तबका शहरों में रहने वाला दिहाड़ी मजदूर या किसी कारखाने का कामगार अथवा रेहड़ी लगाने वाला और ऑटो रिक्शा चालक और अन्य रोज कमाने खाने वाले थे l सरकार ने अगर वंचित तबकों को जहां रह रहे थे ,वही रोक कर उनको रहने -खाने और अन्य मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था किया होता तो शायद यह भायावह स्थिति सामने नहीं होती l आज हमारा ग्रामीण क्षेत्र भी  कोरोना का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है ,जोकि पहले यह वायरस शहरों में ही अधिकतर था l एक बात और जो पिछले दिनों सरकार ने किसानों ,बुजुर्गों ,दिव्यांगों ,जनधन खाता धारको महिलाओं के कल्याण के लिए जो अनेक घोषणाएं की उनसे इस तबके को कोई राहत नहीं मिली और यह तबका अपने गांव घर जाने के लिए बेचैन हो उठा हजारों किलोमीटर पैदल चलते -चलते मंजिल से पहले ही कोई सड़क हादसों में कोई भूखे -प्यासे दम तोड़ दिया  l

दोस्तों इनके मौत का नैतिक जिम्मेदार कौन है? दोस्तों यह तबका शहरों की झुग्गी बस्तियों या शहरी सीमा के गांव में किराए पर रहता था l जब इनकी कमाई बंद हो गई जिससे इनका भविष्य अनिश्चित दिखने लगा इसलिए साधन नहीं मिलने के बावजूद पैदल साइकिल या फिर ट्रकों के जरिए असुरक्षित तरीके से गांव लौटने लगे l दोस्तों संविधान का अनुच्छेद 14 सभी की बराबरी की बात करता है l लेकिन हमारे देश में 90% संपत्ति पर 10% लोगों का कब्जा है ,वही 10% संपत्ति पर 90% किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं l आखिर इतना भेदभाव क्यों? आज आजादी के इतने वर्षों के  बाद भी देश का समावेशी रूप से विकास नहीं होने का मुझे नतीजा लगता है यह पलायन और गंदी राजनीति भाई -भतीजावाद धनबल बाहुबल का ही नतीजा है l दोस्तों सबसे अधिक बिहार उत्तर प्रदेश झारखंड मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से पलायन करते हैं ,लोग अगर यहां  निवेश होता खासकर कृषि पर आधारित उद्योग लगते तो किसानों की क्रय शक्ति बढ़ती और यहां के मजदूर भी पलायन नहीं करते और साथ ही कृषि पर आधारित उद्योग का जाल बिछाया गया होता तो आम किसानों की क्रय शक्ति बढ़ती और इससे उद्योग का भी विकास होता l साथ ही मजदूरों को अपने घर में ही काम मिल जाता l लेकिन घटिया राजनीति के कारण यह दिन हमें आज देखना पड़ रहा है l दोस्तों अगर कोई व्यक्ति बेहतर भविष्य और अच्छी आय के लिए किसी अन्य राज्य मे जाए तो बात समझ में आती है , लेकिन सिर्फ रोजी -रोटी के लिए अपना राज्य  छोड़कर कहीं और जाए तो यह चिंताजनक तो है ही, असमान विकास का सूचक भी है l साथ ही लोक कल्याणकारी राज्य पर प्रश्न चिन्ह है l जो भी हो देश कामगारों के महत्व को अब समझ रहा है, लेकिन बेहतर रहेगा कि सरकार ऐसे ठोस उपाय बनाएं जिससे फिर कभी इनकी उपेक्षा - अनदेखी ना हो और दोस्तों कामगारों के हित में बनने वाले नियम -कानून असरकारी तभी सिद्ध होंगे जब राज्य सरकारें उनके अमल को लेकर तत्परता दिखाएगी l दोस्तों इन कामगारों के मामलों में केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी जरूरी सबक सीखने की जरूरत है l अब देर करने की जरूरत नहीं है पहले ही देर हो चुकी है और उसका परिणाम भी सामने दिख रहा है बदहाली के रूप में इन प्रवासी मजदूरों का आज l  दोस्तों कामगारों की बदहाली राष्ट्रीय शर्म का विषय बन गया है l शर्मिंदगी इस भाव का परिचय देने के साथ यह भी महसूस किया जाना चाहिए कि उनके बगैर देश का काम चलने वाला नहीं है l इसलिए दोस्तों राज्य और केंद्र सरकार को एक साथ मिलकर इन कामगारों के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत है जिससे फिर कभी इनकी उपेक्षा -अनदेखी ना हो क्योंकि हमारे देश का रीढ़ की हड्डी यही किसान , गरीब , प्रवासी मजदूर हैं आज भी दोस्तों किसान खेतों में लगा हुआ है देखना आप यही अन्नदाता गिरती हुई अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाएगा l लेकिन दुख की बात है कि सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है l मेरे दोस्त आपसे मेरा अनुरोध है कि जो भी वंचित तबका आपके आंखों के सामने दिखे आपको देखकर लगे कि इसको आपकी मदद की जरूरत है और आप भी सामर्थ्य हैं तो जरूर प्रयास करें इनकी मदद के लिए क्योंकि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जाएंगे सब मिट्टी- मिट्टी हो जाएगा यहां से कोई बचके नहीं जा पाएगा आगे या पीछे l कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया -अंतरराष्ट्रीय चिंतक) दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता /मेंटर लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । 

Published by Rajesh kumar verma

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