"हमारे अन्नदाता ही हमारा असली योद्धा है ": कवि विक्रम क्रांतिकारी

"हमारे अन्नदाता ही हमारा असली योद्धा है ": कवि विक्रम क्रांतिकारी 

                                          कवि विक्रम क्रांतिकारी

              (विक्रम चौरसिया- अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
        दिल्ली विश्वविद्यालय /आईएएस अध्येता/मेंटर

अगर मैं यह कहता हूं कि किसान पूरे जगत का पालनहार होते है तो गलत नहीं कह रहा हूं।

आप गौर करें तो आज वैश्विक महामारी कोविड -19 से उपजी कोरोना वायरस से पूरे विश्व में से जितने लोग नहीं मरते उससे कहीं ज्यादा भुखमरी से लोग मारे जाते ।

अगर हमारे अन्नदाता दिन -रात एक करके खेतों में अनाज नहीं उपजाते  तो सोचो क्या होता.. ?

समस्तीपुर कार्यालय 

नई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 03 जून,2020 ) । अगर मैं यह कहता हूं कि किसान पूरे जगत का पालनहार होते है तो गलत नहीं कह रहा हूं। आप गौर करें तो आज वैश्विक महामारी कोविड -19 से उपजी कोरोना वायरस से पूरे विश्व में से जितने लोग नहीं मरते उससे कहीं ज्यादा भुखमरी से लोग मारे जाते , अगर हमारे अन्नदाता दिन -रात एक करके खेतों में अनाज नहीं उपजाते  तो सोचो क्या होता.. ?

हम सब ने देखा अपने ही देश में जब लॉकडाउन किया गया बड़े -बड़े उद्योग -धंधे सब बंद हो गया फिर भी हमारे अन्नदाता खेतों में डटे रहें ताकि कोई भूखे ना मरे , पिछले दिनों  हमारे खाद्य और उपभोक्ता मंत्री जी दंभ भर रहे थे कि देश में अनाज पर्याप्त मात्रा में है किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है लेकिन अनाज को पैदा किसने किया यह कहना ही भुल गए । लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी ने इसी सप्ताह गरीब कल्याण अनाज योजना को 3 महीने के लिए आगे बढ़ाते हुए जब कहे कि किसानों के मेहनत के बदौलत आज हम गरीबों में अनाज बाट पा रहे हैं तो दिल से बता रहा हूं मुझे बहुत खुशी हुआ कि कम से कम प्रधानमंत्री जी को हमारे अन्नदाता के तरफ ध्यान तो है।
अगर हम आपसे पूछें कि किसान कौन होता है ? तो आप जरूर जवाब देगेे की किसान हमारे अन्नदाता होते हैं, किसान पूरे विश्व का पालनहार होते हैं और आप यह भी कहेंगे कि जो किसान हम सब का पेट भरता है उसी के बच्चे भूखे रहते हैं और अक्सर आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या करते हैं और उनके बच्चे दर-दर की ठोकरें खाते हैं ।
"लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे? जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे..?"
आपको बता दें कि मैं भी दर्दे जमीन पुत्र ही हूं और बहुत नजदीक से किसान परिवारों के हालात को देखते आ रहा हूं । आपको हम बता दें कि हमारे देश के किसानों को उनकी मेहनत के बदले में गरीबी, लाचारी ,भूखमरी ,शोषण और बेइज्जती ही मिलती आ रही है । जबकि हमारे अन्नदाता ही देश के असली हीरो हैं यही हमारे योद्धा है ।लेकिन इनको आज तक कोई भी पदम पुरस्कार नहीं मिला है , हमारे अन्नदाता का कोई लाइफस्टाइल नहीं होता है  आखिर क्यों आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी किसानों के फसल का वाजिब दाम तक नहीं मिलता है ? यह लाइन यहां बोलना चाहिए मुझे आप भी पढ़ें और सोचे -
"मत मारो गोलियो से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ"" 
हमने पिछले दिनों देखा कि किसानों से ₹1 प्रति किलो प्याज, टमाटर खरीद कर मंडियों में 25 से ₹30  किलो बेचा गया और बहुत से किसान तो देखने में आया कि अपने प्याज ,टमाटर को सड़कों पर जानवर को खाने के लिए फेक रहे थे । जब हमने पूछा कि आखिर आप क्यों सड़कों पर प्याज ,टमाटर फेक रहे हैं तो उनका जवाब था जितना हम मंडी में ले जाने में गाड़ी- भाड़ा खर्च करेंगे उतना भी मेरा लागत नहीं निकल पाएगा गाड़ी -भाडा तक का भी अब आप सोच सकते है कि हालात किसानों का कैसा है देश मे सोचना चाहिए आपको भी ।
आपको हैरानी होगी मेरे बातों से कि आज आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी हमारे देश के अन्नदाता जो हम सभी का पेट भरते हैं, इस किसान योद्धा के परिवार के महीने की औसत कमाई मात्र 6426 रुपए हैं , यह आंकड़ा खुद नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस ने दिया है ,  इनमे से भी आंकड़े के मुताबिक 3078 रुपए खेती से आते है , और 2069 रुपए मजदूरी से , और 765 रुपए पशुपालन से और 514 रुपए नॉनफार्म बिजनेस से आते हैं सोचकर देखो आप  भी इनका परिवार कैसे चलता होगा ।आपने गौर किया होगा जब देश में लॉकडाउन किया गया था तब जब प्रवासी मजदूर अपने -अपने घरों के तरफ लौट रहे थे हजारों किलोमीटर पैदल चलते हुए जिनमें से कुछ लोग किसी ट्रक के नीचे तो कुछ लोग ट्रेनों के नीचे कुचलकर मारे गए थे अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही उनमे मित्रों दुख के साथ कह रहा  हूं कि हमारे अन्नदाता के भी बच्चे थे जोकि  अपने घर के माली स्थिति को सुधारने के लिए दूसरे राज्यों और महानगरों में फैक्ट्रियों में काम करने गए थे। दोस्तों बहुत से किसानों के पास अपना खेत नहीं होता है दूसरे के खेतों में काम करते हैं और उनके बच्चे अक्सर दूसरे राज्यों और महानगरों में कंपनियों में काम करते हैं जिससे उनका  घर -परिवार चलता है।
एक किसान के पास खेती से अपना गुजारा चलाने के लिए, कम से कम 1 हेक्टेयर जमीन होनी चाहिए, लेकिन हमारे देश में 65 फ़ीसदी से ज़्यादा किसान ऐसे हैं जिनके पास 1 हेक्टेयर से भी कम जमीन है , जिसके कारण आपको जानकर यह दुख होगा कि हर तीसरे किसान परिवार में से दो परिवारों को अपना घर चलाने के लिए बहुत मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है और देश में दो कानून तो है ही जिसके कारण इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं  मिलती और फिर बच्चे मजबूरी मे दूसरे राज्यों और महानगरों में किसी कंपनियों और फैक्ट्रियों में काम करने लगते है , क्योंकि आप भी जानते हैं किसान ,गरीब मजदूर के बच्चे दूसरे स्कूल में पढ़ते हैं वही नेता ,मंत्री और अफसर के बच्चे दूसरे स्कूलों में पढ़ते हैं भेद- भाव अपने चरम  पर है । जबकि संविधान के अनुच्छेद  14 में लिखा गया है कि संविधान की नजरों में सभी बराबर है किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा ।लेकिन हम तो देखते हैं कि देश के सभी कानून और व्यवस्था अमीरो के संरक्षण के लिए हैं गरीबों के लिए यहां कोई जगह  ही नहीं है। कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज साहब भी यही  बोल रहे थे कि देश का कानून व्यवस्था अमीरों को सुरक्षा देता है और गरीबों के साथ जुल्म करता है । आखिर क्यों देश में दोहरी व्यवस्था है ? 
""पैर हों जिनके मिट्टी में, दोनों हाथ कुदाल पर रहते हैं सर्दी , गर्मी या फिर बारिश, सब कुछ ही वे सहते हैं आसमान पर नज़र हमेशा, वे आंधी तुफान सब सहते हैं खेतों में हरियाली आये, दिन और रात लगे रहते हैं मेहनत कर वे अन्न उगाते, पेट सभी का भरते हैं वो है मसीहा मेहनत का, उसको किसान हम कहते हैं "


