बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आने वाले कायस्थ समाज आज अपनी एकता में अनेकता की वज़ह से सर्व समाज में अपनी पहचान खोता जा रहा है : अजीत सिन्हा

 बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आने वाले कायस्थ समाज आज अपनी एकता में अनेकता की वज़ह से सर्व समाज में अपनी पहचान खोता जा रहा है : अजीत सिन्हा 

          कायस्थ समाज : मंथन एवं दर्शन - अजीत सिन्हा

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट 

समाचार डेस्क, राँची/झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 02 जुलाई,2021) ।  बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आने वाले कायस्थ समाज आज अपनी एकता में अनेकता की वज़ह से सर्व समाज में अपनी पहचान खोता जा रहा है क्योंकि जिस समाज की क्षमताओं पर पूरा सर्व समाज नाज़ करते थे आज वही समाज स्वयं अपने प्रश्नों के घेरों में है और अपने को संगठित होने की बाट जोह रहा है।

विदित हो कि यह समाज अपनी विलक्षण एवं बौध्दिक प्रतिभा की बदौलत साहित्य के क्षेत्र में श्री अरविंदो घोष, फ़िराक़ गोरखपुरी, मुन्शी प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा, भगवती चरण वर्मा, धर्मवीर भारती, हरिवंशराय बच्चन, प्रेमेन्द्र मित्रा, निर्मल वर्मा, विमल मित्रा और बुद्धदेव बोस जैसे साहित्यकार दिये हैं वहीं फिल्म, टेलिविजन एवं संगीत के क्षेत्र में चित्रगुप्त, मन्ना डे, मुकेश चंद्र माथुर, सुचित्रा सेन, मोतीलाल, सलिल चौधरी, असित सेन, उत्पल दत्त, अमिताभ बच्चन, मुनमुन सेन, नितिन मुकेश, सोनाक्षी सिन्हा, पहलाज नेहलानी, गोपाल दास नीरज, आनंद मिलिंद, अंजन श्रीवास्तव, शरद सक्सेना, सोनू निगम, शेखर सुमन, राजू श्रीवास्तव, आदेश श्रीवास्तव, नीतू चन्द्रा जैसे सितारे कला एवं संगीत के क्षेत्र में भी दिये हैं वहीं विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में डॉ सत्येंद्र नाथ बोस, डॉ जगदीश चंद्र बोस, डॉ शांति स्वरूप भटनागर, डॉ प्रभु दयाल भटनागर जैसे वैज्ञानिक एवं नोबल पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से विभूषित प्रो शिशिर कुमार मित्रा और अमर्त्य सेन जैसे दिग्गज भी इस भारत भूमि पर पैदा होकर अपने देश को गौरवान्वित किये हैं।

और यदि महान विभूतियों में इस कायस्थ समाज के विभूतियों को याद की जाये तो श्रीमन्त शंकरदेव, देव चंद्र जी महाराज, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंदो घोष, महर्षि महेश योगी, राय शालिग्राम, परमहंस योगानंद, स्वामी प्रभुपाद, प्रभात रंजन सरकार जैसे संत एवं महर्षि, मनीषियों ने अपनी आध्यात्मिक छटा को पूरे विश्व में बिखेरी है।

       स्वतंत्रता संग्राम में सेनानियों के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, खुदीराम बोस, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, जय प्रकाश नारायण, गणेश शंकर विद्यार्थी, विपिन चंद्र पाल, सिब्बन लाल सक्सेना इत्यादि केवल जाने ही नहीं जाते हैं अपितु सार्वभौमिक रूप से स्वीकार भी किये जाते हैं। 

इस समाज में पुराने राजनीतिज्ञों के रूप में डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, लाल बहादुर शास्त्री, पी. वी. नरसिम्हा राव, जय प्रकाश नारायण, लाल कृष्ण आडवाणी, सुबोध कांत सहाय, रविशंकर प्रसाद, शत्रुघ्न सिन्हा (फिल्म व राजनीति), यशवंत सिन्हा, ज्योति बसु, बीजू पटनायक, शिव चरण माथुर, वर्तमान उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, डॉ संपूर्णानंद, बाला साहेब ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे, नितिन गडकरी इत्यादि जाने जाते हैं। 

हाँलाकि कायस्थ दिग्गजों की समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनके कार्यो द्वारा नामों की फेहरिस्त लंबी है फिर भी मैंने कुछ के नामों का समायोजन किया है जो यह दर्शाती है कि इस समाज के लोगों ने अपनी विलक्षण प्रतिभा के बदौलत अपने देश भारत की सेवा केवल नहीं की है अपितु वैश्विक स्तर पर अपने देश का नाम रौशन किया है और वर्तमान में कई अपने - अपने ढंग से राष्ट्र सेवा की ओर अग्रसर हैं लेकिन दुःख की बात यह है कि आज का कायस्थ समाज अपने सामाजिक हितों को पूर्ण करने हेतु अलग - अलग मंचों पर विराजमान हैं लेकिन वे एक छतरी के नीचे नहीं है अर्थात् पूर्ण रूप से एकात्मकता सभी लोगों के बीच नहीं है जो कि चिंतनीय इस रूप में है कि आज सनातन धर्म की सभी जातियां कमोबेश अपने - अपने समाज की भलाई हेतु एकात्मक रूप में है लेकिन कायस्थ समाज नहीं है और मेरी समझ से मंथन का विषय है क्योंकि आज जातियों में विभक्त समाज से हिन्दुत्व के नाम पर एकता की उम्मीद की जाती है और उनसे राष्ट्रभक्ति की पाठशाला पढ़ाई जाती है जबकि आज की तारीख में जातीयता एवं धर्मवाद पूरे भारत को घुन की तरह खा रहा है और मेरी समझ से यह भी विचारणीय है। 

जिस समाज के राजाओं ने राजतंत्र के शासनकाल में हज़ारों वर्षो तक पूरे आर्यावर्त पर अपनी विलक्षण प्रतिभा एवं शौर्यता, बाहुबल की बदौलत पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर शासन किया आज उसी समाज के लोग एक छतरी के नीचे इक्ट्ठा होने पर शर्म महसूस करते हैं और करें भी क्यों नहीं क्योंकि जिसने लोगों को छतरी दी हो वो भला एक छतरी के नीचे कैसे हो सकते हैं यह भी समाज के लोगों के लिए मनन का विषय है। 

आगे अजीत सिन्हा ने कहा कि हालांकि की आज की परिस्थितियों में यह समय की माँग है कि कायस्थ समाज के लोग भी अपने समाज के लोगों के नेतृत्व में अहमता व दम्भता को भूलकर एक छतरी के नीचे आकर अपनी एकता का परिचय दें क्योंकि आज राजतंत्र नहीं अपितु प्रजातंत्र है जिसमें लोगों की गिनती के साथ-साथ उनकी एकता भी मायने रखती है क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है और इस हेतु जितने भी बन्धु अपने अपने ढंग से प्रयास कर रहे हैं उन्हें मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ।

जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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