*"हिंदू साम्राज्य दिवस"* पर *"शिवाजी महाराज की राज्य और पर्यावरण संरक्षण व्यवस्था"* पर ऑनलाइन व्याख्यान​ किया गया आयोजित

 *"हिंदू साम्राज्य दिवस"* पर *"शिवाजी महाराज की राज्य और पर्यावरण संरक्षण व्यवस्था"* पर ऑनलाइन व्याख्यान​ किया गया आयोजित

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट 

      भारतीय प्रज्ञान परिषद द्वारा विडियों कॉन्फ्रेंसिंग किया गया आयोजित 

मेरठ,उत्तरप्रदेश ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 24 जुन,2021 ) ।

हिंदू साम्राज्य दिवस पर भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ प्रांत और नोएडा इकाई द्वारा अलग-अलग संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन भारतीय प्रज्ञान परिषद के जिला मीडिया प्रबंधन डॉ अमित अवस्थी और धन्यवाद ज्ञापन डॉ दिनेश शर्मा ने किया। कार्यक्रम क्षेत्र संयोजक माननीय भगवती प्रसाद राघव जी के सानिध्य में संपन्न हुआ! कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रांत शोध संयोजक डॉ शीला टावरीजी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जिला प्रचारक श्रीविशालजी, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा रहे। नोएडा इकाई द्वारा कार्यक्रम गूगल मीट एप पर संपन्न हुआ। मेरठ प्रांत फेसबुक कार्यक्रम प्रबंधन प्रांत संयोजक इंजी. अवनीश त्यागी द्वारा रहा। मेरठ प्रांत कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर बीरपाल सिंह की उपस्थिति द्वारा हुई!

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता के रूप में डॉ शीला टावरीजी रही जिन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालते हुए महाराजा छत्रपति शिवाजी के बारे में बताया ।उन्होंने महाराज शिवाजी के जीवन से संबंधित विभिन्न घटनाओं को श्रोताओ के सामने रखा जिससे सभी प्रबुद्ध चिंतको एवम श्रोताओ को बहुत ही प्रेरणा  मिली । आपने बताया कि जब अफजल खान छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने के लिए उनके यहां आना चाहता था तो किस प्रकार से शिवाजी महाराज ने अफजल खान के मंसूबों पर पानी फेर दिया था ,अफजल खान बहुत ही ज्यादा  कपटी और धोखेबाज  बादशाह था वह चाहता था कि मैं छत्रपति शिवाजी को सन्धि के बहाने उसके यहां जाकर धोखे से मौत के घाट उतार दूंगा इसीलिए उसने शिवाजी के यहां जाने की योजना बनायी।  वह छत्रपति शिवाजी महाराज से डेढ़ गुना लंबा और 4 गुना वजनदार था उसे इस बात का अभिमान था कि वह शिवाजी को अपनी मुट्ठी में बोचकर मार डालेगा परंतु उस मूर्ख को छत्रपति शिवाजी की सूझबूझ और बुद्धिमत्ता का ज्ञान नहीं था। जब उसके आग्रह पर छत्रपति शिवाजी ने उस का प्रस्ताव स्वीकार किया और उसे अपने यहां मिलने के लिए बुलाया तब   शिवाजी महाराज जानते थे कि यवनो को वैभवशाली महल और शान शौकत अधिक प्रिय हैं इसीलिए उन्होंने उसके लिए बहुत ही सुंदर और मनोरम स्थान पर मिलने का प्रस्ताव भेजा उधर अफजल खान भी अपनी पूरी तैयारी के साथ था उसने लगभग 32000 यवनों को अपने साथ सेना के रूप में रखा हुआ था वह चाहता था कि मौका पड़ने पर वह शिवाजी और उसके साम्राज्य को खत्म कर देगा। परन्तु इधर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को भी पर्दो के पीछे छुपा कर रखा रखा था उनकी दूरदृष्टि यह कहती थी की अफजल खान जैसा  बेईमान प्यार मोहब्बत का नाटक करके धोखा जरूर देगा इसीलिए शिवाजी ने अपने यहां का पूरा पुख्ता प्रबंध किया हुआ था।

