अध्यात्म विचार से जानिये कायस्थ कुल के गौड़ ब्राह्मण और दूसरे ऋषि कुल के ब्राह्मण पण्डित की पहचान एवं लक्षण - अजीत सिन्हा

 अध्यात्म विचार से जानिये कायस्थ कुल के गौड़ ब्राह्मण और दूसरे ऋषि कुल के ब्राह्मण पण्डित की पहचान एवं लक्षण - अजीत सिन्हा


जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित होती है जैसे किसी ने ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है तो वह ब्राह्मण ही कहलायेगा और इसमें भी दो कुल प्रचलित है जैसे कायस्थ कुल के गौड़ ब्राह्मण और दूसरे ऋषि कुल के ब्राह्मण

राँची,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 08 नवंबर, 2021) ।  यह ठीक है कि सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित होती है जैसे किसी ने ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है तो वह ब्राह्मण ही कहलायेगा और इसमें भी दो कुल प्रचलित है जैसे कायस्थ कुल के गौड़ ब्राह्मण और दूसरे ऋषि कुल के ब्राह्मण ।

कायस्थ कुल में कुल श्री चित्रगुप्त के बारह पुत्र जैसे निगम, श्रीवास्तव, अंबष्ट, सक्सेना, कर्ण, सूर्यध्वज, कुलश्रेष्ठ, गौड़,  बाल्मीकि, अस्थाना, भट्टनागर, माथुर ये सभी कायस्थ गौड़ ब्राह्मण हैं एवं ऋषि कुल में कान्य-कुब्ज, जिसमें कान्य ऋषि के वंशज कान्य तथा कुब्ज ऋषि के वंशज - सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। कान्य एवं कुब्ज ऋषि गौड़ जाति के थे । इसलिये इनके वंशजों की मूल पहचान सरयूपारीण गौड़ तथा कान्यकुब्ज गौड़ के रूप में है। इसके अलावे अहिवासी ब्राह्मण, अनाविल ब्राह्मण, अष्टाश्रम अय्यर ब्राह्मण, अर्वतोकालु ब्राह्मण, अउदिच्य ब्राह्मण, बबुरक्कम स्मार्त ब्राह्मण, बदग्नाडु स्मार्त ब्राह्मण, बारेन्द्र ब्राह्मण (बंगाली), बसोत्रा ब्राह्मण, बेयाल ब्राह्मण, भार्गव ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण, बाल ब्राह्मण, बृहत्चरनम अय्यर ब्राह्मण, ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण, दैवज्ञ ब्राह्मण, देशस्थ ब्राह्मण, देवरूखे ब्राह्मण (कोंकण), धीमा ब्राह्मण, इम्बांथिरौ ब्राह्मण(केरल), गुरूक्कल या शिवाचार्या ब्राह्मण, हव्यका ब्राह्मण, हेब्बर अयंगर ब्राह्मण, होयसाला ब्राह्मण, जिजहोतिया ब्राह्मण, कन्डवरा ब्राह्मण, कारहदा या कराणे ब्राह्मण (महाराष्ट्र),  कश्मीरी ब्राह्मण, केरला अय्यर ब्राह्मण, खजूरिया या डोगरा ब्राह्मण(जम्मू), खण्डेलवाल ब्राह्मण, खेडवाल ब्राह्मण, कोंकणस्थ चित्तपावन ब्राह्मण, कोटा ब्राह्मण, कोटेश्वरा ब्राह्मण, कुडलेश्वर ब्राह्मण, मद्रास अयंगर ब्राह्मण,माधवा ब्राह्मण,मांडव्यम अयंगर ब्राह्मण, मोध ब्राह्मण, मोहयल ब्राह्मण, मुलुकनाडु ब्राह्मण, नागर (नाग) ब्राह्मण, नम्बूदिरी ब्राह्मण, नंदीमुख ब्राह्मण या नंदवाना ब्राह्मण, नर्मदेव या नर्मदिया ब्राह्मण, नेपाली ब्राह्मण, पाडिया ब्राह्मण, पालीवाल ब्राह्मण, पंगोत्रा ब्राह्मण, पोट्टी ब्राह्मण(केरल), पुष्करण ब्राह्मण, राहरी ब्राह्मण(बंगाल), ऋग्वेदी देशस्थ ब्राह्मण, सदोत्रा ब्राह्मण(जम्मू), शाकलद्वीपीय ब्राह्मण, सनाढय ब्राह्मण, सांकेती ब्राह्मण, सिरिनाडू स्मार्त ब्राह्मण, सकलपुरी ब्राह्मण, श्रीमाली ब्राह्मण, शिवाल्ली ब्राह्मण, स्थानिक ब्राह्मण, तेनकलाई अयंगर ब्राह्मण, तुलुवा ब्राह्मण,त्यागी ब्राह्मण, उप्पल ब्राह्मण, उलुचकम्मे ब्राह्मण, वदगलाई अयंगर ब्राह्मण, वदमा अय्यर ब्राह्मण, वैदिक या वैदिकी ब्राह्मण, वैष्णव ब्राह्मण, वथिमा अय्यर ब्राह्मण, यजुर्वेदी देशस्थ ब्राह्मण, मैथिल इत्यादि ब्राह्मण जातियां विख्यात हैं।

