" हिंदी से दूर होता हमारा भविष्य चिंताजनक बात है ":कवि विक्रम क्रांतिकारी

" हिंदी से दूर होता हमारा भविष्य चिंताजनक बात है ":कवि विक्रम क्रांतिकारी

@Samastipur office Report


दोस्तों हिंदी भाषा को प्रचलित तौर पर हम माथे की बिंदी या तिलक कहते हैं । 

भाषा एक माध्यम है ना की किसी का स्टेटस है आप सब से भी मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने हिंदीभाषा और जो भी आपका मातृभाषा हो उसका अधिक से अधिक प्रयोग करें।:कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-  अंतरराष्ट्रीय चिंतक/ पत्रकार

आज विश्व के बहुत से देशों ने हिंदी भाषा को अपना रहा है यही कारण है कि हम राज्य भाषा ,संपर्क भाषा और जन भाषा बनाने के बाद अब हमारी हिंदी विश्व भाषा बनने की ओर जहां अग्रसर है वही उत्तर प्रदेश की परीक्षाओं में अधिकतर बच्चों को हिंदी भाषा में ही फेल हो जाना कहीं ना कहीं चिंता का बात तो है दोस्तों।

दोस्तों की उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 21 करोड़ है इनमें से भी 91% मतलब की 19 करोड़ लोगों की बोलने की भाषा हिंदी ही है। फिर भी इतनी अधिक संख्या में हिंदी भाषी राज्य में हिंदी की परीक्षा में छात्रों का फेल होना दुख की बात है । 