छत्रपति का विचार था की यदि अफजल खान सच में ही संधि करना चाहता है तो ठीक बात है उसको जाने देंगे परन्तु यदि उसने जरा सी भी होशियारी दिखायी तो उसे अच्छा जवाब दिया जाएगा। शिवाजी के सभी सैनिक पूरी तरह से तैयार थे । शिवाजी ने सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अपनी पगड़ी के  नीचे एक लोहे का कवच पहना हुआ था और अपना धातु का अंगवस्त्र पहन कर उसके ऊपर कपड़े धारण किए थे और उंगली में अंगूठी के रूप में जहर लगे हुए औजार पहने हुए थे ।इस तरह की दूरदर्शिता छत्रपति शिवाजी  में विद्यमान थी । जब अफजल खान शिवाजी के दरबार में आया तो शिवाजी लगभग ढाई घंटे तक उसके सामने नहीं आए अफजल खान को लग रहा था की शिवाजी  उससे भयभीत है जिसके कारण वह सामने नहीं आ रहा है परन्तु शिवाजी की आंतरिक भावों उसे कहां मालूम थे शिवाजी ढाई घंटे बाद धीरे-धीरे पैर रखता हुआ अफजल खान के सामने आया ।अफजल खान शिवाजी को देखकर बोला ,"आओ शिवा आओ ,  मेरे गले लग जाओ"  जब शिवाजी उसके  करीब आया तो अफजल खान ने शिवाजी पर चाकू से वार करते हुए उसे मारने का प्रयास किया परंतु शरीर में दुबला पतला होने के बावजूद भी शिवाजी ने अपने साहस और चतुराई से वह खंजर अफजल खान के सीने में ही घोप दिया और  सैनिकों को आदेश दे दिया कि आक्रमण कर दे । उन 7000 सैनिकों ने 32000 यवनो को मौत के घाट उतार दिया । इस प्रकार के चातुर्य और ज्ञान के साथ छत्रपति शिवाजी ने अफजल खान जैसे हैं विशालकाय दानव पर विजय प्राप्त की ।
इसी के साथ साथ डॉ शीला टावरीजी ने एक ग्वालन के किस्से पर भी प्रकाश डाला जिसमें उस ग्वालिन के चातुर्य का परिचय मिलता है उसके बारे में बताते हुए कहा कि  वह महिला बड़ी निडर और साहसी थी उसने लगभग समुद्र तल से 4400 फीट ऊंची गढ़ से भागकर अपनी और अपने बच्चे की सुरक्षा किस प्रकार से की है यह विचारणीय और प्रशंसनीय है उसने उस ऊंचाई से आने वाली  कंदरा  मैं से रास्ता खोज कर नीचे आने का प्रयास किया और वह पूर्णता सफल भी हुई जब नीचे उसे छत्रपति शिवाजी मिले तो उन्होंने उसकी भूरी भूरी प्रशंसा की और उस स्थान का नाम हिरकणी  बुर्ज रखा आज तक बहुत ही प्रसिद्ध है, हिरकनी उस  ग्वालिन का ही नाम था। यदि हम शिवाजी के राज्य प्रबंधन का जिक्र करे तो वह भी विशिष्ट है क्योंकि छत्रपति शिवाजी ही ऐसे राजा हुए हैं जिन्होंने अष्टप्रधान मंत्री मंडल की स्थापना की थी राज अभिषेक के बाद  उन्होंने आठमंत्रियों में विभाग वितरित कर दिए थे । उनमें से प्रत्येक मंत्री अपने स्थान की खबरें सीधे राजा तक पहुंचाते थे फिर शिवाजी इस पर संज्ञान लेते थे । छत्रपति शिवाजी का मानना था कि किसी देश या राज्य में एक ही भाषा का प्रयोग प्रशासन कार्यो में होना चाहिए प्रशासनिक कार्य एक ही भाषा में हो तो जनता को दुविधा नही होती यदि किसी राज्य में विभिन्न प्रकार की भाषाएं प्रयोग की जाएंगी तो वहां की जनता को भाषाओं को समझने में बड़ी दिक्कत होगी उन्हें यह भी मालूम  नहीं होगा कि उनके साथ क्या हो रहा है इसीलिए उन्होंने राज्य भाषा कोष की स्थापना की जो कि बहुत ही प्रशंसनीय है। 
डॉ०शीला टावरीजी ने ऐसा बताते हुए कहा कि जब औरंगजेब राजा था शिवाजी ने  औरंगजेब को कहा था कि," क्या मुग़ल साम्राज्य इतना दरिद्र और गरीब हो गया है जो उसने जनता पर जजिया कर लगा डाला"  ऐसे निडर महान शासक शिवाजी थे ।  जब यह सब हो रहा था उस समय आपने स्वराज्य की स्थापना की जिसके चलते आपने राज्य में कृषि की तरफ विशेष ध्यान दिया । यदि कृषि कार्यों में लोग लिप्त रहेंगे और फसलें होंगी तभी राज्य से भुखमरी और अकाल को खत्म किया जा सकता है एक पोषित राज्य की स्थापना की जा सकती है ऐसी कहावत है कि ,"भूखे पेट ना होय भजन गोपाला " सिद्ध होती है यदि किसी राज्य में भुखमरी होगी वहां की जनता कुपोषित हो जाएगी बीमारियों से पीड़ित होकर सभी लोग मर जाएंगे राज्य में ऐसा नहीं होना चाहिए इसीलिए शिवाजी ने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने कृषि के लिए जल की व्यवस्था करने का पूरा प्रयास किया जिसमे वे सफल भी हुए,  वर्षा के जल को रोककर बांध बनाए गए  तालाब खुदाई की गई जिससे कृषि के लिए  पानी और पेयजल की व्यवस्था की गई । पुणे में आज भी पार्वती नाम की पहाड़ी के पास एक बांध है ,एक बांध  कोंडवा स्थान पर बना हुआ है जो शिवाजी के ही समय के है। शिवाजी को कृषि का ज्ञान इतना अधिक था कि  जिसकी कोई सानी नही हो सकती। शिवाजी हमेशा फसल चक्र को अपनाने के लिए जोर देते थे जिससे फसलों को नुकसान देने वाले कीड़े मकोड़े नष्ट हो जाये और दूसरी फसलों के साथ नुकशान न  पहुंचाए।