यहां पर यह विदित हो कि सृष्टि के प्रारंभ में ब्राह्मणों की एक ही जाति बताई गई है लेकिन बाद में देश के भेद से यह दो भागों में विभक्त हो गई है। पहले गौड़, सारस्वत, कान्य-कुब्ज, उत्कल, मैथिल आते हैं जिन्हें पञ्च्गौड ब्राह्मण कहलाते हैं और दूसरे द्रविड़, तैलंग, कर्णाटक, महाराष्ट्र, गुर्जर पंञ्च्द्रविड ब्राह्मण कहलाते हैं और इनमें कायस्थ, कायस्थगौड ब्राह्मण कहलाते हैं। एक तेरहवें कायस्थ चंद्रसेनीय कायस्थ कायस्थ हैं जो क्षत्रिय राजा, राजा चंद्रसेन के वंशज हैं जो देव समान ऋषि परशुराम की आज्ञा से दालभ्य ऋषि ने इन्हें क्षत्रिय से कायस्थ बनाया है, यह घटना त्रेता युग के आरंभ की है जब क्षत्रियों के अंत हेतु परशुराम ने खोज - खोज कर अंत करना शुरू किये तो इसी क्रम में राजा चंद्रसेन की गर्भित पत्नी दालभ्य मुनि के आश्रम में गई हुई थी जहां परशुराम भी पहुंच गये और दालभ्य मुनि ने उनकी आवभगत कर परशुराम जी से मनोकामना मांगी और उसी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए परशुराम जी ने राजा चंद्रसेन की पत्नी की जान इस शर्त पर बख्श दी कि उत्पन्न बालक कायस्थ कहलायेगा और दालभ्य मुनि से आश्वासन लिया कि यह बालक दुष्ट प्रवृत्ति का नहीं होगा। परशुराम की आज्ञा के अनुसार राजा चंद्रसेन के पुत्र को क्षत्रिय धर्म से बहिष्कृत कर दिया। राजा चंद्रसेन के पुत्र को दालभ्य मुनि ने  चित्रगुप्त के कायस्थ धर्म का उपदेश दिया जो बाद में चंद्रसेनी कायस्थ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यहां पर यह भी जानने की आवश्यकता है कि श्री चित्रगुप्त की बारह शादियों से केवल बारह ही पुत्र हैं और तेरहवें कायस्थ क्षत्रिय से कन्वर्टेड कायस्थ हैं और श्री चित्रगुप्त के आठ पुत्र ऋषि कुल के नागर (नाग) ब्राह्मणों की पुत्रियों से हैं अर्थात् इन आठ पुत्रों का ननिहाल ऋषि कुल के ब्राह्मणों के यहां है जिससे यह स्पष्ट होता है कि ऋषि कुल एवं कायस्थ कुल में घनिष्ठ संबंध है क्योंकि दादी घर के साथ नानी घर भी जीवन में बहुत मायने रखती है। और यह भी सही है कि नागर ब्राह्मणों की पुत्रियां श्री चित्रगुप्त से पाणिग्रहण के उपरांत कायस्थ कुल की ब्राह्मणी कहलायेगीं क्योंकि पितृ सत्ता व्यवस्था सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत बहुत ही महत्वपूर्ण है और कुल पिता के खानदान से ही चलती है।
उपर्युक्त सभी वर्णित ब्राह्मण सनातन धर्म में जन्म आधारित व्यवस्था के अन्तर्गत पंडित कहलाने के हकदार हैं।

आइये अब जानते हैं कि पंडितों के लक्षण क्या होते हैं..?

