जिला कृषि परियोजना "आत्मा" द्वारा धान की सीधी बुआई पर किसान पाठशाला का पाँचवा सत्र का किया गया आयोजन

 जिला कृषि परियोजना "आत्मा" द्वारा धान की सीधी बुआई पर किसान पाठशाला का पाँचवा सत्र का किया गया आयोजन

 


गोमूत्र से कीटनाशी बनाकर प्रकृति का सरंक्षण करे: पंकज

      सुरक्षित अन्न भंडारण में नीम लाभकारी: स्वाति 

स्वीपनेट विधि से धान में करे कीड़ा का नियंत्रण: मारुत नंदन शुक्ल

जनक्रान्ति कार्यालय से हमारे संवाददाता सुमन सौरभ सिन्हा की रिपोर्ट 

ताजपुर/समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 09 अक्टूबर, 2020 ) ।  ताजपुर प्रखंड अंर्तगत हरिशंकरपुर बघौनी पंचायत में जिला कृषि पदाधिकारी-सह-परियोजना निदेशक "आत्मा"समस्तीपुर विकास कुमार के मार्गदर्शन में धान की सीधी बुआई पर किसान पाठशाला का पाँचवा सत्र का आयोजन सहायक तकनीकी प्रबंधक मारुत नंदन शुक्ल एवं स्वाति कुमारी के द्वारा किया गया।

जिसमें संचालक सह प्रगतिशील कृषक बैधनाथ राय के 01 हेक्टेयर प्रत्यक्षण प्लॉट में धान की सीधी बुआई तकनीक से मारुत नंदन शुक्ल एवं स्वाति कुमारी सहायक तकनीकी प्रबंधक के देख-रेख में वैज्ञानिक पद्धत्ति से किया गया है, किसान खेत पाठशाला कार्येक्रम का संचालन युवा एवं प्रगतिशील किसान किसान मनीष कुमार ने किया । 

प्रशिक्षण कार्येक्रम में मारुत नंदन शुक्ल ने समेकित किट प्रबंधन के तहत स्वीपनेट विधि से धान के खेत मे धान में लगने वाले कीड़ो को पकड़ने की जानकारी दी जिसमे खेत के अंदर 5-7 कदम जाकर तेजी से चलते हुए जाल को 10 बार बाए और 4 बार दायें तेजी से घुमाने से कीड़ो जाल में आ जाते है इस प्रकार जाल में फंसे कीड़ो को पॉलीथिन बैग में रखकर रुई के फाहे के सहारे फॉर्मिलीन में डूबा के रखने से कीड़े बेहोश या मर जाते है।

धान के तना वेधक कीट के नियंत्रण के लिए फेरोमेन ट्रैप का उपयोग करने की सलाह दिया।

प्रशिक्षक स्वाति कुमारी, सहायक तकनीकी प्रबंधक ने बताई की प्रखंड के किसान धान की कटाई शुरू कर दिए है, धान की कटाई के बाद वैज्ञानिक ढंग से अन्न भंडारण कर भंडारण में लगने वाले कीट-व्याधि से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है । 

उन्होंने बताई की किट घुन, सुरसुरी, भृंग, पतंगा, फफूंदी, जीवाणु, पक्षी व चूहे आदि के द्वारा काफी नुकसान   पहुँचाया जाता है, जैविक पद्धति से अनाजों को भंडारण कर के इन क्षति को काफी कम किया जा सकता है।भंडारण से पूर्व धान में 14 फीसदी से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए, इसकी जांच के लिए अनाज को दांतों के बीच दबाकर रखना है । 

यदि अनाज कट की आवाज के साथ कट जाए तो जानना चाहिए कि नमी भंडारण के लिए उपयुक्त है।

अनाज बोरे में रखना है तो उसे सफाई कर के ही प्रयोग करे, पुराने बोरे का प्रयोग के लिए 15-20 मिनट तक खौलते पानी मे बोरे को रखे एवं सुखाकर ही प्रयोग करने को बताया, बोरे को भंडार गृह की दीवारों से 2 से 2.5 फिट तथा जमीन से 6 से 8 इंच ऊपर रखना चाहिए, साथ ही बोरे तथा भंडारगृह के छत  के बीच लगभग 5 फिट जगह होनी चाहिए, भंडारगृह नमी एवं वायुरोधी होंना चाहिए, फर्श जमीन से 3 से 4 फिट ऊपर होनी चाहिए तथा दीवारों में दरार बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।

