न्याय के मंदिर न्यायालय कटघरे मेंं एक अकेली मजदूर लड़की की दर्दभरी दास्तां

न्याय के मंदिर न्यायालय कटघरे मेंं.....
एक अकेली मजदूर लड़की की दर्दभरी दास्तां
                               न्याय कटघरे में 
समस्तीपुर कार्यालय 

समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 जुलाई,2020 ) । जिसकी शादी नहीं हुई थी, पर सौतेली मां और बाप के घर से निकाल आयी। उसके परिचित ने ही उसे गुंडों के हाथ मे सौंप दिया। चार गुंडों ने उससे सामूहिक बलात्कार किया। फिर कई दिनों तक  पुलिस मौखिक बलात्कार करती रही। उसका चरित्र हनन करने के लिए अखबारों में उसका पूरा परिचय छपा दिया गया। उसने अपराधियों से समझौता करने और शादी तक करने से मना कर दिया। अंत मे जब न्यायालय में भी उसके साथ अन्याय हुआ तो वह तन गई। भले ही उसे और उसके मददगारों को जेल जाना पड़ा, पर उसने अपनी बहादुरी साबित कर दी।
       10 जुलाई 2020 को उसे अररिया (बिहार) के न्यायालय में धारा 164 के अंतर्गत अपना बयान लिखवाने के लिए पेश किया गया। न्यायिक पदाधिकारी महिला नहीं पुरुष थे। उसके किसी मददगार को वहां मौजूद नहीं रहने दिया गया, जबकि अपराधियों मे से एक कोर्ट कैम्पस मे पहले से घूम रहा था। चार घंटे तक बयान लिखा जाता रहा। अंत मे उसे लिखे गये बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। लेकिन उसने लिखे गये बयान को बिना पढे और समझे हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। उसे शक था कि बयान मे वही नहीं लिखा गया है जो उसने कहा है। बयान को पढने पर उसकी भाषा उसे समझ नहीं आयी तो उसने अपनी सहयोगी कल्याणी वडोला को बुलाकर बयान को समझना चाहा पर इसकी अनुमति नहीं दी गई।  बयान की कापी भी नहीं दी गई। दबाव डालकर हस्ताक्षर करा लेने के बाद ही उसे निकलने दिया गया। बाहर निकलने के बाद भी वह नाराज थी। उसने सारी बातें अपने मददगार "जन जागृति शक्ति संगठन" की कल्याणी वड़ोला और तन्मय को बतायी। फिर कोर्ट मे कल्याणी वड़ोला को बुलाया गया। तब इन लोगों ने  कोर्ट मे जाकर बयान को पढने या फिर से बयान लेने के लिए कहा। 
       आश्चर्य है कि इतनी सी बात पर न जाने क्यों न्यायिक पदाधिकारी महोदय नाराज हो गये और पुलिस को बुला कर तीनों को जेल भेज दिया।   
 बाद मे कोर्ट के पेशेकार ने FIR किया कि ये बयान से सहमत नहीं है और उसे बदलवाना चहते हैं। उन्होंने सरकारी काम मे बाधा डालने और झगडा करने का भी आरोप लगाया। क्या यह वास्तव में अपराध है? तब से अब तक वे जेल मे बंद हैं और यदि बेल नहीं मिला तो शायद 1 अगस्त (तिलक स्मृति दिवस) को लाकडाउन खुलने तक बिना अपराध जेल मे रहने को बाध्य हैं।
     इस संदर्भ में देशभर के करीब 250 प्रमुख वकीलों ने उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की अपील की है। अनेक महिला संगठनों ने भी अपील की है। पर क्या यह सिर्फ़ महिलाओं का मामला है, अन्य सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं को चुप रहना चाहिए। इसीलिए आप जहां भी हों इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठायें।
समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सुरेन्द्र कुमार की रिपोर्ट प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

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