आओ अब लौट चलें प्रकृति की ओर : अजीत सिन्हा

 आओ अब लौट चलें प्रकृति की ओर : अजीत सिन्हा

जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट 

प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक सह प्रवक्ता अजीत सिन्हा

राँची,झारखंड ( जनक्रान्ति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 09 मार्च,2021) । प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक सह प्रवक्ता अजीत सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आत्म निर्भर भारत की मिशन को पूर्ण करने हेतु आह्वान किया कि यदि दुनिया में भारत की डंका को पुनः बजानी है तो भारत के लोगों को प्रकृति की ओर लौटना ही पड़ेगा और जिसके मूल में सनातन ही है क्योंकि जब तक दुनिया में सनातन हावी थी तब तक यह वसुधा सुखमय थी और ज्यों - ज्यों सनातन को कमजोर करने की कोशिश हुई त्यों - त्यों ग्लोबल वार्मिंग, वायु - जल - खाद्य दूषिकरण ने अपनी पैर पसारी और इस तरह से प्रकृति की ताना - बाना बिगड़ती चली गई और इसके प्रमाण यदि किसी को चाहिए तो सनातन की उत्कर्षता की काल पर या इतिहास में जाकर लोग अपनी नजर डालें और इससे उन्हें जवाब स्वतः मिल जाएगी। 


आगे अजीत सिन्हा ने कहा कि चुकी सनातन प्रकृति से जुड़ी हुई धर्म है इसलिये दुनिया के लोगों को इस धर्म की ओर लौट जानी चाहिए या अपने - अपने धर्मों में प्रकृति को शामिल कर उन्हें सुदृढ़ बनाने पर जोर देनी चाहिए।
प्रकृति धर्म को अपनाने हेतु लोग बाहर में काग़ज और प्लास्टिक के कप में चाय या कोई भी पेय पदार्थ पीने से बचें और उसकी जगह मिट्टी के चुक्के, कुल्हड़(मिट्टी के बर्तन) में पीयें एवं प्लास्टिक और थर्मोकोल को पुर्णतः अलविदा कहें। हां बांस से निर्मित काग़ज़ के प्लेट और कप इस्तेमाल की जा सकती है वो भी संतुलित रूप में क्योंकि अत्यधिक बांस की कटाई भी प्रकृति को हानि पहुंचाती है।
विलुप्त हो रही पेड़ों जैसे गुल्लड, पीपल, बड़, नीम इत्यादि के पेड़ों को अधिक से अधिक लगाने पर ध्यान दें जो आपको ऐसी फल देते हैं जिस पर प्राणियों की साँस निर्भर है वैसे तो लोग फलदार वृक्ष तो लगाते ही हैं क्योंकि उससे उन्हें डायरेक्ट धन की लाभ होती है और वनों की कटाई को पुर्णतः विराम लगायें। गौ वंश पालन पर ध्यान देकर उन पर आधारित पुरातन कृषि पद्धति को अपनायें और इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी और लोग दूध, दही, छांछ, घी इत्यादि को अपने खाद्य में शामिल कर अपनी शारीरिक शक्ति को बढ़ा या संतुलित रख सकते हैं। 


मानव ने अपने को प्रगतिशील मानकर प्रकृति को छोड़कर कई ऐसी कृत्रिम चीजों का निर्माण कर लिया है जो उनके लिए सुविधाजनक तो है लेकिन हानिकारक भी। और हानिकारक चीजों की उत्पत्ति को हमलोग प्रगतिशीलता नहीं मान सकते हैं। 
       अंत में अजीत सिन्हा ने कहा कि सनातन धर्म में पेड़ - पौधों की भी पूजा देवी - देव मानकर की जाती है चाहे तुलसी की पेड़ हो या बड़-पीपल की या नीम की क्योंकि प्रकृति ने मानव के जीवन को बचाने के लिए ही प्राकृत चीजों की उत्पत्ति की है न कि पूरी तरह से भोगन के लिए जिससे कि उनकी प्रजाति ही समाप्त हो जाये और मानवीय जीवन पर संकट आ जाये। इसलिये मेरी समझ से अब लोगों को प्रकृति की ओर लौट कर उसके संरक्षण और संवर्धन हेतु प्रयासित रहना होगा और इसके लिए उन्हें प्रकृति की ओर लौटना ही श्रेयस्कर होगा। 

जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा समस्तीपुर कार्यालय से प्रकाशित व प्रसारित ।

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