"कोरोना काल के बाद दुनिया में आ सकता है 'गरीबी काल ' ": कवि विक्रम क्रांतिकारी

"कोरोना काल के बाद दुनिया में आ सकता है 'गरीबी काल ' ": कवि विक्रम क्रांतिकारी

समस्तीपुर कार्यालय 

कोविड़ 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हम देख रहे हैं कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य पूरी तरह से बिगड़ता जा रहा है।

पिछले महीने ही इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने आशंका भी जताया था कि पूरे दुनिया का अर्थव्यवस्था वर्ष 1930 के बाद सबसे बड़ी आर्थिक मंदी का शिकार हो सकता है।

                       कवि विक्रम क्रांतिकारी

            (विक्रम चौरसिया - अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
       दिल्ली विश्वविद्यालय /आईएएस अध्येता/मेंटर 

न ई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 05 जुलाई,2020 ) । कोविड़ 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हम देख रहे हैं कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य पूरी तरह से बिगड़ता जा रहा है। पिछले महीने ही इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने आशंका भी जताया था कि पूरे दुनिया का अर्थव्यवस्था वर्ष 1930 के बाद सबसे बड़ी आर्थिक मंदी का शिकार हो सकता है। जैसा कि हम भी जानते हैं कि जब 1930 में अर्थव्यवस्था में महामंदी आई थी तो पूरी  दुनिया की जीडीपी 15% तक गिर गई थी । जबकी हमने देखा कि जब 2008 की आर्थिक मंदी पूरी दुनिया में आयी थी तब पूरी दुनिया की जीडीपी को मात्र 1% का नुकसान हुआ था । मेरे कहने का मतलब है कि 2008 में जो नुकसान हुआ था उससे 15 से 20 गुना ज्यादा बड़ा नुकसान 2020 में हो सकता है ।
जब पूरी दुनिया में लॉकडाउन किया गया था तो हमने देखा कि सभी आर्थिक गतिविधियां बंद हो गया था , और सभी लोग घरो मे कैद हो गए थे, और आज भी पूरी तरह से जिंदगी पटरी पर नहीं उतरी है अभी तक लॉकडाउन है बहुत जगहो पर जिसके कारण दुनिया के करीब 170 देशों में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की बजाय माइनस में चली जाएगी या बहुत देशों में जा चुकी है , जिसके कारण हमारी आमदनी बढ़ने की बजाय घटने लगी है ।
मुझे लगता है कि जिस प्रकार के आईएमएफ आंकड़े जारी किया है इससे सबसे ज्यादा स्थितियां खराब होगी तो विकासशील देशों की लेकिन हम यह भी जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों इस महामंदी की तुलना 1930  से किया जा रहा है ..?
हम जानने का प्रयास करते हैं कि जो 1930 में आर्थिक महामंदी आई थी उस मंदी को आधुनिक युग की सबसे बड़ी और गंभीर आर्थिक मंदी आखिर क्यों माना जाता है ?
जैसा कि हम जानते हैं कि 1930 की आर्थिक मंदी का दौर 1930 से लेकर 1939 तक चला था, इसका  शुरुआत देखे तो 1929 के अक्टूबर महीने में और स्टॉक मार्केट क्रैश से हुई थी जो कि 1933 तक आते-आते अमेरिका के लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो गए थे, और साथ ही अमेरिका के  आधे से ज्यादा बैंक भी फेल हो गए थे उस वक्त अमेरिका की आबादी 12 करोड़ थी  मतलब की उस वक्त अमेरिका की 10% आबादी के पास रोजगार था ही नहीं ऐसा ही हम देख रहे हैं इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के वक्त भी हालात है, अगर हम अपने भारत का ही देखें तो लोगों की रोजगार और नौकरियां चली गई है और बहुत से जो प्रवासी मजदूर थे जो कि दूसरे राज्यों और महानगरों में काम- धंधे किया करते थे उन सब का आज  काम- धंधे चौपट हो गए जिसके कारण अपने देश में भी बेरोजगारी का गंभीर संकट सामने दिख रहा है ।
 हमने भी देखा कि कैसे हमारे देश के प्रवासी मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने गांव लौटने का प्रयास किए इस बीच बहुत से प्रवासी गरीब मजदूर किसी ट्रक के पहियो के नीचे तो किसी ट्रेन के नीचे कचुलकर मारे गए और बहुत से रास्ते में चलते-चलते भूखे प्यासे मारे गए और अब हम देख रहे हैं लोगों के पास कोई काम नहीं है नौकरियां चली गई है तो लोग अवसाद में और काम धंधे -चौपट हो जाने के कारण मारे जा रहे हैं । दोस्तों आज  कोरोना वायरस ने हम देख रहे हैं कि पूरी दुनिया को बदल दिया है अब मुझे नहीं लगता कि दुनिया पहले जैसी होगी जैसी हमारी दुनिया कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने से पहले थी । मुझे लगता है कि कोरोना वायरस का सबसे बड़ा और बुरा असर पड़ेगा तो उन सभी गरीब देशों पर पड़ेगा जो विदेशी मदद पर निर्भर है ।