विभिन्न  प्रकार की फसलों की उपज पैदा हो । यदि राज्य में अकाल भुखमरी ,बाढ़ ,अनावृष्टि जैसी आपदाय भी आ जाती थी तो वहां की जनता को  धन ना देकर उनको कृषि यंत्र दिए जाते थे जिनमें हल और बैल की जोड़ी प्रमुखता से दी जाती थी । छत्रपति शिवाजी को अपने राज्य के लोगों के साथ हल चलाते हुए भी दिखाया गया है जिससे यह पूर्णतया स्पष्ट होता है कि छत्रपति शिवाजी कृषि के प्रति आस्थावान थे कृषि और धरती मां को राज्य लक्ष्मी कहते थे।  कृषि के पश्चात उन्होंने पेड़ों पर विशेष ध्यान दिया क्योंकि पेड़ वातावरण के लिए अति आवश्यक होते हैं जिससे पर्यावरण भी शुद्ध रहता है और इनसे नाव बनाने में भी बहुत ही लाभ मिलता है शिवाजी आम और कटहल जैसे फलदार वृक्षों को काटने से सदैव मना करते थे और जो फलदार वृक्ष सुख जाते थे केवल उनकी ही  कटाई की जाती थी उनका मानना था कि पेड़ों में  भी जीव होता है जिससे उन्हें कटने पर दुख होता था। छत्रपति शिवाजी को वेदों का भी ज्ञान था इनकी बातों से ऐसा प्रतीत होता था उन्होंने वेद अच्छे से पढ़ रखे हो । छत्रपति शिवाजी नौसेना के जनक भी कहे जाते हैं उन्होंने ही सर्वप्रथम नौसेना की स्थापना की। वह धार्मिक जरूरत है परंतु अंधविश्वासी नहीं थे उन्होंने सदैव अंधविश्वास का खंडन किया है प्राचीन काल में कहावत है कि कभी समुद्र को लांघना नहीं चाहिए परंतु आपने अपनी नौसेना को समुद्र के पार भेजा था । उन्होंने आम और सागौन जैसी लकड़ी को काटने से मना किया उनसे अच्छी नाव का निर्माण किया जा सकता है जो नौसेना के लिए अति आवश्यक है इसके साथ-साथ अपने राज्य के पर्यावरण को बचाने में भरसक प्रयास करते थे । शिवाजी कहते थे कि दूसरे राज्य से कीमती लकडी खरीदो परन्तु अपने राज्य से लकड़ी ना काटो यदि कहीं से कोई एक लकड़ी काटनी होती तो उसके माली से आज्ञा मांगनी होती थी। इसके पश्चात  डॉ शीला टावरीजी बताती है कि उस समय हिंदुओं की बहू बेटियों को मुगल उठाकर ले जाते थे उनके साथ अनाचार किया जाता था परंतु शिवाजी ने इस तरह के कार्य पर रोक लगाने का पूरा पूरा प्रयास किया मुगलों के साथ युद्ध भी किए। शिवाजी महिलाओं की पूरी पूरी इज्जत करते थे प्रत्येक महिला को अपनी माता समान मानते थे इसका प्रमाण हमे इस किस्से में मिल जाता है एक बार की बात है जब शिवाजी का सेनापति कल्याण राज्य को जीतकर महाराज के पास आया और खुश होकर खबर सुनायी की आज हमने कल्याण राज्य जीत लिया है और मैं वहां से आपके लिए एक बेशकीमती तोहफा लेकर आया हूं आशा करता हूं कि वह आपको पसंद आएगा। शिवाजी ने आश्चर्य से देखा और कहा कि बताओ क्या तोहफा हमारे लिए लेकर आए हो तभी सेनापति ने पास में रखी हुई एक पालकी की ओर इशारा किया और जो पालकी के पर्दे उठाए गए तो उसमें एक अद्वितीय सुंदरी बैठी हुई थी जिसको देखकर शिवाजी ने उत्तर दिया ,"वाह यदि हमारी माता इतनी सुंदर होती तो हम भी इतने ही सुंदर होते" यह बात प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है उन्होंने उस महिला को अपनी माता समान समझा और उनको कहा कि माता प्रणाम!  इसके पश्चात शिवाजी ने आदेश दिया की इस महिला को उसके राज्यों में छोड़ दिया जाए।  जब वह महिला उसके घर पहुंचा दी गई तो शिवाजी ने अपने सैनिकों को डांट फटकार लगाई और कहा कि तुमने आज मेरे राज्य और मेरे सेनादल की गरिमा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया मुझे बहुत ही कष्ट हो रहा है इस तरह के थे हमारे महाराज शिवाजी।  हमें छत्रपति शिवाजी से सीख लेनी चाहिए इतना बड़ा राजा होने के बाद भी वह प्रत्येक स्त्री का सम्मान करता था जनता का सम्मान करता था उन सभी को अपना संरक्षण प्रदान करता था।

