गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर "गुरू की महत्ता का भाव विश्लेषण" विषयक राष्ट्रीय व्याख्यान किया गया आयोजित

 गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर "गुरू की महत्ता का भाव विश्लेषण" विषयक राष्ट्रीय व्याख्यान किया गया आयोजित

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत के फेसबुक पेज द्वारा आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्रांत के सह-संयोजक डॉ० देवेश कुमार मिश्र

समाचार डेस्क/भारत, ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 25 जुलाई, 2021 ) । प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तीनों प्रांतो भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ, प्रज्ञा परिषद ब्रज, देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड द्वारा गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर "गुरू की महत्ता का भाव विश्लेषण" विषयक राष्ट्रीय व्याख्यान आयोजित किया गया। भारतीय प्रज्ञान परिषद, प्रज्ञा प्रवाह मेरठ प्रांत के फेसबुक पेज द्वारा आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्रांत के सह-संयोजक डॉ० देवेश कुमार मिश्र द्वारा गुरू के महत्व को सारगर्भित रूप में  बहुत ही अच्छे से रखा गया, कार्यक्रम में क्षेत्रीय संयोजक माननीय भगवती प्रसाद राघव का सानिध्य रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात स्तंभकार डॉ विकास सारस्वत एवं कार्यक्रम संयोजक एवं भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ प्रांत संयोजक अवनीश त्यागी रहे। सहसंयोजक डॉ० जी.आर. गुप्ता, डॉ० पृथ्वी काला, डॉ० रश्मि रंजन रहे। कार्यक्रम में तीनों प्रांतो के अध्यक्ष प्रोफेसर​ बीरपाल सिंह, डॉ प्रवीण तिवारी, डॉ० चैतन्य भंडारी एवं संयोजक डॉ० अंजलि वर्मा, प्रोफेसर वी.के. सारस्वत, सहसंयोजक डॉ रवि जोशी, डॉ० आदर्श रहें।
गुरू पूर्णिमा के अवसर पर क्षेत्रीय स्तरीय फेसबुक लाइव कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ० देवेश मिश्र ने कहा कि आज का दिन हम सभी के लिए बहुत ही विशेष है। जिसमें हमें गुरू के लिए महत्व को समझना होगा। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक आदरणीय श्री हेडगेवार जी एवं भगवा ध्वज को याद करते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।  कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने गुरू और गोविंद के विषय में एक विस्तृत चर्चा की तथा बताया, कि संसार में गुरू की महिमा अलग ही होती है जिसके लिए इस दोहे का प्रयोग किया गया । 


"गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय,
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए"


इस प्रकार गुरू की महत्ता की विस्तृत चर्चा करते हुए बताया, कि बिना गुरु के ज्ञान नही होता। अपने वक्तव्य में उन्होंने आचार्य, शिक्षक, अध्यापक के अंदर निहित तत्वों के सारगर्भित रूप में बताते हुए कहा, कि अध्यापक, शिक्षक और आचार्य केवल देने वाले है क्योंकि जो तत्व  ज्ञानात्मक समाधान प्रदान करता हो वही तत्व गुरू है। यह ज्ञान विभिन्न तत्वों के माध्यम से प्राप्त होता है जैसे, कि मां के माध्यम से प्राप्त होता है, कहीं पिता के माध्यम से प्राप्त होता है, कहीं समाज के माध्यम से प्राप्त होता है और कहीं-कहीं​ अन्य स्रोतों से भी ज्ञान प्राप्त होता है। जहां समाधान प्राप्त होता है। वही मार्ग गुरू तत्व होगा।

