कोई कोई नजर में बहुत भा जाती है , दिल से उतर नसतर में समा जाती है ..!
कोई कोई नजर में बहुत भा जाती है ,
दिल से उतर नसतर में समा जाती है ..!
Pramod kumar sinha
Begusarai,Bihar
बेगूसराय, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 14 जुलाई, 2020 ) ।
कोई कोई नजर में बहुत भा जाती है ,
दिल से उतर नसतर में समा जाती है ,
कोई कोई नजर में बहुत भा जाती है ,
दिल से उतर नसतर में समा जाती है ,
देखे बिना सोना खाना पीना हराम है ,
एक झलक देखूँ शकुन मिल जाती है,
कोई कोई नजर.......... ।
काले गोरे खूबसूरती का है भेद नहीं ,
ऊंच नीच का होता कोई है खेद नहीं,
मोहब्बत है खुदा की हसीन तोहफा. ,
नज़रें नज़रें दिल दिल मिल जाती है ,
कोई कोई नजर......।
लैला मजनूँ में कैसी समानता थी ,
हीर राँझा में कितनी विषमता थी ,
प्रेम तो प्रेम है जात पात की बू नहीं ,
मन ही मन भा दीप जला जाती है ,
कोई कोई नजर.........।
दुनियां कहती है बहुत कह लेने दो,
हमें अपने वादे पर भी चल लेने दो ,
अच्छों को बुरा कहना ये आदत है,
बाद में यही दुनियां भुला जाती है.....।।
समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रमोद कुमार सिन्हा की कविता प्रकाशित ।
Published by Rajesh kumar verma
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