"आजादी का गाथा भूल ना जाना मित्रों ": कवि विक्रम क्रांतिकारी

      "आजादी का गाथा भूल ना जाना मित्रों ": 

                                     :कवि विक्रम क्रांतिकारी

 हमारे भारत को आजादी आसानी से नहीं मिली है , बल्कि इस आजादी के लिए हमारे भारतीय क्रांतिकारियों ने खून पसीना एक कर दिया आजादी पाने के लिए और अंग्रेजों से भारत को छुड़ाने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी बहुत से दोस्तों स्वतंत्रता सेनानियो ने हंसते-हंसते अपने प्राण भारत मां की आजादी के लिए आहूत कर दिए। 

आज  आजादी के 73 वर्ष बीत गए और अब हम 74 वें स्वतंत्रता दिवस आज मना रहे हैं। ध्यान से देखें तो अब हम अपने रास्ते पर तेजी से बढ़ते हुए पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं। आगे भी हमें इस पर कायम रहना होगा जिससे कि हम तेजी से और आगे बढ़ते जाएं।।

अब हम लोग 74 वे 15 अगस्त में आज हम पहुंच गए हैं, देखा जाए तो आज हमारा डंका पूरे विश्व में बज रहा है मतलब कि अब हम अपनी नियति की राह पर धीरे-धीरे आ ही गए हैं। हमें अब इस पर कायम रहना होगा आगे भी। हमारी उम्मीदों को पंख लग जाना स्वाभाविक है लेकिन इन उम्मीदों को पूरा करने में हमें भी हाथ बटाना होगा । हम सब मिलकर भारत को फिर से विश्वगुरु बनाएंगे : कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया- चिंतक पत्रकार आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय अध्येता 

जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट 

नई दिल्ली, भारत ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 15 अगस्त, 2020 ) । हमारे भारत को आजादी आसानी से नहीं मिली है , बल्कि इस आजादी के लिए हमारे भारतीय क्रांतिकारियों ने खून पसीना एक कर दिया । आजादी पाने के लिए और अंग्रेजों से भारत को छुड़ाने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी बहुत से दोस्तों स्वतंत्रता सेनानियो ने हंसते-हंसते अपने प्राण भारत मां की आजादी के लिए आहूत कर दिए। दोस्तों हमारा भारत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा लेकिन भारतवासियों की एक सोच एक संकल्प और एक विश्वास ने हम सभी को उनसे आजाद करा दिया आज हम जिस स्थिति में है वह सब हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की देन है यदि वह स्वतंत्रता सेनानी घर में बैठे-बैठे और आजादी की पहल ना करते तो आज शायद हम किसी अंग्रेज के गुलाम बने होते हैं।


मुझे लगता है कि अब हम अपने सही रास्ते पर हैं। देखें तो आज  आजादी के 73 वर्ष बीत गए और अब हम 74 वें स्वतंत्रता दिवस आज मना रहे हैं। ध्यान से देखें तो अब हम अपने रास्ते पर तेजी से बढ़ते हुए पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं। आगे भी हमें इस पर कायम रहना होगा जिससे कि हम तेजी से और आगे बढ़ते जाएं।।
इतिहास के पन्ने देखे तो 15 अगस्त 1947 को जब 10 डाउन एक्सप्रेस लाहौर से अमृतसर पहुंची तो कोई उतरा नहीं। दरवाजे जैसे ही खोले गए तो डिब्बों की फर्श पर चिर दी गई लाशें ही लाशें थी। खून से तरबतर बोगियों से लाशे उतारी जा रही थी और दूसरी तरफ रेडियो पर नेहरू जी के शपथ ग्रहण के भाषण नियति से मुलाकात की रिकॉर्डिंग का प्रसारण हो रहा था। दोस्तों यह हमारी आजादी का पहला दिन था।
दोस्तों हमारे भारत मां को आजाद कराने के लिए जिस तरह भारतीय पुरुषों ने अपना जोर दिखलाया उसी तरह भारतीय महिलाओं ने भी पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के नाम श्रीमती एनी बेसेंट सरोजिनी नायडू ,मंतगीनी हजारा और सिस्टर निवेदिता आदि शामिल थी।
भारत की आजादी हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की बलिदानों से परिपूर्ण है, जब सत्रहवीं सदी के आसपास यूरोपीय व्यापारियों ने भारत में अपना आउट पोस्टर बनाना प्रारंभ कर दिया था सभी तरह की संभावनाएं होने की वजह से ही उनका व्यापार अच्छे से स्थापित हो गया और उन्होंने भारत में मिलिट्री फोर्स तैनात करने प्रारंभ कर दिया उनके मन में लालच बढ़ती गई धीरे - धीरे और यहीं से भारत पर अपना नापाक नजरें रखने लगे ।