New Delhi,India ( Jan_kranti hindi news Bulletin office 18 July,2020 )! दोस्तों हिंदी भाषा को प्रचलित तौर पर हम माथे की बिंदी या तिलक कहते हैं । जिस प्रकार से कोई भी नारी माथे पर सही से बिंदी लगाती है तो नारी का व्यक्तित्व  प्रभावशाली हो जाता है।
देखो मेरे आत्मीय मित्रों उसी प्रकार से हिंदी भाषा के शुद्ध प्रयोग से साहित्य और हमारे लेखन की महत्ता भी बढ़ जाती है। लेकिन दुख की बात यह है कि आज देखने में आ रहा है कि इसकी मूल स्वरूप और बौद्धिक स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है। हिंदी भाषा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है और हमारी मातृभाषा भी हिंदी भाषा ही है। लेकिन दुख की बात यह है कि हमारे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में जहां सबसे अधिक हिंदी भाषी लोग हैं वहां के अधिकतर बच्चे इसी हिंदी भाषा में फेल हुए कहीं इसका कारण वैश्वीकरण तो नहीं है ना।
आज विश्व के बहुत से देशों ने हिंदी भाषा को अपना रहा है यही कारण है कि हम राज्य भाषा ,संपर्क भाषा और जन भाषा बनाने के बाद अब हमारी हिंदी विश्व भाषा बनने की ओर जहां अग्रसर है वही उत्तर प्रदेश की परीक्षाओं में अधिकतर बच्चों को हिंदी भाषा में ही फेल हो जाना कहीं ना कहीं चिंता का बात तो है दोस्तों।
मुझे बहुत खुशी होती है कि विदेशों से सैंकड़ों पत्र, पत्रिकाएं और सप्ताहिक अखबार से लेकर दैनिक अखबार नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते हैं जिसमें मेरे भी आलेख  व रचनाओं को बहुत से विदेशी समाचार पत्रों में जगह लगातार मिलता रहता है। इसका कारण मुझे लगता है कि हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ़ और समृद्ध है कि इस और अधिक प्रयत्न न किए जाने के बावजूद भी हिंदी की विकास की गति बनी रहेगी अगर हिंदी को लेकर जागरूक करने लगे अधिकतर लोग तो ।
हमको यह सुनकर बहुत दुख हुआ था कि हमारे भारत के जिस राज्य में हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है । उसी राज्य में हिंदी के विषय में लगभग 8 लाख छात्र 10वीं और 12वीं  बोर्ड की परीक्षा में फेल हो गए । आखिर क्यों हमारे छात्र अपनी मातृभाषा हिंदी में ही फेल हो गए ?
आज हम सब देख रहे हैं दोस्तों की वैश्वीकरण का प्रभाव तेजी से हमारे भाषा ,संस्कृति रहन-सहन पर पड़ता जा रहा है। आज दादा- दादी नाना -नानी का छोटे-छोटे बच्चों को प्यार तो नहीं मिलता है।
आज जिस प्रकार से परिवार सिकुड़ता जा रहा है , और बचपन से ही बच्चों को माता-पिता अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा रहे हैं , यही कारण है कि हम देखते  है की आज के बच्चे संस्कार विहीन होते जा रहे हैं। आज तो हम देखते हैं कि बड़े-बड़े महानगरों से लेकर अब छोटे- छोटे शहरों में भी लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं ।  मैं परेशान तब और हो जाता हूं जब देखता हूं कि लोग आप को पढा -लिखा तब  समझते हैं जब आप अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हो, लोग आज देखते हैं इंसान में की उसके पास कैसी लग्जरियस गाड़ी है, उसने कैसा कपड़ा पहन रखा है, कितना अच्छा अंग्रेजी बोलता है । लोग अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले तोते और अच्छे कपड़े और लग्जरियस गाड़ी को देख कर किसी इंसान को कितना इज्जत करना है यह तय करते हैं आज के अधिकतर इंसान ऐसे इंसान मेरे नजरों में बिल्कुल गिरे हुए इंसान होते हैं। आखिर आज इंसान में लोग इंसानियत क्यों नहीं देखते? क्या हम किसी के कपड़े किसी के भाषा  और किसी के धन संपत्ति को देखकर यह सोचे कि उसको कितना इज्जत देना है? आप भी जानते हैं दोस्तों की उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 21 करोड़ है इनमें से भी 91% मतलब की 19 करोड़ लोगों की बोलने की भाषा हिंदी ही है। फिर भी इतनी अधिक संख्या में हिंदी भाषी राज्य में हिंदी की परीक्षा में छात्रों का फेल होना दुख की बात है । इसका मतलब तो यही है कि हमारे देश में जो राज्य हिंदी  का चिराग कहलाता है उसी चिराग के  नीचे हिंदी की दुर्गति वाला अंधेरा है ।
उत्तर प्रदेश में जब कॉपियां  चेक की जा रही थी तो शिक्षकों ने बताया कि कई छात्र ऐसे थे जो आत्मविश्वास जैसे शब्द भी नहीं लिख पाए और आत्मविश्वास की जगह अंग्रेजी के कॉन्फिडेंस शब्द का इस्तेमाल किए और उसका भी स्पेलिंग गलत ही था।
