"स्वाधीनता के 75 वर्ष एवं राष्ट्र​ निर्माण में कलाकारों की भूमिका" विषयक पर नौ द्विवसीय कला उत्सव किया गया आयोजित

 "स्वाधीनता के 75 वर्ष एवं राष्ट्र​ निर्माण में कलाकारों की भूमिका" विषयक पर नौ द्विवसीय कला उत्सव किया गया आयोजित


जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


नौ द्विवसीय कला उत्सव में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमारजी द्वारा स्वाधीनता आंदोलन और कलाकारों पर सारगर्भित उद्बोधन । 

लखनऊ, उत्तरप्रदेश ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 06 जुलाई,2021)। भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह, सहयोगी संस्थाओं के द्वारा आयोजित "स्वाधीनता के 75 वर्ष एवं राष्ट्र​ निर्माण में कलाकारों की भूमिका" विषयक नौ द्विवसीय कला उत्सव में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमारजी द्वारा स्वाधीनता आंदोलन और कलाकारों पर सारगर्भित उद्बोधन ।
भारतीय प्रज्ञान परिषद प्रज्ञा प्रवाह एवं सहयोगी संस्थाओं द्वारा नौ द्विवसीय कला उत्सव आयोजित किया गया। जिसमें देश भर के अनेक कलाकारों ने प्रतिभाग किया। प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी द्वारा राष्ट्र निर्माण में कलाकारों की भूमिका पर चिंतनशील​ मनन करने उपयोगी सारगर्भित प्रेरणादायक विचार रखे गये। कला उत्सव में प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक माननीय भगवती प्रसाद राघवजी​ के सानिध्य में सम्पन्न हुआ।


नौ द्विवसीय कला उत्सव के उद्धघाटन में मुख्य वक्ता प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी ने स्वाधीनता के 75 वर्ष और कलाकारों के राष्ट्र निर्माण में भूमिका पर चिंतन करते हुए कहा, कि मुझे यह जानकर अति हर्ष हुआ है, कि आज स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूरे होने में कलाकारों की जो भूमिका रही है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। स्वाधीनता आंदोलन में कलाकारों की जो भूमिका रही है, इस विषय को लेकर आज ये कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके लिए आप सभी विद्वितजन बधाई के पात्र हैं। आप सभी शिक्षाविद, प्रबुद्ध जन, कलाकार और विधार्थी प्रशंसा के पात्र भी हैं। उन्होंने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा, कि आज इस कला उत्सव कार्यशाला में व्याख्यान एवं डेमोस्ट्रेशन श्रृंखला  में मुझे आने का जो अवसर प्रदान किया गया है, उसके लिए मैं आप सभी शिक्षक एवं प्रबुद्ध जनों का आभारी हूं, और आपका धन्यवाद करता हूं।