गुरू शब्द का शास्त्रीय अर्थ बताते हुए कहते हैं, कि स्कंद पुराण के गुरू गीता प्रसंग में गुरु की भूमिका के लिए कुछ श्लोक मिलते हैं उसमें गुरु की महिमा ओर महत्व का दर्शन होता है, मनीषियों ने गुरू की महिमा और धर्म के बारे में बताया है, कि जहां गुरू है, वहां ब्रह्म है। और जहां ब्रह्म है, वही शिव है। आप आगे कहते हैं, कि भारत ही एक ऐसा देश है, ऐसी भूमि है, जहां पर गुरू की महत्ता है। इसके अतिरिक्त और कहीं नहीं पाया जाता है।
उन्होंने भगवान शिव और पार्वती के संवाद को गुरू के महत्व के रूप में विवेचना की। जिसमें भगवान शिव गुरू की महत्ता का परिचय सती के सामने प्रस्तुत करते हैं, और कहते हैं, कि गुरु काला, गोरा, बड़ा, छोटा स्वस्थ, रोगी, निर्धन, धनी तथा किसी भी प्रकार का हो सकता है। जो उचित अनुचित का बोध कराएं वह गुरू है। जो किसी भी विकट समय में निकलने की युक्ति समझा दे, वही शिक्षक है।
आचार्य के विषय में उन्होंने बताया, कि जो किसी कार्य को अपने आचरण  में लाता है और जो दूसरों को भी आचरण की शिक्षा देता है। वही गुरु अथवा आचार्य हमें ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है और सभी प्रकार के आचरण की सभ्यता वह हमेशा सीखाता है,  आप कहते हैं कि आज शिक्षक और गुरु की जगह टीचर ने ले ली है। परंतु टीचर गुरु नहीं हो सकता वेद शास्त्रो , प्राचीन वेद-पुराणों,  ग्रंथों में गुरु की विशेष महत्ता बताई गई ।
इग्नू में ज्योतिषाचार्य डॉ० देवेश कुमार मिश्र आगे कहते हैं, कि शिक्षक क्या है..? शिक्षक वह है, जो सिखाता हो, जो सीख देता है, जो मार्गदर्शन करता है। वह शिक्षक है, जो गुरू तत्व के रूप में होता है। गुरू ब्रह्मा के समान है, जिस प्रकार से ब्रह्मा का दायित्व संसार मे व्यवस्था करनी होती है, उसी प्रकार गुरू का दायित्व है, कि संसार की व्यवस्था करें और संतुलन बनाए रखें। इसके साथ ही संसार में सिद्धांतों की व्यवस्था करना भी गुरू का ही दायित्व होता है। गुरु कार्य करता है, भले ही वह शिक्षक हो, गुरू हो अन्यथा कोई भी। प्राचीन काल में जो बालक गुरूकुल में जाता था, तब उसको कई महीने यह देखने और सीखने में लग जाते थे, कि गुरुकुल की व्यवस्था क्या है? बालक इस काल मे पूरे गुरूकुल में भ्रमण करता तथा विभिन्न प्रकार की सभ्यता, संस्कृति, कार्यक्रमो को देखता था। वहां देखता था, कि खेती कौन देखता, कहीं वेद पुराणों तथा शास्त्र के व्याख्यान सुनता तथा कई प्रकार की भाषाओं का ज्ञान लेता इसके कई महीनों पश्चात वह गुरू के पास ज्ञान को प्राप्त करने के लिये तैयार होता। केवल वह व्यक्ति गुरू या ज्ञानी नहीं है, जो केवल सीखकर या रटकर दूसरों के सामने प्रस्तुत करता है, बल्कि गुरू वह है जो प्रदाता है, प्रयोक्ता  है, और समाज में इसके बल पर दिशा देने वाला वही गुरू है। वही शिव है। रटने वाला कभी गुरू नहीं हो सकता।