कार्यक्रम में प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर बीरपाल सिंह, प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी, गौतम बुद्ध जिला संयोजक डॉ भूपेंद्र सिंह, गाजियाबाद जिला संयोजक योगेश शर्मा, गाजियाबाद महानगर संयोजक डॉ पूनम शर्मा, श्रीकांत कुमार, हस्तिनापुर संदेश पत्रिका के संपादक डॉ सूर्य प्रकाश अग्रवाल, कार्यकारी संपादन डॉ वंदना वर्मा, डॉ चित्रा, डॉ जी.आर. गुप्ता, डॉ नितिन कुमार सिंह, डॉ बिंदु शर्मा, डॉ पृथ्वी काला देवभूमि विचार मंच, डॉ विवेक मिश्रा, डॉ मनीषा अग्रवाल, डॉ मोहित त्यागी, डॉ राज आर्यन, डॉ शुभ्रा चतुर्वेदी, सुमन शुक्ला, डॉ श्यामलेंद्रु, डॉ नीरज मौर्य,  डॉ निशा अग्रवाल, भास्कर द्विवेदी, डॉ वेगराज, डॉ संजीव पंवार, डॉ श्वेता बंसल, ललित शर्मा, डॉ शैलेंद्र, आरती मलिक, सुभाष भारद्वाज, डॉ सुशील राजपूत, डॉ ओमवीर, प्रकाश चंद, डॉ आरती मलिक, डॉ शैलेंद्र, डॉ सुधीर यादव, डॉ मनीषा, मयंक पांडेय, डॉ नीलम गुप्ता, मनीष, डॉ ओवी सिंह, डॉ अनुराधा मिश्रा, डॉ अभिषेक, अनुज, विमलेश, मानवी शर्मा, मनमोहन सिंह, सत्यम मिश्रा, महेंद्र परमार, डॉ विवेक शुक्ल, डॉ सुदेश शुक्ला, विकास गर्ग, सुशील कुमार, सुशांत शर्मा, रमेश चंद्र, डॉ अक्षय, डॉ सतीश, देवीसिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अभिषेक आदि अनेक शिक्षाविद, प्रबुद्ध जन सहभागी रहे। 
उपरोक्त जानकारी अवनीश त्यागी प्रांत संयोजक भारतीय प्रज्ञान परिषद प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत के द्वारा वाट्सएप माध्यम से प्रेस कार्यालय को दिया गया।

जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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