जैसा कि पिछले महीने ही अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने भी बताया था कि दुनिया भर में गरीबी को रोकने की लड़ाई को कोरोना वायरस एक दशक पीछे ले जाएगा । इस संस्था ने यह भी कहा था कि कोरोना  संक्रमण का कहर झेल रहे गरीब देशों को बायलाउट पैकेज मुहैया नहीं कराया गया तो दुनिया भर में 50 करोड़ से ज्यादा नए गरीब जुड़ जाएंगे, इस रिपोर्ट के मुताबिक हम देख रहे थें कि दुनिया में इस वक्त गरीबों की आबादी 300 करोड़ से ज्यादा है जिसमें करोना महामारी और पूरी दुनिया में लगाया गया लॉकडाउन की वजह से लगभग गरीबी में 20% का बढ़ोतरी होगी, और  जब तक इस महामारी से दुनिया उबरेगी तब तक तो दुनिया की 780 करोड़ में से करीब आधी आबादी गरीबी के दलदल में फंस चुकी होगी। आप ध्यान से गौर करना आप जहां भी रहते हैं अपने आस-पड़ोस में देखना बहुत से लोगों की नौकरियां जा चुकी बहुत से लोगों की जो छोटे-मोटे रोजगार कारोबार थे सब बंद हो चुके हैं खोलने के बावजूद भी पहले जैसा उनका कारोबार नहीं चल रहा है तो कहीं ना कहीं हम सब भी गरीबी के दलदल में फंसते जा रहे हैं ।सोच के देखो सब सहारा अफ्रीकी देशों का हालात क्या होगी इस वैश्विक महामारी के कारण जहां पिछले 30 वर्षों से गरीबी रोकने की लड़ाई चल रही थी और अब इस कोरोना वायरस ने इन अफ्रीकी देशों की तो हालात और खराब कर दिया है ।
पिछले महीने ही इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने भी आंकड़े जारी करते हुए कहा  था कि दुनियाभर में लॉकडाउन की वजह से अकेले देखें तो केवल भारत में ही अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ श्रमिक वर्ग गरीबी में फंस जाएंगे। इन जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 200 करोड़ लोगों के सामने रोजी -रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा जो आज हम देख ही रहे हैं। इतना ही नहीं दोस्तों दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरियां छूट सकती है और बहुत लोगों की नौकरिया आ छूट  भी चुकी है आप अपने आसपास गौर से देखें तो आपको भी पता चलेगा। जो भी हो हमें इस कोरोना वायरस से  लड़ना है सकारात्मक सोच के साथ आंकड़े तो बहुत ही डरावने हैं ही लेकिन कहते हैं न कि जिंदगी रूकती नहीं है जिंदगी चलने का ही नाम है और यह कोरोना वायरस का कहर आज नहीं तो कल खत्म हो ही जाएगा और आप देख भी रहे हो कि रिकवरी रेट लगातार बढ़ते जा रहा है जो कि सकारात्मक इशारा है। अब हमें इस जंग को लड़ना है यह तो सच है कि पूरी दुनिया गरीबी के खिलाफ लड़ाई में बहुत ज्यादा पिछड़ जाएगी ही लेकिन हम सकारात्मक सोच के साथ एक दूसरे का मदद करते हुए सरकार के दिशानिर्देशों के साथ चलते रहे तो बहुत जल्द ही इस महामारी से छुटकारा तो पाएंगे ही साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर जल्द ही लाएंगे। और इस गिरी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में हमारे अन्नदाता का प्रमुख भूमिका होगा क्योंकि पूरे दुनिया में जब लॉकडाउन किया गया फिर भी हमने देखा हमारे अन्नदाता दिन- रात एक कर के खेतों में डटे रहें ताकि कोई भूखे ना सोए और गिरती हुई अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सके । गौर से देखो तो पूरी दुनिया के उद्योग -धंधे सभी बंद थे लेकिन हमारे असली योद्धा किसान अपने खेतों में डटे हुए है  जिसके कारण कोई भी भूखे नहीं मारा भले ही वह इस वायरस से मारा गया हो लेकिन भूखा नहीं मारा गया , आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि जो भी वंचित तबका आपके नजरों में दिखे तो  अपने सामर्थ्य अनुसार उसका मदद करने का जरूर  प्रयास करें ।
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया - अंतरराष्ट्रीय चिंतक) दिल्ली विश्वविद्यालय /आईएएस अध्येता/मेंटर लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित सबको के लिए आवाज उठाते  रहते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख  । 

समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

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