राज्य के 70 हजार प्राथमिक और मध्य विद्यालय में शिक्षा की हालत काफी चिंताजनक स्थिति में ' या फिर ये कहें कि-बिहार में शिक्षा अपनी बदहाली पर आँसू बहाने को है मजबूर

 राज्य के 70 हजार प्राथमिक और मध्य विद्यालय में शिक्षा की हालत काफी चिंताजनक स्थिति में ' या फिर ये कहें कि-बिहार में शिक्षा अपनी बदहाली पर आँसू बहाने को है मजबूर  

            प्राथमिक व मध्य विधालय में शिक्षा बदहाल   

 जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट 

पटना, बिहार ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 10 जनवरी, 2021 ) । बिहार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों-या-शहरी क्षेत्रों के शिक्षा की बात हो-शिक्षा एक कोने में सहमी और सिसकती नजर आ रही है। बताते चलें कि राज्य के 70 हजार प्राथमिक और मध्य विद्यालय में शिक्षा की हालत काफी चिंताजनक स्थिति में है ' या फिर ये कहें कि-बिहार में शिक्षा अपनी बदहाली पर आँसू बहाने को मजबूर है।          
 मालूम है की बिहार राज्य में सुशासन का प्रचार-प्रसार तो खूब किया गया जाता हैं ' पर बिहार की जमीनी हकीकत-ठीक इस प्रचार-प्रसार के विपरीत है। आईए बात की जाएं-सुशासन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू ' प्राथमिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा की बिहार में ' प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की दिशा एवं दशा दोनों ठीक नही है। सबसे बडा सवाल-बिहार सरकार के मंशा पर है ' साल दर साल बर्बाद और समाप्त होते-सरकारी शिक्षा संस्थान और रोज खुलते महंगे-प्राईवेट स्कूलों और कोचिंग संस्थान बडे-बडे उद्योगपतियो-राजनेताओं सहित तमाम संपन्न लोगों द्वारा इसे व्यवसाय को अपनाना ' सबकुछ स्पष्ट करने के लिए काफी है। सरकार का कदम सरकारी शिक्षा को पूर्णतः समाप्त कर-शिक्षा का निजीकरण करना है ' हर स्तर पर  फैली कुव्यवस्था राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बर्बादी को मुकम्मल करने के लिए काफी है। बिहार में सरकारी स्कूलों को बहुत ही प्रायोजित तरीके से निशाना बनाया गया है ' प्राईवेट स्कूलों की समर्थक लाॅबी की तरफ़ से बहुत ही आक्रामक ढंग से इस बात का दुष्प्रचार किया गया है कि-बिहार के सरकारी स्कूलों से बेहतर--निजी स्कूल होते है। बिहार राज्य में शिक्षा का अधिकार कानून आरटीई लागु हुए-12 साल होने को है ' लेकिन आज के वर्तमान में 90 फीसदी से अधिक विद्यालय--शिक्षा अधिकार कानून के मानकों पर-आज भी खडे नही उतरते है। सरकार ने मध्याहन भोजन ' साइकिल राशि ' पोशाक राशि ' छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं  के माध्यम से बच्चों को विद्यालय की ओर खींचने की कोशिश तो-की-लेकिन वह शिक्षा के असल उददेश्य यानि--गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के मामले में पूरी तरह नाकाम रही-इसका बडा कारण ' इस व्यवस्था की रीढ-शिक्षकों की अनदेखी है।प्राथमिक शिक्षा ही किसी व्यक्ति के जीवन की वह नींव होती है ' जिस पर उसके संपूर्ण जीवन का भविष्य तय होता है ' शिक्षा का सबसे प्रमुख कार्य ऐसे मनुष्य का सृजन करना  है ' जो नये कार्य करने में सक्षम हो-न कि-अन्य पीढियों के कामों की आवृति करना। दुःख इस बात  है कि-शिक्षा का अधिकार कानून अधिनियम के बाद भी-हम वही खडे है ' हमारा सपना था-वो कहीं भी रूप लेता नहीं दिख रहा है ' हम वही खडे है-जहाँ से चले थे। अगर कुछ बदला है तो वह केवल समय-और यही समय आज सवाल पूँछ रहा है कि-आखिर शिक्षा की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है..?। कुछ अपवादों को छोड़ दे तो-बिहार के  ज्यादातर प्राथमिक विद्यालयों के बहुत बुरे हालत है ' इन विद्यालयों की मुख्य समस्या विद्यार्थियो के अनुपात में शिक्षकों का-ना-होना है।

अगर शिक्षक है-भी-तो--वे--काबिल नही-शिक्षकों की बात ही छोड़ दीजिए--ज्यादातर विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। क्या बिहार में शिक्षा की बदहाली दूर करने के सरकार कामयाब हो पायेंगे। जय हिंद जय भारत ' जय संविधान उपरोक्त वक्तव्य ' मोहम्मद अकबर अली ' प्रदेश महासचिव-(अल्पसंख्यक) बिहार प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल ने प्रेस को दिया।


जनक्रान्ति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित । 

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