देखा जाए तो भारत स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रांति का बहुत ही बड़ा महत्व है , यह लड़ाई अंग्रेजों से आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है और यह लड़ाई पूर्ण रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के विरुद्ध में ही की गई थी और दोस्तों इस क्रांति का आरंभ मंगल पांडे ने किया था। मंगल पांडे एक ब्रिटिश रेजीमेंट सैनिक थे जोकि गाय के मांस और चर्बी का इस्तेमाल बंदुको में करने से वह मना कर रहे थे और उसके खिलाफ गाय को बचाने के लिए उन्होंने यह बगावत की शुरुआत कर दिए । इस बगावत में उन्होंने बैरकपुर रेजिमेंट के एक अफसर को मौत के घाट उतार दिए तथा इस घटना के बाद हर भारतीय के मन में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी थी। लेकिन ब्रिटिश लोगों ने मंगल पांडे का जीवन अंत कर दिया उन्हें फांसी की सजा दे दी और मंगल पांडे ने आजादी के लिए लड़ते लड़ते शहीद हो गए ।


दोस्तो इसके बाद अंग्रेजों को भारत से खत्म करने के लिए एक के बाद एक योजनाबद्ध तरीके से क्रांति की शुरुआत हुई। लोगों को जागरूक करने का भी प्रयास किया जाने लगा और कई संस्थाओं की स्थापना भी की जाने लगी जिसकी बदौलत 1867 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना दादा भाई नौरोजी ने की और सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना 1876 में की इन संस्थाओं ने भारतीयों के मन में एकता जागृत करने का काम किया। भारत मां को आजाद कराने के लिए आंदोलनों में बहुत से व्यक्तियों ने हिस्सा लिया , जिसमें कि हर धर्म हर जाति के लोगों ने भरपूर योगदान दिया। भारत की आजादी में प्रमुख नाम हम लोग महात्मा गांधी लाला लाजपत राय बाल गंगाधर तिलक गोपाल कृष्ण गोखले श्री अरबिंदो घोष नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद भगत सिंह सूर्य सेन बटुकेश्वर दत्त और भी बहुत से क्रांतिकारियों ने भारत की आजादी में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई।।


दोस्तों हमारे सामने 1947 से चले आ रहे असंभव से सपनों की एक श्रृंखला थी। सभी का सवाल था कि 1970 धारा 35 ए कब खत्म होगा और पीओके की वापसी कब होगी.. ? आज आपके इन सवालों  का उत्तर सामने है।
दोस्तों एक बात और बोलना चाहूंगा कि आजादी से पहले चलाए गए सामाजिक आजादी के भूले हुए अभियानों को अपनी पूर्णता पर पहुंचाना है हम सभी को मिलकर। इसी तरह अब हमारी धन और जन शक्ति का राष्ट्र निर्माण में सदुपयोग होना चाहिए और हो भी रहा है , अब हम लोग 74 वे 15 अगस्त में आज हम पहुंच गए हैं, देखा जाए तो आज हमारा डंका पूरे विश्व में बज रहा है मतलब कि अब हम अपनी नियति की राह पर धीरे-धीरे आ ही गए हैं। हमें अब इस पर कायम रहना होगा आगे भी। हमारी उम्मीदों को पंख लग जाना स्वाभाविक है लेकिन इन उम्मीदों को पूरा करने में हमें भी हाथ बटाना होगा । हम सब मिलकर भारत को फिर से विश्वगुरु बनाएंगे।।
कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया- चिंतक पत्रकार आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय अध्येता । 
लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं- स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख ।

समस्तीपुर कार्यालय से राजेेेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Jankranti...

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