हमें अपने ढोंगी लोकतंत्र पर गर्व है : डॉ० वेदप्रताप वैदिक

हमें अपने ढोंगी लोकतंत्र पर गर्व है : डॉ० वेदप्रताप वैदिक

राजस्थान में चल रहे दंगल से हमारा देश कोई सबक लेगा या नहीं.. ? 

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट 

समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 17 जुलाई,2020 ) । यह सवाल सिर्फ कांग्रेस के संकट का नहीं है बल्कि भारत के लोकतंत्र के संकट का है। जैसे आज कांग्रेस की दुर्दशा हो रही है, वैसी ही दुर्दशा भाजपा तथा अन्य प्रांतीय पारिवारिक पार्टियों की भी हो सकती है।
    भारत का कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में  खुलेआम विधायकों की खरीद-फरोख्त हो रही है। चुनाव और मतदान के बदले विधायक खरीद कर सरकार बनाई जा रही हैं। यानी जिस दल को जनता ने रिजेक्ट कर दिया उसने ही विधायक खरीद कारण तख्तापलट कर दिया। सत्तारूढ़ भाजपा यह खरीद कर पूरी सरकार बना ले रही है। यह सीधा जनादेश का अपमान है। जनादेश की खरीद बिक्री है तो मतदान क्यों होता है। 
खरीद बिक्री में अदानी अंबानी आदि कारपोरेट घराने महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं इससे महान पार्टी कांग्रेस दिनोंदिन एक खंडहर में बदलती जा रही है। 
 ऐसा क्यों हो रहा है ? इसके बीज इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बोए गए थे। ऊपर मुखौटा तो लोकतंत्र का रहा लेकिन असली चेहरा तानाशाही का होने लगा।
  कांग्रेस की देखादेखी लगभग हर प्रांत में क्षेत्रीय नेताओं ने अपनी-अपनी पारिवारिक और जातीय पार्टियां खड़ी कर लीं। सिर्फ भाजपा ही ऐसी पार्टी बच गई, जिसमें किसी एक नेता या गुट का एकाधिकार नहीं था। लेकिन उसमें बनियों का वर्चस्व था । बनियों का पैसा लगा था, इसलिए उसे वर्ष 1980 से सत्ता में आने और काफी समय लगा। एक समय उसके पास अटल बिहारी वाजपेई जैसे मुखोटे थे। लेकिन वह जनता को हिंदुत्व और लोकतंत्र का झांसा देने में सफल रही। बड़े कारपोरेट घरानों के बल पर वह साल 2014 में सत्तारुढ़ हुई तो वह भी कांग्रेस के नक्शे-कदम पर चल पड़ी। जैसे कांग्रेस आज मां-बेटा पार्टी है, भाजपा भाई-भाई पार्टी है। सोनिया और राहुल की टक्कर में नरेंद्र और अमित खड़े हैं। पीके से असली शासन अदानी, अंबानी का है। यह दोनों नेता कठपुतली बनकर उनके आदेश का पालन कर रहे हैं। सारे प्रांतों में भाजपा नेताओं के बेटा-दामाद, भाई-भतीजा, पति-पत्नी, बाप-बेटा, बुआ-भतीजा शासन कर रहे हैं। उनके सहारे पार्टियां खड़ी हो गई हैं।
   सभी पार्टियां जेबी पार्टियां बन गई हैं। इन सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों का सबसे बड़ा दोष यह है कि इनके नेता पार्टी में अपने अलावा किसी अन्य को उभरने नहीं देते। हर पार्टी का नेता खुद को नरेंद्र मोदी , अमित शाह बनाए घूमता है। जबकि उनमें किसी विलक्षण गुणों का उनमें सर्वथा अभाव होता है। 
   सारी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में बदल गई हैं। पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र शून्य हो गया है। कोई योग्य व्यक्ति शीर्ष पर नहीं पहुंच सकता। प्रतिभाएं दरकिनार कर दी जाती हैं। देश की बागडोर कमतर और घटिया लोगों के हाथ में चली जाती है।
   ये घटिया नेता जब मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की कुर्सियों में बैठ जाते हैं तो इन्हें योग्य और निडर लोगों से डर लगने लगता है। इनकी हीनता ग्रंथि रिसने लगती है। 
   ये अपने से भी घटिया लोगों की संगत पसंद करने लगते हैं। जी-हुजूरों से घिरे ये महान नेता लोग या तो बाकायदा आपात्काल घोषित कर देते हैं या फिर अपने साथियों पर अघोषित आपात्काल थोप देते हैं। 
    वे तो सत्ता में बने रहते हैं लेकिन देश का पत्ता कट जाता है। अपने ढोंगी लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं लेकिन हम यह क्यों नहीं देखते कि चीन में क्या चल रहा है और जो हमसे पीछे था, अब उसकी अर्थ-व्यवस्था हमसे पांच गुना अधिक मजबूत हो गई है। 
 हम अपने इस जेबीतंत्र को स्वस्थ लोकतंत्र कैसे बनाएं, इस पर हम विचार करें।

समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सुरेन्द्र कुमार की रिपोर्ट प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

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