उन्होंने आगे बताया, कि जिस तत्व का लोक परलोक, समाज, दिन दुनिया कहीं पर भी विपरीत प्रभाव जाता हो, उसी तत्व को हमसे अलग करने वाला गुरूतत्व है। शिवतत्व है। गुरु पूर्णिमा शिवरात्रि के एक दिन पहले होती है, उसके बारे में भी आपने बहुत ही खुलकर समझाया और बताया  कि प्रत्येक के अंदर ब्रह्म विद्वान है, वह अध्यापक हो,  शिक्षक हो, आचार्य हो तथा कोई भी हो। जो गुरु तत्व है वह सभी के अंदर विद्यमान है। वह भले ही गुरू हो, शिक्षक आचार्य हो, अध्यापकों अन्यथा कोई भी हो क्योंकि जो अपने पराए का भाव त्यागकर विणा स्वार्थ के कार्यरत है, वही गुरू है। गुरू जल के  साथ जल से, पृथ्वी के साथ पृथ्वी से, अग्नि के स्वभाव के साथ अग्नि से तथा वृक्ष के स्वभाव के साथ वृक्ष से व्यवहार करता है यदि आत्मा में ब्रह्म है तो गुरुतत्व के अंदर शिवतत्व है गुरू जाति पाती आदि से बंधा हुआ नही  हैं  तुलसीदास जी कहते हैं, कि गुरु के अंदर दिव्य दृष्टि होती है प्रत्येक के अंदर वह दृष्टि होने चाहिए, ऐसे ही राष्ट्र के प्रति समर्पण होना चाहिए।
निवर्तमान सरसंघचालक डॉ हेडगेवारजी के संबंध में वृतांत बताया कि हेडगेवार साहब ने कितने ही कार्यकर्ताओं का सृजन किया, जो राष्ट्र के प्रति अपने तन मन धन से लगें हुए है, जो अपना घर बार छोड़कर परिवार छोड़कर बाहर रहते हैं, कभी अपने घर नहीं जाते ऐसे लोगों के अंदर भी वही गुरु तत्व विद्यमान है। वेद भी कहते हैं, कि अपने राष्ट्र व देश की रक्षा करनी चाहिए जो व्यक्ति देश और समाज के साथ द्रोह करता है वह देशद्रोही है, ऐसे आतंकी को छोड़ना नहीं चाहिए। इसके लिए किसी भी प्रकार के विचार मंथन करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपने पूरे व्याख्यान में गुरू की महत्ता का वर्णन करते हुए कहा, कि यदि हमें अपना सिर काटकर थी अपने गुरु के सामने भेट करना पड़ता है वह भी कम होगा। शिष्य भी गुरु धारण करने लायक होना चाहिए, जो अपने गुरु की सिद्धांतो का ध्यान रखें, और गुरु के अंदर भी शिष्य के प्रति शुद्ध भावना होनी चाहिए जो आचार्य शिष्य के धन का हरण करता हो वह गुरु नरक का भागी अर्थात नरक का भोगी होगा। गुरू चातुर्यवान एवं अडिग होना चाहिए, जहां सेवा का भाव है, वही अध्यात्म है। जो ज्ञान से है। जिसने समस्त इंद्रियों पर काबू कर लिया है, और यह ज्ञान हो गया, कि संसार की सभी वस्तुएं सभी के लिए है। ऐसी स्थिति में गुरू और उसकी गुरूता सुशोभित होते हैं। वहीं निर्मल मन विचार रखने वाला गुरू है। जहां पर ब्रह्म है, वहां गुरू है वही शिव है, भारत की रक्षा कैसे की जाए? भारत माता की रक्षा कैसे की जाएगी.? यह बताने वाला गुरू है। जो ज्ञान के प्रकाश से अंधकार को दूर करता है वहीं गुरू है। गुरू में सृजन करने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाले तीनों  प्रकृति के गुण होते हैं और रहेंगे।  इसी प्रकार से गुरू की महत्व का विश्लेषण करते हुए, उन्होंने गुरू पूर्णिमा कार्यक्रम में उपस्थित सभी विद्वितजनों को गुरु पूर्णिमा की बधाई दी।
गुरू पूर्णिमा उत्सव में तीनों प्रांतो के अध्यक्ष, संयोजक, सहसंयोजक, प्रांत, जिला, महानगरों​ की कार्यकारिणी के अतिरिक्त अनेक शिक्षाविद, प्रबुद्ध जन एवं विधार्थी उपस्थित रहे। उपरोक्त जानकारी प्रेस कार्यालय को
अवनीश त्यागी कार्यक्रम संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड द्वारा दिया गया।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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