सुरक्षित अन्न भंडारण में नीम लाभकारी:-

 सहायक तकनीकी प्रबंधक स्वाति कुमारी ने अन्न भंडारण के लिए नीम की सूखी पत्ती को 5 किलोग्राम प्रति क्विंटल बीज या अनाज में मिलाकर रखने से अनाज-बीज को कीड़ो से बचाया जा सकता है ।

भंडारण में अनाज रखने से पूर्व दाने पर यदि नीम के तेल का हल्का परत कर इसे भंडारित करने से अनाज भंडार में 6 से 8 महीने तक सुरक्षित रहता है।बोरियां जिसमे अनाज रखना है उसे 10% बीज से तैयार कीटनाशक घोल से 15 से 20 मिनट उपचारित करने के बाद छाया में सुखाकर अनाज को रखने को बताया।अनाज भंडारण के लिए प्रति किलो अनाज को प्रति ग्राम नीम तेल से उपचारित करे, अनाज एवं दालों को सुरक्षित भंडारण नीम की सूखी पत्तियों, बीज का चूर्ण एवं नीम के तेल द्वारा किया जा सकता है।

नीम की सूखी पत्ती का पाउडर 2 से 5 किलोग्राम प्रति एक हजार घन फिट बोरे की छल्ली पर प्रयोग करने से भंडारित अनाज में करने से 80% तक भंडार किट नियंत्रित होते है जैसे-सूंडा, लक्ष्मीनिया, सुसरी, फंनगा खपरा भृंग, ढोढवा,दाल का भृंग इत्यादि।जुलाई-अगस्त महीने में बरसात के मौसम में भंडार में नमी का प्रतिशत बढ़ने से भंडार में कीटो की समस्या बढ़ जाती है, नीम की पत्ती का धुआं करने से अधिकांश भंडार किट मर जाते है तथा भंडार का तापक्रम भी बढ़ जाता है।

प्रशिक्षण के दौरान कृषि समन्वयक पंकज कुमार ने किसानों को गोमूत्र से कीटनाशी बनाने का तरीका बताया  जिसमे ताजा गोबर 5 किलोग्राम, गोमूत्र 7.5 लीटर, पानी 5 लीटर, चुना 100 से 150 ग्राम  एवं एक मिट्टी का घड़ा या बर्तन की आवश्यकता पड़ती है।

     सबसे पहले ताजा गोबर 5 किलोग्राम ,गोमूत्र 7.5 लीटर एवं पानी 5 लीटर सभी को एक साथ मिलाकर घोल बनाएंगे, फिर सभी को एक साथ मिट्टी के बर्तन में रख कर मुँह बंद करके 5 से 10 दिनों के लिए छोड़ देते है, फिर इस घोल को अच्छी तरह से 2 से 3 बार छानकर उसमे 150 ग्राम चूना मिलाकर फिर छान लेते है।अब इस घोल को 80 लीटर पानी मे मिलाकर कीटों के नियंत्रण में फसलों पर छिड़काव करेंगे।

फायदा:-इस घोल के छिड़काव से पौधे हरे-भरे एवं स्वस्थ हो जाएंगे।

तितली, फसलो पर अंडा नहीं दे पाती है एवं रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है।

किसान स्वयं कीटनाशी बनाकर रासायनिक कीटनाशी के दुष्परिणाम को कम कर के वातावरण को सरंक्षित रखते हुए जैविक उत्पाद के साथ-साथ आमदनी में भी इजाफा पा सकते है।

प्रशिक्षण कार्येक्रम में किसान सलाहकार ममता कुमारी, कार्यपालक सहायक संजीव कुमार, किसान डॉ रामकृपाल राय ,रामनाथ राय, राहुल कुमार, सुनील कुमार सिंह, गणेश्वर सिंह, नरेश सिंह, पंकज सिंह, श्रीराम साह, महावीर साह, शिवलाल सिंह, धर्मेंद्र कुमार, मीना देवी, प्रमिला देवी एवं अन्य किसानों ने किसान पाठशाला में भाग लिया।

समस्तीपुर कार्यालय से सुमन सौरभ सिन्हा की रिपोर्ट प्रकाशक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित । जनक्रान्ति कार्यालय से प्रसारित । 

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