यदि देश के भ्रष्टाचार को " रावन " मान लिया जाएं - तो सवाल है कि ' इसकी नाभि का अमृत कुंड है कहां : मो० अकबर अली

 यदि देश के भ्रष्टाचार को " रावन " मान लिया जाएं - तो सवाल है कि ' इसकी नाभि का अमृत कुंड है कहां : मो० अकबर अली 


' वह अमृत कुंड सांसद क्षेत्र विकास निधि घोटाले-महाघोटाले ' राज्य-राष्ट्र की काया को कर रहें हैं कमजोर 

जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट 

पटना/समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 दिसम्बर, 2020 ) । यदि देश के भ्रष्टाचार को " रावन " मान लिया जाएं-तो सवाल है कि ' इसकी नाभि का अमृत कुंड कहां है। पिछले ढाई दशकों का अनुभव बताता है कि ' वह अमृत कुंड सांसद क्षेत्र विकास निधि घोटाले-महाघोटाले ' राज्य-राष्ट्र की काया को कमजोर कर रहें है। उपरोक्त वक्तव्य राजद अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश महासचिव मो० अकबर अली ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से प्रेस को दिया । 

उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा की केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए-सांसद निधि क्षेत्र विकास योजना के तहत होने वाले कार्यों को दो वर्षों के लिए बंद कर दिया हैं। देश में दिनांकः-23 दिसम्बर 1993 को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी द्वारा-सांसद निधि क्षेत्र योजना की शुरुआत किया गया था । देश के सांसदों को ऐसा तंत्र उपलब्ध कराया जा सकें ' जिससे माननीय सांसद अपने स्थानीय क्षेत्रों का विकास कर सकें। हालांकि इसके व्यय को लेकर केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश मौजूद है ' पर जरूरत इसे कानूनी रूपरेखा प्रदान कराने की  है। सांसद निधि क्षेत्र विकास योजना को लेकर-पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ' कैग ' केंद्रीय सूचना आयोग और वर्ष-2008 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी जी ने भी लोकसभा सदन में अपने संवोधन में कहा था कि ' ऐसी योजनाओं का कोई मतलब जिससे लोकतंत्र और संविधान के साख पर उंगलियाँ उठाई जाएं।आज देश में  सबसे बडा सवाल है कि-सांसद निधि का सिर्फ़-40 फीसदी आता है जमीन पर-बाकि-60 फीसदी कहा जाता हैं राशि। वाकई ' भारतीय समाज के उन तमाम वर्गो के शिक्षित बेरोजगार युवाओं  के भविष्य के लिए-एक बहुत बडी चिंता की बात है कि ' सांसद निधि का सही इस्तेमाल नही हो पा रहा है ' लेकिन सांसद निधि घोटाला ' लोकतंत्र की आत्मा को प्रभावित कर रहा है। सांसद निधि  के इस्तेमाल को लेकर आए दिन मिल रही शिकायतों के बारें विचार करें ' इस सांसद निधि को लेकर-केंद्र सरकार ने एक नोडल एजेंसी बना रखी है ' इसका राज्य  एवं जिला स्तर पर समन्वय बनाएं रखना है। तत्कालीन योजना आयोग ने-2001 में ही कह दिया हैं कि-इस निधि के निगरानी का काम बहुत कमजोर है ' वर्ष-2012 में लोक लेखा समिति ने कहा था कि-जितनी निधि उपलब्ध रहती है ' उसकी आधी राशि ही खर्च हो पाती है ' सांसद निधि का खर्चे का हिसाब-किताब  एवं प्रगति रिपोर्ट भी समय पर उपलब्ध नहीं होती है। सांसद निधि में पारदर्शिता का अभाव है ' याद रहे कि-वर्ष-2007 में सांसद निधि में कमीशन लेने के कारण एक राज्यसभा सदस्य की सदस्यता समाप्त कर दिया गया था ' वही दुसरी ओर विधायक निधि मंजूर करके लिए रिश्वत लेने के आरोप में बिहार में विधायक के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र भी दाखिल किया जा चुका है।इन छिटपुट मामलों को छोड़ दे-तो सांसद निधि-विधायक निधि को लेकर-जो आम चर्चाएं होती रहती है ' ये स्वच्छ प्रशासन के लिए बहुत चिंता पैदा करती है। ऐसे में सवाल है कि-जिस निधि में भ्रष्टाचार की आम चर्चा होती है ' उसे रोकने के लिए-जनप्रतिनिधि सामूहिक रूप से आवाज़ क्यों नही उठाते है...??? विडंबना है कि-कुछ बडे राजनेता जब विपक्ष में रहते है तब तो-सांसद निधि के खिलाफ खूब बोलते है-किंतु सत्ता  में आने पर-उनका रूख ही अलग  हो जाता हैं।सबसे आश्चर्य बात यह है कि-जब वर्ष-1993 में सांसद निधि की शुरुआत किया गया-तो माननीय मनमोहन सिंह जी उस समय तत्कालीन वित्तमंत्री थे-उन्होंने कहा कि-मैं देश में रहता तो सांसद निधि लागू नही होने देता ' मै देश के बाहर था।लेकिन जब खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी बनें तो उन्होंने सांसद निधि पाँच करोड़ रूपये करने का किया था।

जनक्रान्ति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित व प्रसारित ।

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