प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी ने कलाकारों के स्वाधीनता प्राप्ति में योगदान की ओर इशारा करते हुए कहा, कि यहां​ स्वाधीनता प्राप्ति के लिए देश के अनेक कलाकारो ने अपना संपूर्ण सहयोग दिया और अपने-अपने कार्य के द्वारा ही स्वाधीनता प्राप्त करने में सफलता मिली थी। इसमें कला के प्रत्येक क्षेत्र के कलाकारो ने अपना भरपूर सहयोग दिया था। उसमें भले ही वह कोई चित्रकार रहा हो, मूर्तिकार रहा हो, कवि हो, नाटककार हो, अथवा अभिनेता भी रहे हो, इसमें कोई भी रहा हो, सभी ने स्वाधीनता संग्राम में अपना-अपना सहयोग स्वेच्छा से दिया था। भारतीय इतिहास की गलत व्याख्या करने पर माननीय जे. नंदकुमार जी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा,कि जब हमारे देश में ब्रिटिश शासन था, तब हमारे देश का जो इतिहास रहा था, उसको तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया था। उसे कुछ भ्रामक तरीके से तैयार करके  हम सभी के सामने प्रस्तुत किया गया। जिससे हमारे देश की जनता को हमारे देश के इतिहास के विषय में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त ही नहीं हो सकी थी। मुझे प्रसन्नता है,कि गलत इतिहास से भिन्न होकर आज राष्ट्र केंद्रित व्याख्यान और डेमोस्ट्रेशन प्रोग्राम में आने का अवसर प्राप्त हुआ है। मुझे ऐसा लग रहा है, कि अब हमारे देश का जो इतिहास है वह पूर्ण रुप से सभी जनों तक धीरे-धीरे पहुंच जाएगा। क्योंकि इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन दूर-दूर से जुड़े हुए हैं, साथ ही छात्र-छात्राएं भी जुड़ी हुई है।
उन्होंने सन् अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के विषय में प्रकाश डालते हुए बताया, कि भारत में स्वाधीनता संग्राम की क्रांति मेरठ से ही प्रारंभ हुई थी। इसके पश्चात यह पूरे देश में फैल गई थी। विचार योग्य विषय है, कि  स्वाधीनता आंदोलन कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं था। यह तो एक विचारधारा थी। एक भाव था, राष्ट्र के प्रति! किंतु कुछ लोगों को, यह एक राजनैतिक और केवल राजनीतिक मुद्दे के रूप में दिखाई देता है। जैसे वह एक राजनीतिक आंदोलन रहा हो। उस समय गरम दल और नरम दल नाम के दो दल होते थे। जबकि स्वाधीनता आंदोलन राष्ट्र हित की एक वैचारिक धारा थी, जो देश प्रेमियों ने अपने देश की स्वाधीनता के लिए एक मुहिम शुरू की थी। परंतु हमारे लिए दुर्भाग्य की बात यह है, कि हमारे देश के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर सभी के सम्मुख प्रस्तुत किया गया था।
अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार जी देश के महान क्रांतिकारियों पर चिंतन करते हुए बताते हैं,कि उस समय राष्ट्र भक्त रविंद्र नाथ टैगोर जैसे कलाकार स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। क्या उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान नहीं किया? बिल्कुल किया। स्वाधीनता सेनानी रविंद्र नाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार विजेता और एक महान व्यक्ति थे। उन्होंने बहुत सारी कविताएं, चित्रकारी, अभिनय, नाटक आदि राष्ट्र को समर्पित किए थे। वे सभी प्रकार की कलाओं में पारंगत थे। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में अपना पूरा-पूरा महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई सारे लेख लिखे थे, अनेक कविताएं भी लिखी थी।
उन्होंने राष्ट्र की दुर्दशा करने वाले कारकों​ पर चिंतन किया, कि यदि किसी देश के इतिहास और संस्कृति को खत्म करना हो, तो उसके तथ्यों को नष्ट कर देना चाहिए। जिससे वह देश ही खत्म हो जायेगा। यही रणनीति अंग्रेज ब्रिटिश सरकार ने भी अपनाई थी! इस बात पर ध्यान हमारे महापुरुष का भी गया था, और उन बुद्धिजीवियों ने इस मुहिम में अपना एक कदम आगे बढ़ाया और भारत मां की लाज बचाने के लिए स्वाधीनता प्राप्ति की ओर चल पड़े। उन कलाकारों उन प्रबुद्ध जनों को मेरा कोटि-कोटि सादर नमन है।