इसके पीछे एक और वजह और मुझे दिखा की उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में लगभग दो लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद ही खाली हैं । जाहिर सी बात है कि अगर छात्रों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं होंगे तो फिर छात्रों का प्रदर्शन कैसे अच्छा होगा? हम इसमें छात्रों का नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गलती मानते हैं। क्योंकि मुझे भी याद है जब मैं पटना में खुद जिस नामी-गिरामी कॉलेज का छात्र था उसी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर साहब जी मुझे खुद बोलते थे कि विक्रम बाबू आज मैं कॉलेज नहीं आ रहा हूं आप मेरे विषय को पढ़ा देना । और उस वक्त मेरे अंदर एक अलग सा जुनून था जो तीन से चार- क्लास प्रतिदिन मैं खुद लिया करता था जोकि पटना का सबसे प्रसिद्ध कॉलेज में वह कॉलेज आता है। यह बातें छात्र संघ के बहुत से मेरे जानने वाले मित्र भी जानते हैं कि विक्रम खुद इसी कॉलेज का छात्र होने के बावजूद भी अपने जूनियर वालो को जैसे की फर्स्ट और सेकंड ईयर वालों को पढ़ाया करता है। अब आप सोच सकते हैं कि पटना के प्रसिद्ध कॉलेज का  हालात यह था तो देश के और राज्यों के स्कूलों और छोटे-मोटे कॉलेजों का हालात क्या होगा? एक तो हमारे यहां शिक्षकों की कमी व्यापक तौर पर है ही वही जो  शिक्षक है भी वह सही से पढ़ाना भी नहीं चाहते है ।यह बातें मैं बिल्कुल अपने अनुभव से कह रहा हूं आज भी मेरे पास जिस कॉलेज में मैं प्रतिदिन पढ़ाया करता था सभी  बच्चों का अटेंडेंस का रजिस्टर तक पड़ा हुआ है ।
दोस्तों अगर किसी भी छात्र का पकड़ अपनी मातृभाषा में अच्छी होगी तो मेरे अनुसार दूसरे बिषय में भी अच्छा प्रदर्शन होगा यह मैंने खुद बहुत पहले जब मैं पटना में पढ़ाया करता था तब सर्वे किया था अपने स्तर पर।
इसी प्रकार से संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने भी  अपनी एक शोध में पाया है कि जिन बच्चों की शुरुआत की 8 वर्षों की पढ़ाई लिखाई उनकी मातृभाषा में होती है वह बच्चा दूसरे बिषयो  को तेजी से सिखने लगता हैं ,  और कुछ वैज्ञानिकों ने भी कहा था कि ऐसे बच्चे के मस्तिष्क का विकास भी बहुत तेजी से होता है।
लेकिन जैसा कि हमने ऊपर बताया था हमारे देश में समस्या यह है कि हिंदी भाषा को हीन भावना की नजर से देखा जाता है जबकि अंग्रेजी भाषा में बात करने को शान समझा जाता है और लोगों को मूर्ख बनाने का सबसे बढ़िया यही भाषा है मुझे लगता है। अगर किसी नेता जी की बात करें जो अंग्रेजी में बात करते हैं वह बहुत जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं वही जो नेता जमीनी स्तर से जुड़े होते हैं, जिनको अंग्रेजी  बोलना नहीं आता है उन्हें आउटडेटेड  लोग मान लेते हैं। आखिर क्यों दोस्तों किसी इंसान के इंसानियत और उसके व्यवहार को भाषा के आधार पर तौला जाता है |याद करो अंग्रेजों ने हमें करीब 200 वर्ष तक अपना गुलाम बना कर रखा और उन्होंने भारत को इंडिया कहा था। यह हम सबके लिए बड़ा ही दुर्भाग्य की बात है कि हमसे नफरत करने वाले और हमें गुलाम बनाने वालों ने हमें जो नाम दिया उसी को हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया और तो और आज आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी हम उसी नाम को मेडल की तरह पहन कर घूम रहे। आखिर क्यों दोस्तों...?
देखने में आता है कि कितना भी बड़ा अपराधी हो या कोई भी व्यक्ति हो अगर वह अच्छा कपड़ा पहना हो लग्जरियस गाड़ी से हो और उसी के साथ फराटेदार अंग्रेजी बोलता हो तो उसको थाने में बड़े इज्जत के साथ सम्मान के साथ बैठाया जाता है चाहे वह  कितना बड़ा ही जुर्म क्यों ना किया हो लेकिन वही कोई गरीब किसान और मजदूर जो अंग्रेजी नहीं बोल पाता है और तो और जिसके कपड़े भी अच्छे नहीं होते हैं उसके साथ बात भी नहीं किया जाता है और बात भी किया जाता है तब गाली -गलौज के साथ दोस्तों यह सब बातें मैं अपनी आंखों से देखा हूं वही बातें यहां आपसे कर रहा हूं। आखिर इतना भेदभाव क्यों? इतना ही नहीं दोस्तों हमारे देश भारत को इंडिया नाम भी विदेशियों ने ही दिया है इतिहासकार मानते हैं कि सबसे पहले ग्रीस के लोगों ने भारत को इंडिया कह कर बुलाया था , फिर उसके बाद धीरे-धीरे यह नाम इंडिया में बदल गया आज भी भारत में एक वर्ग ऐसा है जो अपनी पहचान को भारत से नहीं ना ही  हिंदुस्तान से बल्कि वह अपने आपको इंडिया से जोड़ कर देखता है। और यह वर्ग अंग्रेजों को अपना वैचारिक पूर्वज मानता है |ऐसे ही लोगों की वजह