अध्यात्म को पूरी दुनिया से परिचय कराने वाले एवं आत्मिक ज्ञान की लौ जलाने वाले स्वामी विवेकानंद प्रलय काल तक लोगों की स्मृतियों में बने रहेंगे : अजीत सिन्हा
अध्यात्म को पूरी दुनिया से परिचय कराने वाले एवं आत्मिक ज्ञान की लौ जलाने वाले स्वामी विवेकानंद प्रलय काल तक लोगों की स्मृतियों में बने रहेंगे : अजीत सिन्हा
जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट
कायस्थ चेतना अजीत सिन्हा
राँची,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 05 जुलाई 2021)। जिसने अमरत्व को प्राप्त कर लिया वह किसी परिचय का मोहताज नहीं होता है और उन्हीं विभूतियों में स्वामी विवेकानंद जी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है और जब तक यह पृथ्वी है और इस पर मानवीय जीवन है तब तक वे सभी के स्मृतियों में बने रहेंगे और ऐसे लोग लोग अपनी बिखेरी गई विचारधारा की बदौलत कभी भी नहीं मरते हैं हालांकि आज उनकी पुण्य तिथि है और इस तिथि पर उन्हें कोटि - कोटि नमन करते हुये उनके द्वारा दुनिया को दी गई उपलब्धियों एवं ज्ञानवर्धक बाते हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।
विलक्षण प्रतिभा के धनी युग प्रवर्तक कायस्थ कुल गौरव राष्ट्र सहित पूरे विश्व को नई दिशा दिखाने वाले नरेंद्र दत्त उर्फ स्वामी विवेकानंद जी लालन - पालन पिता कोलकाता हाईकोर्ट के नामी वकील विश्वनाथ दत्त एवं गृहणी माता भुवनेश्वरी देवी जी के मातृत्व में हुआ एवं माता इन्हें प्यार से वीरेश्वर बुलाती थी हालांकि इनका नाम नामकरण संस्कार के अंतर्गत नरेंद्र नाथ दत्त पड़ा।
प्रवेशिका (मैट्रिकुलेशन) की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के पश्चात् उन्होंने स्नातक (कला) की परीक्षा कोलकाता एवं उस समय देश के मशहूर प्रेसिडेंसी कॉलेज से उत्तीर्ण की एवं व्यायाम - कुश्ती से लेकर क्रिकेट जैसे खेल उनके शौकों में शुमार थे। अपने दादा दुर्गा चरण दत्ता जो कि अपने समय में संस्कृत एवं फारसी के प्रकांड विद्वान थे और जिन्होंने अपने घर को त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया था से प्रेरित एवं गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्यत्व में मात्र 24 साल की उम्र में अपने गृह को त्याग कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की यात्रा के दरम्यान भारत के दीनदुखियों की दुर्दशा को अपनी आँखों से देखी एवं द्रवित होकर 1 मई 1897 को समाज व राष्ट्र कल्याण हेतु रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद जी को उनको यह नाम उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के द्वारा प्राप्त हुआ और अपने गुरु के समान ही इन्हें वेदों व उपनिषदों पर अटूट विश्वास था और उनके अनुसार मनुष्य के जीवन का अंतिम उद्देश आत्मानुभूति ही होनी चाहिये और मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म होना चाहिये।
स्वामी जी सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे एवं सत्य को केवल एक मानते थे और उनका मानना था कि मानव विभिन्न दृष्टिकोणों से सत्य को देखते हैं जबकि सत्य एक ही है। अहिंसा को वे श्रेष्ठ मानते थे लेकिन धर्म हिंसा तथैव च में भी विश्वास करते थे। स्वार्थ के सम्पूर्ण अभाव को वे त्याग मानते थे और मानव सेवा को ही ईश्वर सेवा का दर्जा देते थे। वे जाति व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे एवं सामाजिक व्याधि के प्रतिकार के उपाय के अंतर्गत वे कहते हैं कि समाज के दोषों को दूर करने के लिए प्रत्यक्ष से नहीं अपितु शिक्षा दान द्वारा परोक्ष रूप से चेष्टाएं करनी चाहिए।
स्वामी विवेकानंद जी एक प्रखर राष्ट्र भक्त थे और सभी भारतीयों को राष्ट्र भावना से ओत - प्रोत देखना चाहते थे लेकिन अपने मिशन को पूर्ण करने से पहले ही मात्र 39 वर्ष की अवस्था में व्याधियों से ग्रस्त होकर 04 जुलाई 1902 ईस्वी को अपने द्वारा स्थापित पश्चिम बंगाल स्तिथ बेलूर मठ मृत्यु को प्राप्त हुये और आज की तिथि उनकी पुण्य तिथि है और इस अवसर पर प्रत्येक भारत वासी के साथ-साथ दुनिया के सभी फौलोवर की ओर से उन्हें कोटि - कोटि नमन करते हुए अपनी प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी, नेताजी सुभाष सेना, अमन हिंद फौज, राष्ट्रीय अमन महासंघ, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर श्री चित्रगुप्त काॅन्सेनेश, कायस्था फाउंडेशन, कायस्था चेतना, केएमबी न्यूज, निष्पक्ष मीडिया फाउंडेशन इत्यादि की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया गया।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा प्रकाशक/सम्पादक द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।
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