कैमूर की मॉं मुंडेश्वरी धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक मॉं मुंडेश्वरी मन्दिर

कैमूर की मॉं मुंडेश्वरी धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक मॉं मुंडेश्वरी मन्दिर  

जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट 


कैमूर/भभूआ,बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 25 जनवरी, 2021 ) । मॉं मुंडेश्वरी धाम की मंदिर को जब औरंगजेब नहीं तुड़वा सका था । इस मंदिर, रक्तहीन बलि है विशेषता।  कैमूर जिले के भगवानपुर में पवरा पहाड़ी पर अवस्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर अतिप्राचीन है। इसे देश के 51 शक्तिपीठों में गिनती किया जाता है। जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा आदिकाल से होती आ रही है। रक्तविहीन बलि यहां की विशेषता है। कहते हैं कि मुगलकाल में बादशाह औरंगजेब द्वारा इस मंदिर को तोड़ने की कोशिश विफल रही थी।
इस मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना कार्यात्मक मंदिर माना जाता है, क्योंकि यहां बिना रुके सारे अनुष्ठान पूरे होते हैं।
वैसे तो पूरे वर्ष मां मुंडेश्वरी की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन शारदीय व वासंतिक नवरात्र में मां मुंडेश्वरी की पूजा विधिवत तरीके से की जाती है। नौ दिन कलश स्थापना कर पूरे अनुष्ठान के साथ पूजा होती है। इस दौरान अष्टमी की रात में निशा पूजा का प्रावधान है जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है।

मंदिर का इतिहास..................

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अनुसार, यह मंदिर 108 ई. में बनाया गया था और 1915 के बाद से एक संरक्षित स्मारक है। मुंड़ेश्वरी मंदिर नागर शैली वास्तुकला में बने मंदिरों का सबसे पुराना प्रतिरुप है। रामनवमी और शिवरात्रि का त्योहार मुंड़ेश्वरी मंदिर के विशेष आकर्षण हैं।
कहते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूरों को मंदिर तोडऩे के काम में भी लगाया गया। लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़ कर भाग गये। भग्न मूर्तियां इस घटना का प्रमाण देती हैं। तब से इस मंदिर की चर्चा होने लगी। यह देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में गिना जाता है।

रक्तविहीन बलि है मंदिर की विशेषता...........

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है रक्त विहीन बलि। मनोकामना पूर्ण होने के बाद कोई श्रद्धालु चढ़ावे में खस्सी (बकरा) चढ़ाता है। पुजारी द्वारा बकरे को मां मुंडेश्वरी के चरण में रखा जाता है। मां के चरण में अक्षत (चावल) का स्पर्श करा पुजारी उस अक्षत को बकरे पर फेंकता है। अक्षत फेंकते ही बकरा अचेतावस्था में मां के चरण में गिर जाता है।
कहते हैं कि कुछ क्षण के बाद पुन: पुजारी द्वारा अक्षत को मां के चरण से स्पर्श करा बकरे पर फेंका जाता है और अक्षत फेंकते ही तुरंत बकरा अपनी मूल अवस्था में आ जाता है। इसरक्त विहीन बलि को देख कर उपस्थित श्रद्धालु सिर्फ मां का जयकारा ही लगाते हैं
👉🗣️ ऐसे पहुंचें मंदिर.............

यह मंदिर रेलमार्ग से गया और आरा दोनों ओर से जुड़ा है। जिले में स्थित भभुआ रोड स्टेशन से उतर कर सड़क मार्ग से लगभग 30 किमी दूर स्थित भगवानपुर प्रखंड है। भगवानपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग व सीढ़ी मार्ग दोनों की सुविधा है। इसके अलावा यहां सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।
पटना से बस या किसी वाहन से भभुआ मुख्यालय आने के बाद मुंडेश्वरी मंदिर तक जाने वाले वाहनों की कतार लगी रहती है। नवरात्र के  दिनों में भी लगातार गाड़ियां उपलब्ध रहती हैं।
नवरात्र में मां की पूजा व दर्शन का काफी महत्व है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि कैमूर जिले के ही नहीं अन्य जिलों व प्रांतों के श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं। मां दयालु हैं। अपने भक्तों पर हमेशा कल्याण करती हैं।
भक्तों की मनोकामना पूरा करती हैं मां ( विनोद सिन्हा मैनेजिंग डायरेक्टर ऑफ A. V. BRIGHT LINE PUBLIC SCHOOL AZAD NAGAR BHABUA)।

जनक्रान्ति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा नागेन्द्र कुमार की धार्मिक रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित । 

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