से इंडिया और भारत और हिंदुस्तान के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है। आपको याद होगा पिछले महीने मैंने एक लेख लिखा था जिसमें मैंने जिक्र किया था"" इंडिया ,भारत व हिंदुस्तान ""यह वही इंडिया है जो बड़े-बड़े महानगरों के अट्टालिकाओ में रहते हैं इन्हीं के बगल में हमारा भारत भी रहता है झुग्गी -झोपड़ियों   में रहने को विवश होते हैं । यही भारत जो महानगरों के स्लमो में रहता है इंडिया के रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति करता है। और अगर हम अपने हिंदुस्तान की बात करें तो यह हिंदुस्तान बहुत ही प्यारा है। यह हमारा हिंदुस्तान आत्मनिर्भर गांव में रहता है खेती -बाड़ी करता है और देश के साथ साथ पूरे विश्व के मानव को अपनी मेहनत से अनाज उपजाकर लोगों का पेट भरता है ।लेकिन देखते है हम सभी की यह भारत और हिंदुस्तान हमेशा वंचित रहता है अपने अधिकारों से। आज जो वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से सबसे अधिक परेशान है तो यही हमारा भारत और हिंदुस्तान इंडिया के पास तो बहुत पैसे हैं वह बड़े -बड़े अस्पतालों में जाकर अपना इलाज करा लेगा लेकिन भारत और हिंदुस्तान गरीब है यह कैसे कर आएगा।
जिस उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक हिंदी बोली जाती है इसी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक हिंदी में बच्चे फेल हुए हैं। आप सोच सकते हैं की जिस हिंदी का हाल यह है उत्तर प्रदेश में उसी उत्तर प्रदेश में हिंदी के बड़े-बड़े कवि ,लेखक और साहित्यकार पैदा हुए इनमें हम बात करें तो मुंशी प्रेमचंद्र से लेकर महादेवी वर्मा जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त ,हरिवंश राय बच्चन, सोहनलाल द्विवेदी जैसे नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इसलिए दोस्तों मुझे दुख हो रहा है उत्तर प्रदेश के हिंदी का यह हालात देखकर वर्तमान का और इसी द्वंद को भारत में कई हिंदी फिल्मों में भी हिंदी और अंग्रेजी को लेकर दिखाया गया है। आप सभी से मेरा अनुरोध है कि अपने बच्चों को और अपने आप को हिंदी से दूर ना करें। आप भाषा सभी जरूर सीखें और बोले लेकिन अपनी मातृभाषा  को आप ना भूले और अपने बच्चों को जितना हो सके स्कूली शिक्षा मातृभाषा में ही देने का प्रयास करें , इससे आपके बच्चे चीजो  को जल्दी समझेंगे और उनका मस्तिष्क भी तेज होगा। भाषा को आप कभी भी अपना स्टेटस ना बनाएं अक्सर हम सब देखते हैं कि  लोग सोचते हैं कि वह अंग्रेजी बोलता है तो बहुत विद्वान होगा यह आपकी गलत धारणा है मैंने बहुत करीब से लोगों को दिखा है दिल्ली के सीपी जो कि एशिया का सबसे बड़ा बाजार है वहां मैं देखता हूं 10 से ₹15 हजार रूपए पर लोग काम करते हैं और बहुत अच्छी फराटेदार अंग्रेजी बोलते हैं वहीं दूसरी तरफ मेरे ही मित्र थे जो चार लाइन भी इंग्लिश नहीं बोल सकते वह आज एसडीएम है और ऐसे ही बहुत से मेरे फ्रेंड है जो अंग्रेजी अच्छे नहीं बोल सकते हैं लेकिन कहीं कोई आईएएस है कोई पीसीएस है तो कोई आईपीएस है । दोस्तों मैं खुद दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर लाइब्रेरी में स्टडी करता हूं तो देश -विदेश के अलग- अलग कोने  से छात्र आते हैं पढ़ने उनसे जब मेरी बातें होती है तो अधिकतर मै हिंदी नहीं बोलना पसंद करता हूं अगर कोई अपने बिहार से मिल गया तो अपना भोजपुरी में ही बात करता हूं लेकिन जैसे ही देखता हूं कि सामने वाला व्यक्ति हिंदी नहीं बोल सकता या समझ सकता है ,क्योंकि सेंट्रल लाइब्रेरी में दूसरे देशों के साथ-साथ साउथ के भी बहुत सारे दोस्त होते हैं जिनको हिंदी अच्छी नहीं आती है या नहीं समझ पाते हैं उनके साथ हम अंग्रेजी में बात करते हैं क्योंकि वहां मजबूरी है इसलिए बात करता हूं ।भाषा एक माध्यम है ना की किसी का स्टेटस है आप सब से भी मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने हिंदीभाषा और जो भी आपका मातृभाषा हो उसका अधिक से अधिक प्रयोग करें।
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-  अंतरराष्ट्रीय चिंतक/ पत्रकार ) दिल्ली विश्वविद्यालय अध्येता /आईएएस मेंटर लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे व वंचित  लोगो के लिए  आवाज उठाते रहते है |-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुुुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Rajesh kumar verma

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