वैश्विक महामारी कोरोना काल में भ्रष्टाचार : कवि विक्रम क्रांतिकारी

 वैश्विक महामारी कोरोना काल में भ्रष्टाचार : कवि विक्रम क्रांतिकारी

गरीबों का निवाला हड़पना ही भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार के दायरे में वे सभी लोग आते हैं जो लोग कार्यालय में अपना काम सही से नहीं करते है : कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया - चिंतक / पत्रकार / आईएएस मेंटर / दिल्ली विश्वविद्यालय अध्येता 

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New Delhi,India ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 07 अगस्त, 2020 ) । कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के इस दौर में भी हम देख रहे हैं कि मानवता को ताक पर रखकर पीडीएस दुकानदार गरीबों के निवाले पर डाका डाल रहे हैं। दोस्तों कई जगह देखा गया कि पीडीएस दुकानदार गरीबों को कम राशन देकर ज्यादा पैसा लेने और राशन ना देने जैसी गड़बड़ी सामने आई है। ऐसा मैं नहीं बोल रहा हूं कि सभी राशन डिलर ऐसा कर रहे हैं, लेकिन देखा जाए तो इनकी संख्या कम भी नहीं है। 580 राशन डीलरों को सस्पेंड कर दिया गया है।दोस्तो  इतना ही नहीं बल्कि 25 राशन डीलरों की सेवा ही  समाप्त कर दी गई और इन भ्रस्ट डीलरो का लाइसेंस भी रद्द किया गया। दोस्तों यह आंकड़ा तो विभागीय कार्रवाई का है। लेकिन इससे ज्यादा वैसे राशन डीलरों की संख्या है, जो मनमानी करने के बावजूद विभाग की नजरों से बचे हुए और उनके विरूद्ध कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है।


दोस्तों आज गरीब जनता इस वैश्विक महामारी से पहले ही परेशान है, तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के भेंट उनका निवाला भी चढ़ रहा है। दोस्तों भ्रष्टाचार एक दंडनीय अपराध के साथ ही साथ मानवाधिकार को कमजोर करने वाला साधन भी है। देखा जाए तो भ्रष्टाचार एक व्यक्ति को देश के संविधान द्वारा सुनिश्चित जीवन, स्वतंत्रता ,समानता और प्रतिष्ठा जैसे अधिकारों से वंचित तो रखता ही है , इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित वैधानिक, राजनीतिक ,आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का भी उल्लंघन करता है। आज ध्यान से देखें दोस्तों तो किसी भी देश या समाज में  लोगो के  हालात खराब होने  के पीछे वहां व्याप्त भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ होता है।

भ्रष्टाचार के ऐसे  प्रसार के चलते ही एक व्यक्ति के वैधानिक ,राजनीति ,आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार हमेशा ही खतरे में रहता है। किसी भी देश या समाज में यह एक व्यक्ति का अधिकार है कि उसे भ्रष्टाचार मुक्त ऐसी शासन व  न्यायिक व्यवस्था मिले ,जहां वह अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें। अगर दोस्तो एक ऐसी शासन व न्यायिक व्यवस्था , जिसमें कि भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा, ऐसे में कोई भी व्यक्ति ना तो उपलबंध  अधिकारों का उपयोग ही कर सकता है, और ना ही देश या समाज के विकास में अपना योगदान दे सकता है। इस तरह से तो दोस्तों देश और व्यक्ति दोनों ही विकास की दौड़ में पिछड़ जाएंगे। मुझे लगता है कि किसी भी देश में व्यक्ति को पूर्ण विकास के लिए अवसर भ्रष्टाचार मुक्त समाज में ही दिए जा सकते। अभी हाल ही में जो नई शिक्षा नीति लागू की गई है अगर इसका क्रियान्वयन इमानदारी पूर्वक किया जाए तो भारत के चुनौतियों और  जरूरतों को पूरा कर सकती है ।

भ्रष्टाचार के खात्मे में मजबूत न्यायिक व्यवस्था और मानवाधिकार आयोग जैसे निकाय महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकते हैं। इसके लिए मुझे लगता है कि कानून की किसी नई परिभाषा की भी जरूरत नहीं है।अगर  हमारे यहां जरूरत है तो बस , कानून के मौजूदा प्रावधानों को कडाई के साथ लागू करने की जैसा की नई शिक्षा नीति आई है इसमें क्रियान्वयन सही से हो जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता है। आज दोस्तों भ्रष्टाचार का दायरा बहुत ही बड़ा है। दोस्तो गरीबों का निवाला हड़पना ही भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार के दायरे में वे सभी लोग आते हैं जो लोग कार्यालय में अपना काम सही से नहीं करते  है । ऐसे लोग भी देश और समाज का भारी नुकसान करने के साथ-साथ लोगों को मानवाधिकारों से भी वंचित करते रहते हैं।।


कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया - चिंतक / पत्रकार / आईएएस मेंटर / दिल्ली विश्वविद्यालय अध्येता लेखक सामाजिक आंदोलन से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते है - स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख ।

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Jankranti....

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