रालोसपा द्वारा हल्ला बोल दरवाजा कार्यक्रम का आयोजन करते हुऐ न्यायिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण के तहत राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया

 रालोसपा द्वारा हल्ला बोल दरवाजा कार्यक्रम का आयोजन करते हुऐ न्यायिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण के तहत राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया

रालोसपा जिला सचिव ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर किया टीका टिप्पणी

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट 

रालोसपा जिला सचिव सह मोहिउद्दीननगर विधानसभा राज्य परिषद् सदस्य रंजीत कुमार 

समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 01 सितम्बर, 2020 ) ।रालोसपा द्वारा हल्ला बोल दरवाजा कार्यक्रम का आयोजन करते हुऐ न्यायिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण के तहत राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राज्य परिषद् सदस्य मोहिउद्दीननगर विधान सभा सह जिला सचिव रालोसपा समस्तीपुर रंजीत कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एक ऐतिहासिक फैसला आया । ऐतिहासिक फैसला इस मायने में और भी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य सत्र न्यायाधीश के आलोचना करने पर सुप्रीम कोर्ट  जजेज जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना करने के जुर्म में एक कठोर फैसला सुना कर आम जनता में यह संदेश देने की कोशिश में थी लोकतंत्र में कोलेजियम सिस्टम से चुना गया जज एक नागरिक के तौर पर जनता के दिए गए आलोचना के अधिकार पर एक तरह से खत्म करना । हालांकि कल अंतिम फैसला में भी सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ आलोचना को असंवैधानिक हीं माना पर इससे खुद प्रशांत भूषण के सहारे सुप्रीम कोर्ट की जितनी फजीहत वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहले कभी भी नहीं हुआ था ।

       रालोसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो० उपेन्द्र कुशवाहा

सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के मामले में बड़े हीं तेवर के साथ प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया और 20 अगस्त 2020 को सजा सुनाने का दिन मुकर्रर किया । इसकी सोशल मीडिया से लेकर आम जनता में सुप्रीम कोर्ट की बहुत फजीहत हुई और देखते हीं प्रशांत भूषण एक नायक के रूप में स्थापित हो गए । इसकी भनक सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी लगी और 20 अगस्त 2020 को सजा सुनाने के दिन ऐसा लगा कि खुद सुप्रीम कोर्ट झुककर प्रशांत भूषण से सुलह करना हीं बेहतर समझा । जजों की बेंच ने कहा अगर प्रशांत भूषण माफ़ी मांग लें तो वो सजा से बच सकते हैं और उन्हें मोहलत देते हुए अगली सुनवाई की तारीख रखी 24 अगस्त 2020 को । लेकिन प्रशांत भूषण ने साफ़-साफ़ शब्दों में मांफी मांगने से ना सिर्फ मना कर दिया बल्कि सुप्रीम कोर्ट से जो सजा देनी उसे देने का आग्रह तक कर डाली । इतना से ही प्रशांत भूषण पूरे देश में एक नायक के तौर उभर गए । फिर 24 अगस्त को जजों की बेंच बैठी तबतक प्रशांत भूषण लोगों के दिलों पर विद्रोही स्वर में पूरे देश में छा चुके थे और उस दिन भी जजों की बेंच ने और समय देते हुए सजा सुनाने की तारीख आगे बढ़ा कर 31 अगस्त 2020 यानी कल के दिन कर दी । कल भी प्रशांत भूषण ने माफी नहीं मांगी और सजा काटने के हीं बात पर मुखर रहे । अंततः सुप्रीम कोर्ट के जजों की बेंच ने थक-हार कर सजा सुना तो दी पर वह इतना मामूली था कि वह सजा देना ना देना बराबर का था और सजा के नाम पर सिर्फ एक रुपया जुर्माना भरने की सजा ।

हां इसको ना भरने के ऐवज में थोड़ी सजा अधिक थी पर कोई भी व्यक्ति इतनी कम सजा करवा भी वह जुर्माना ना भरने की ज़िद करे तो फिर उसे फ़ालतू के ज़िद हीं कहा जा सकता है ।

खैर आइए एक बात का विश्लेषण करें कि आज से कुछ समय पहले तक आम जनता को छोड़िए बड़े-बड़े तुर्रम खां टाईप के लोग भी सुप्रीम कोर्ट के आलोचना करने की हिम्मत नहीं करता था वहां लोगों में इतनी हिम्मत करके प्रशांत भूषण को रातों-रात नायक कैसे बना दिया ??

जी हां मैं ठीक कह रहा हूं इस तारीख को नोट कर लीजिए 20 म‌ई 2018 ।स्थान - नई दिल्ली के कंस्टीच्युशन क्लब । यहीं वो स्थान व तारीख थी जब पूरे देश में लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कोलेजियम सिस्टम के खिलाफ सड़क पर आंदोलन की शुरुआत की गई और इसके नेतृत्वकर्ता थे तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री मानव संसाधन विकास विभाग भारत सरकार प्रोफेसर उपेंद्र कुशवाहा और इस आंदोलन में शरीक होने वाले मुख्य अतिथि थे( 01.) श्री विंश्ववर प्रसाद सिंह पूर्व न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट, (02.) श्री मुलचंद गर्ग पूर्व न्यायाधीश दिल्ली हाईकोर्ट,(03.) श्री सुभाष कश्यप देश के जाने-माने संविधान विशेषज्ञ और (04.) प्रोफेसर दिलीप मंडल इंडिया टुडे के पूर्व संपादक व जाने-माने सामाजिक विश्लेषक । और इस आंदोलन का गवाह मैं खुद भी हूं जो खचाखच भरे कंस्टीच्युशन क्लब के हाॅल और इस हाॅल में पैर रखने की जगह नहीं थी तब मुझे पत्रकार दीर्घा में अपने पास बैठने की जगह दी। 