माननीय जे. नंदकुमार जी स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए कहते हैं, कि स्वामी विवेकानंद किस प्रकार से अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धावान थे। जब शिकागो में उनका भाषण हुआ था। तब उन्होंने अपनी मातृभाषा हिंदी को ही चुना था। जबकि वह कई भाषाओं के विद्वान रहे थे। आपने भारत देश के गौरवशाली इतिहास की ओर ध्यान देते हुए बताया, कि जहां पर गीता, पुराण, वेद शास्त्रो की रचना हुई है। उन्होंने बताया, कि यदि जनता को कुछ बताना हो, तो उसका केवल और केवल एक ही माध्यम हो सकता है और वह है कला। कला से लोग जल्दी प्रभावित होते हैं और उसका प्रभाव भी जल्दी ही पड़ता है। क्योंकि प्राचीन काल से ही मानव संप्रेषण का सबसे बढ़िया साधन कला ही रही है। जिससे कि यहां के प्रबुद्ध जनों को और छात्र छात्राओं को अपने भारत के गौरवमय इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त हो। आपने कला के साथ-साथ में नाटकों का कला के रूप में भी व्याख्यान किया है। उन्होंने बताया, कि उस समय के नाटकों का बहुत ही महत्व रहता था, और नाटकों के द्वारा ही विभिन्न कहानियों को दर्शाया जाता था। जिससे समाज को एक चेतना एक अनुशासन और एक प्रेरणा मिलती रही थी। उन्होंने टोली माधवराव पेशवा के ऊपर बनाए गए नाटक गिरीश चंद्र घोष के नाटक बाय नारायण जैसे नील दर्पण आदि नाटकों का जिक्र किया।  उन्होंने बताया, कि किस प्रकार से नाटक कला मतलब अभिनय कला से लोगों को प्रभावित किया जाता था, और किस प्रकार से देश के जनता को प्रभावित किया जा सकता है। किस प्रकार से सिखाया जा सकता है। हमें अपने देश के गौरव में इतिहास को जानना होगा। उसको पहचानना होगा और अपने देश की संस्कृति को भी।  इसी के साथ उन्होंने  सबको धन्यवाद और शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम के सिंगापुर के अंतरराष्ट्रीय कलाकार डॉ पी. गनाना ने कला के विभिन्न रूपों में डैमोंस्ट्रेशन दिखाया। उन्होंने कहा,कि मुझे यह जानकर अति  हर्ष हुआ है कि भारत में आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नौ दिवसीय कला कार्यशाला , व्याख्यान एवं डेमोंसट्रेशन श्रृंखला  का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में कलाकारों महत्वपूर्ण योगदान विषय पर विस्तृत रूप में चर्चा की। उन्होंने भारतीय चिंतन को सही बताते हुए कहा, कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अनेक कलाकारों ने अपनी कविताओं अपने चित्रों और अपने लेखों के द्वारा इस स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय सहयोग किया था। जैसा, कि रविंद्र नाथ का जिक्र आता है, तब रविंद्र नाथ टैगोर बहुत ही अच्छे कवि, विशेषज्ञ ,चित्रकार, अभिनेता तथा कई बहुमुखी प्रतिभा लिए हुए थे। उन्होंने इनके साथ साथ नंदलाल बोस, रामकिंकर बेज, अमृता शेरगिल, राजा रवि वर्मा, सतीश गुजराल, रविंद्र रेड्डी और बंगाल शैली के अन्य कलाकारों का जिक्र करते हुए बताया, कि भारतीय कला सिंगापुर मलेशिया इंडोनेशिया एवं अन्य देशों में किस प्रकार से फल-फूल रही है, किस प्रकार से बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है। उन्होंने आगे बताया, कि सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया में भारतीय चित्रों  के स्थानों पर संग्रहकर्ता है। जिन्होंने आज भी अपने संग्रह में भारतीय चित्रकारों के चित्रों को संजोकर रखा हुआ है और आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय चित्रो की मांग बढ़ रही है। भारतीय चित्रों ने आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेजोड़ धाक जमा रखी हुई है। जिनकी खरीदारी​ भी दिनों​ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ-साथ​ ही उन्होंने बंगाल की कला के बारे में बताया, बंगाल कला का जो रेखाचित्र था। वह पूर्ण रूप से भारतीय ही है। संपूर्ण भारतीयता का लुक उसमे दिखाई भी देता है। कई स्थानों पर भी बंगाल शैली के चित्रों का संग्रह प्राप्त होता है। जो बहुत ही सुंदर है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री के विषय में भी बताते हुए उन्होंने कहा, कि प्रतिवर्ष वह लोग भारतीय चित्रों के मेले और प्रदर्शनियो का आयोजन करते रहते हैं। जिनमें भारतीय कला को प्रोत्साहन दिया जाता है। आपने बताया, कि कलाकारों को अपनी कला को विकसित करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए। किन  सिद्धांतों को अपनी कला में उतारना चाहिए। इसके विषय में विस्तृत व्याख्या भी दी।