पण्डित शब्द पांडित्य से संबंधित है, जिसका अर्थ होता है निपुणता, और निपुणता तभी आती है, जब या तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आशीर्वाद स्वरुप शक्तियां किसी एक देव में संचित या केंद्रित हो और ऐसी शक्तियां केवल पर ब्रह्म स्वरुप श्री चित्रगुप्त में ही संचित व केंद्रित है इसलिए  ब्रह्मा जी ने श्री चित्रगुप्त को पण्डित से संबोधित कर उनका नाम चित्रगुप्त रखा और चुकी वे ब्रह्मा जी के सम्पूर्ण काया से प्रकट हुये इसलिये श्री चित्रगुप्त कायस्थ भी कहलाये और उनके वंशज भी कायस्थ ही कहे जाते हैं जो सही मायनों में चित्रगुप्त के अंश चित्रांश हैं। और दूसरे वे पण्डित कहलाते हैं जिन्हें वेद - पुराण, उपनिषद् सहित सनातन धर्म के पौराणिक सत्य बातों का ज्ञान हो क्योंकि जहां सत्य है वहीं सनातन धर्म है लेकिन विस्तृत रूप में पंडितों के लक्षण के बारे में मुझे विदुर नीति के अध्ययन के पश्चात्‌ ही ज्ञात हुआ जो कि पाठकों के लिये ज्ञानवर्धक के साथ जन्मजात पंडितों के अनुसरण हेतु ही है इसके अलावे अन्य जात - बिरादरी वाले व्यक्ति यदि अपने अंदर आगे बताई गई लक्षणों को अपने जीवन में अनुसरण कर उतारते हैं तो वे अवश्य ही मेरी समझ से पण्डित कहलाने के हकदार हो सकते हैं।
गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित विदुर - नीति पुस्तक के पहले अध्याय में वर्णित पण्डितों में उपस्थित लक्षणों के बारे में निम्नलिखित तरह से बताये गये हैं :
01) अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान, उद्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता - ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से च्युत नहीं करते वही पण्डित कहलाता है।
02) जो अच्छे कर्मों का सेवन करता और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके वे सद्गुण पण्डित होने के लक्षण हैं।
03) क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दण्डता तथा अपने को पूज्य समझना - ये भाव जिसको पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पण्डित कहलाता है।
04) दूसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते, बल्कि काम पूरा होने पर जानते हैं, वही पण्डित कहलाता है।
05) सर्दी - गर्मी, भय - अनुराग, सम्पत्ति तथा दरिद्रता - ये जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते वही पण्डित कहलाता है।
06) विवेकपूर्ण बुद्धि वाले पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने की इच्छा रखते हैं और करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझ कर अवेहलना नहीं करते हैं और ऐसे ही विवेकशील पुरुष पण्डित कहलाते हैं।
07) विद्वान पुरुष किसी विषय को देर तक सुनता है किन्तु शीघ्र ही समझ लेता है, समझकर कर्तव्यबुद्धि से पुरूषार्थ में प्रवृत होता है - कामना से नहीं, बिना पूछे दूसरे के विषय में व्यर्थ कोई बात नहीं कहता है। उसका यह स्वभाव पण्डित की मुख्य पहचान है।
08) पंडितों की - सी बुद्धि रखने वाले मनुष्य दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करते, खोई हुई वस्तु के विषय में शोक करना नहीं चाहते और विपत्ति में पड़कर घबराते नहीं हैं।
09) जो निश्चय करके फिर कार्य का आरंभ करता है, कार्य के बीच में नहीं रुकता, समय को व्यर्थ जाने नहीं देता और चित्त को वश में रखता है वही पण्डित कहलाता है।
10) पण्डितजन श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नति के कार्य करते हैं तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते।
11) जो अपना आदर होने पर हर्ष के मारे फूले नहीं समाता, अनादर से संतप्त नहीं होता तथा गंगा जी के कुंड के समान जिसके चित्त को क्षोभ नहीं होता, वह पण्डित कहलाता है।
12) जो सम्पूर्ण भौतिक पदार्थों की असलियत का ज्ञान रखने वाला, सब कार्यो के करने का ढंग जानने वाला तथा मनुष्यों में सबसे बढ़कर उपाय का जानकार है, वही मनुष्य पण्डित कहलाता है।
13) जिसकी वाणी कहीं नहीं रुकती नहीं, जो विचित्र ढंग से बातचीत करता है,तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली है तथा जो ग्रंथ के तात्पर्य को शीघ्र बता सकता है, वही पण्डित कहलाता है।
14) जिसकी विद्या बुद्धि का अनुसरण करती है और बुद्धि विद्या का तथा जो शिष्ट पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, वही पण्डित की पदवी पा सकता है।

उपर्युक्त पोस्ट लिखने के पीछे मेरी मकसद यह है कि सभी पाठक ब्राह्मण के विषय में जानें और साथ में ब्राह्मण भी अपने आपको जाने और पंडितों के लक्षण को जानकर सभी अपने जीवन को उत्कृष्ट बनायें और खासकर ब्राह्मण देव अपने अंदर आई गिरावट को पहचान कर सुधार करें ताकि वे संपूर्ण समाज को सही राह दिखा सकें। मेरी लिखी बातों से किन्हीं को चोट पहुंची हो तो उनसे मैं हृदय से क्षमा माँगता हुं।


श्री चित्रगुप्त कृपा से ही इस पोस्ट को लिख पाया हूं इसलिये हे प्रभु कृपा दृष्टि एवं आशीर्वाद बनाये रखना।
साभार
कायस्थानांसमुत्पत्ति (पुस्तक)
अनुवाद, लेखन एवं संपादन ( डॉ इंद्रजीत शुक्ल, मनोज कुमार श्रीवास्तव, डॉ० श्रीमती रीता दुबे)
सनातन धर्म ट्रस्ट गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
ए-36, आवास विकास कॉलोनी
पिन : 273006
Contact No# 8004332000
02) विदुर नीति
लेखक - हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीता प्रेस, गोरखपुर
गोविंद भवन कार्यालय, कोलकात्ता का संस्थान
Contact no. 0551 2334721, 2336997
उपरोक्त आलेख अजीत कुमार सिन्हा द्वारा प्रेस कार्यालय ग्रुप में दिया ।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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