इस आंदोलन को शुरू करने से पहले एक बुद्धिजीवी नेता के तरह हीं प्रोफेसर उपेंद्र कुशवाहा जी ने पहले इस पर रिसर्च किया फिर संविधान के विशेषज्ञों से गहन मंथन किया अपने पार्टी के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुवोध कुमार जी उनसे देश व पूरी दुनिया के डाटा कलेक्ट करने का आग्रह किया फिर इस आंदोलन को जमीन पर बहुत हीं डिफरेंट स्टाइल में बिल्कुल शांतिपूर्ण माहौल में सभी वक्ताओं का इस कोलेजियम सिस्टम पर विचार व भाषण हुआ जिसमें दोनों जजों का मत था कि कोलेजियम के ठीक हीं तो है पर बाकी सभी वक्ताओं ने इसे शिरे से नाकार दिया । जाने-माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने भी कोलेजियम सिस्टम के विरुद्ध अपना मत दिया ।

अंत में कोलेजियम सिस्टम पर बोलते हुए प्रोफेसर उपेंद्र कुशवाहा ने सवाल पूछते हुए एक बात कहीं जिस पर पूरा हाॅल सुन कर सन्न रह गया । उन्होंने कहा ऐसा क्या कारण है देश के आजादी के 70 साल पूरे होने के बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में मात्र 250 से 300 परिवारों के हीं जज हुए ? जो कोलेजियम की व्यवस्था है उस व्यवस्था के तहत जैसे पूराने जमाने के एक राजा अपने राज्य का अपने परिवार का उत्तराधिकारी चुनता था वहीं व्यवस्था का नाम कोलेजियम सिस्टम जहां एक अपने परिवार के लोगों को जज चुनता है । इसमें SC, ST, OBC घरों के बच्चों को तो छोड़िए एक गरीब ब्राह्मण परिवार का भी बच्चा चाहे कितना भी मैरिट वाला हो वह सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट का जज नहीं बन सकता । उसके लिए दरवाजे बंद है और इस दरवाजे को खोलना होगा और यह तभी संभव है जब कोलेजियम सिस्टम को हटायेंगे वरना हमेशा यहीं होगा जब कोई जज अपने परिवार का कोई उत्तराधिकारी चुनता रहेगा जो लोकतांत्रिक देश में एक अलोकतांत्रिक व अन्यायपूर्ण व्यवस्था है । ऐसा क्या कारण है कि एक अखबार बेचने वाले एपीजे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति बन सकते हैं, एक चाय बेचने वाला का बेटा देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तब भी एक आम इंसान का बेटा सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट कोर्ट का जज क्यों नहीं बन सकता है ..?? ऐसा नहीं की उपेंद्र कुशवाहा जी ने यह सब सवाल सिर्फ बाहर सड़क पर की । आप उनकी लोकसभा में उनके भाषणों को सुनेंगे तब उन्होंने एक बार नहीं अनेकों बार कोलेजियम सिस्टम के खिलाफ संसद में आवाज़ बुलंद की । पिछले 70 सालों के इतिहास में संसद में भी सबसे मुखर हो कर कोलेजियम सिस्टम के खिलाफ किसी ने आवाज बुलंद की तो वो सिर्फ़ उपेंद्र कुशवाहा थे । 

मुख्यत: बिहार में सिमटी इनकी पार्टी ने इस आंदोलन को ना सिर्फ दिल्ली व बिहार तक सीमित रखा बल्कि देश के ज्यादातर राज्यों के राजधानी में जाकर इस मुद्दे पर बड़ा-बड़ा संम्मेलन कर बुद्धिजीवियों के बीच अपने इन सवालों को रखा और देश के जाने-माने लगभग सभी बुद्धिजीवियों ने एक स्वर से इस कोलेजियम सिस्टम की मुखालिफत की जिसका परिणाम है कि आज आम आदमी भी अन्यायपूर्ण व्यवस्था कोलेजियम सिस्टम के खिलाफ जागरूक हुआ तथा इसके खिलाफ मुखर हुआ ।

हमारे देश के इतिहास में बड़े-बड़े सामाजिक न्याय के पुरोधा रहे और बड़े-बड़े अपने आपको सामाजिक न्याय के कहलाने में मशगूल रहने वाले लोगों में से किसी की भी इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ आवाज आपने सुनी..??? आप नहीं सुन सकते हैं, क्योंकि यह जो अन्यायपूर्ण व्यवस्था है ।उसके खिलाफ बोलने का साहस चाहिए, इमानदारी चाहिए और सबसे जरूरी चीज है उसे बुद्धिजीवी होना चाहिए और हमें खुशी है कि ये तीनों चीजों से परिपूर्ण बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी के बाद दूसरे बुद्धिजीवी बिहार के नेता है। श्री रंजीत ने आगे कहा है की हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष रालोसपा सह पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री भारत सरकार श्री उपेन्द्र कुशवाहा, बिहार के भावी मुख्यमंत्री व भविष्य है।

समस्तीपुर कार्यालय रिपोर्ट राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । Published by Jankranti...

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