मुझे दुख बहुत होता है देख कर कि देश के लगभग 90% संपत्ति पर 10% लोगों के कब्जा है वही देश के 10% संपत्ति पर 90% लोग किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं ।जबकि सभी का बराबर अधिकार होना चाहिए जैसा कि" गांधीजी भी बोला करते थे कि हमारे देश में संसाधन पर्याप्त मात्रा में है लेकिन लालची लोगों के कारण अधिकतर लोग वंचित रह जाते हैं "
1991 से 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार  किए गए आंकड़े के मुताबिक हमारे देश में हर रोज 2035 किसान खेती का काम छोड़ रहे हैं ।  हम सब देख रहे हैं कि किसानों पर बढ़ती कर्ज के कारण और फसल बर्बाद हो जाने के कारण आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या कर रहे हैं । आखिर हमारे अन्नदाता के लिए सुरक्षा कानून क्यों नहीं बनाया जाता है ?
मित्रों आप सब से मेरा विनम्र निवेदन है कि इस  महामारी मे जो भी वंचित तबका आपको नजर आए अपने सामर्थ्य अनुसार उसका मदद करने का जरूर प्रयास करें । क्योंकि हम सब जानते हैं कि एक दिन हम सब इसी मिट्टी में मिल जाएंगे आगे या पीछे सब मिट्टी -मिट्टी हो जाएगा ।
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया- अंतरराष्ट्रीय चिंतक) दिल्ली विश्वविद्यालय /आईएएस अध्येता/मेंटर लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित लोगो के लिए आवाज उठाते रहते हैं -स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख ।
समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा 
प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

Comments