डॉ० विशाल भटनागर ने कहा, कि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है, कि भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह कला कार्यशाला, व्याख्यान और डेमोंसट्रेशन का आयोजन कर रही हैं, और इनमें भारत की विभिन्न कला संस्थाओं का भी योगदान मिल रहा है उन्होंने सभी को साधुवाद किया, उन्होंने कहा, कि यह नौ दिवसीय कला कार्यशाला उन सभी लोगों के लिए बहुत ही लाभप्रद होगी जो कला के क्षेत्र में कुछ ना कुछ कार्य कर रहे हैं, और निरंतर उसमें अपने प्रयोग भी कर रहे हैं उनमें चाहे कोई शिक्षक हो या कोई छात्र हो। स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने के बाद कलाकारों की भूमिका पर चिंतन करते हुए बताया,कि आजकल हमारा बालक वर्ग या कलाकार किस दिशा में जा रहा है। आज की कला किस दिशा में जा रही है, इस विषय पर हमें चिंतन और मनन करना आवश्यक ही होगा। इसके लिए ऐसी कला कार्यशालाओं​ का आयोजन होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। जिसमें कला के माध्यम द्वारा सभी तथ्यों का विचार मंथन किया जा सकता है!
उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में कला की प्रासंगिकता पर कहा, कि स्वाधीनता की प्राप्ति में कलाकारों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है, कला के रूप में रविंद्र नाथ टैगोर जैसे अनेक महान कलाकार आते हैं, जिन्होंने शांति निकेतन जैसे संस्थानों की स्थापना की थी। जिसमें रामकिंकर वेज, देवी प्रसाद राय, चौधरी नंदलाल बोस और अन्य अन्य कई  प्रसिद्ध आर्टिस्ट वहीं से होकर संपूर्ण देश में अपनी कला को फैलाया और समाज को शिक्षा भी दी है। कला समाज को शिक्षा देने वाली होती है, क्योंकि कला से सभी को प्रेरणा प्राप्त होती है। यदि कला गलत संदेश देती है तो उसका समाज पर गलत प्रभाव जाता है, और यदि वह कला अर्थ पूर्ण है, सही है, तब उसका समाज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारे कॉलेज और स्कूलों और हमारे जो विषय है इनमें हमारे देश की कला और संस्कृति को ही पढ़ाया जाना चाहिए ना कि अन्य देशों के जैसा। पाश्चात्य सभ्यता का जो पाठ्य क्रम है वह हमारे देश मे पढ़ाया जाता रहा है। वह भी हमारे देश के पाठ्यक्रम के साथ मिलाकर सीखाया भी जा रहा है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। यदि किसी देश की संस्कृति और कला को दबाना है, तब सही इतिहास संस्कृति को वहां की जनता के समक्ष ना लाया जाए। उसे वहां की संस्कृति और सभ्यता स्वयं ही नष्ट हो जाएगी। इस प्रकार की रणनीति पहले से ही भारतीय समाज में खेली जा चुकी है।
कला उत्सव कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर वीरपाल सिंह द्वारा की गई।कार्यक्रम की योजना और संपर्क कार्यक्रम संयोजक एवं प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय और मंच का संचालन डॉ रजनीश गौतम, प्रस्तावना डॉ वन्दना वर्मा, कार्यक्रम सह संयोजक डॉ नीतू वशिष्ट के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती वंदना के साथ प्रारंभ होकर वंदे मातरम् और कल्याण मंत्र के साथ समापन हुआ।
कला महोत्सव में देशभर के अंतराष्ट्रीय सुविख्यात कलाकार मौजूद रहे। उपरोक्त जानकारी अवनीश त्यागी, कार्यक्रम संयोजक कला उत्सव एवं प्रांत संयोजक भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत द्वारा प्रेस कार्यालय को दिया गया ।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित । 

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